जब से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सत्ता संभाली है तब से उनके ऊपर विपक्ष कई तरह के आरोप लगा रहा है,जैसे भारत में संविधान खतरे में है, देश में बोलने की आजादी नहीं है, देश में आपातकाल या इमरजेंसी चल रही है।
जो लोग रात दिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को कोसते है ,उनको तानाशाह कहते हैं,उनके राज की तुलना आपतकाल से करते है उन लोगो को आज समझना चाहिए कि कैसा था आपतकाल का वो समय?
हमने सोचा कि आखिर ये आपातकाल क्या है? आपातकाल का असली सच क्या है? जो आपातकाल इंदिरा गांधी ने लगाया था उसके पीछे का क्या सच था ? किस कारण से आपातकाल लगा था ? आपातकाल को क्यों काला दिन कहा जाता है भारतीय लोकतंत्र में?
25 जून को एक बहुत ही बड़ी ऐतिहासिक भूल को याद करने का दिन है। 25 जून ही वो दिन था जब लोकतंत्र की हत्या हुई थी।
25 जून 1975 को इमरजेंसी लगी थी, जिसे हम हिंदी में आपातकाल कहते है।
आज आपको बताएंगे की कैसे लोकतंत्र की हत्या हुई थी,कैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए ऐसी कोई तरकीब नही छोड़ी जिससे भले ही देश का नुकसान हो जाए लेकिन उनकी सत्ता बनी रहे।
जज पर दवाब डालने से लेकर, न्यायपालिका को लालच देने तक, पुलिस की ताकत का गलत इस्तेमाल करना, जय प्रकाश नारायण जी की पटना से दिल्ली की फ्लाइट रद्द कराने तक। मीडिया का किस तरह से दमन किया गया।
इंदिरा गांधी ने ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा जिससे उनकी सत्ता पर कोई आंच न आने पाए। ये आजाद भारत के लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय था । आज की पीढ़ी शायद ही इसके बारे में जानती हो ।
इंदिरा गांधी की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने 27 दिसंबर 1970 को लोकसभा को भंग कर दिया था, और अगले वर्ष मार्च 1971 में चुनाव कराने के आदेश दिया था।
इंदिरा गांधी को डर था कि अगर समय पर लोकसभा चुनाव हुए तो उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ सकता है। 1967 के चुनावों में ऐसा हुआ था जब कांग्रेस का खराब प्रदर्शन था। जिससे इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में कमी आ गई थी । क्षेत्रीय दल उस समय हावी होने लगे थे।
इंदिरा गांधी के इस फैसले का सबसे ज्यादा फायदा उनकी पार्टी कांग्रेस आर को मिला। उस समय कांग्रेस आर ने 352 सीटें जीती थीं। इंदिरा गांधी खुद रायबरेली से चुनाव जीत गई थी।
इंदिरा गांधी के खिलाफ सभी पार्टियों ने राजनारायण को मैदान में उतारा था। राजनरायण बहुत बड़े अंतर से हार गए थे। इंदिरा गांधी ने 1,10,000 वोटों से जीत दर्ज की थी।
इसके बाद राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया कि उन्होंने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। इस आरोप के साथ राजनारायण इलाहाबाद हाई कोर्ट में चले गए । राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे जैसे
1) चुनाव में सरकारी अफसर यशपाल कपूर की मदद लेना और उन्हें अपना इलेक्शन एजेंट बनाना, यशपाल कपूर इंदिरा गांधी के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी नियुक्त किए गए थे। ऐसे में वो इलेक्शन एजेंट नही बन सकते थे क्योंकि यह गैरकानूनी काम था ।
2) इंदिरा गांधी ने स्वामी अद्वेतानंद को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में खड़ा करने के लिए पचास हजार दिए थे। ताकि इससे विरोधियों के वोट काटे जा सके ।
3) चुनाव में थल सेना और वायुसेना की मदद लेना।
4) स्थानीय अधिकारी जैसे डीएम और एसपी जैसे अधिकारियों से मदद लेना और अपनी रैली के मंच बनवाना।
5) वोटरों को शराब, कंबल,और दूसरी चीजे बाटना
6) गाय और बछड़े के चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल करना ताकि हिंदू वोटरों को प्राभावित किया जा सके।
7) वोट वाले दिन लोगो को मतदान केंद्र तक लाने के लिए गाड़ियों का इंतजाम करना और यह सब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने किया था।
8) प्रचार के लिए तय सीमा से अधिक धन राशि खर्च की गई। उस समय एक उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में केवल 35000 रुपए खर्च कर सकता था।
आज हम सब ये सब बात करते है कि चुनाव से पहले शराब और पैसा बाटा जाता है,यह सब इन्दिरा गांधी ने इस चुनाव से शुरू किया था।मतलब इंदिरा गांधी ने ही इस तरह की गलत परम्परा की शुरुवात की थी।
इंदिरा गांधी ने The Representation of the People Act का उल्लंघन किया था। यह वही कानून है जो उनके पिताजी जवाहरलाल नेहरू ने बनाया था।
यह मामला 24 अप्रैल 1971 को इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा,लेकिन इस पर फैसला आया 12 जून 1975 को, यानी आपतकाल लगने से ठीक 13 दिन पहले, फैसला आने तक इन्दिरा गांधी की सरकार अपना चार साल और तीन महीने का कार्यकाल पूरा कर चुकी थी।
हाई कोर्ट ने इन्दिरा गांधी को 2 आरोपों के आधार पर दोषी ठहराया
पहला सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करना। दूसरा आरोप था एक सरकारी अफसर की चुनाव में मदद लेना और उसे अपना इलेक्शन एजेंट बनाना।
ये दोनो आरोप इंदिरा गांधी पर सिद्ध हो गए थे। हाई कोर्ट ने तब 1971 के रायबरेली के चुनाव को रद्द कर दिया था और यह भी कह दिया कि इंदिरा गांधी किसी भी संवैधानिक पद पर अगले छह वर्ष तक नही रह सकती ।
इस फैसले के बाद हाईकोर्ट ने 20 दिन का स्टे भी लगा दिया था और कहा की इन 20 दिनों में कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री पद के लिए अपने नेता का चुनाव कर सकती है। अगर हाई कोर्ट ने अपने फैसले पर स्टे नही लगाया होता तो इंदिरा गांधी आपतकाल नही लगा सकती थी।
लेकिन इस 20 दिन के स्टे में इंदिरा गांधी ने अपनी रणनीति बना ली थी। इस फैसले को भी इंदिरा गांधी ने रोकने की कोशिश की थी।
जब मई के महीने में कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
तब इलाहाबाद से उस समय के कांग्रेस सांसद ने इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के घर जाकर उनसे मिलने की कई बार कोशिश की।
इसके कारण जस्टिस सिन्हा ने परेशान होकर खुद को अपने घर में ही बंद कर दिया और जो भी कोई उनसे मिलने आता था उसको यह बोल दिया जाता था कि जज साहब बाहर गए हैं।
जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को कई तरह के प्रलोभन दिए गए थे जिसके बाद उन्होंने तुरंत अपना फैसला सुनाने की घोषणा कर दी थी।
इसके बाद 11 जून को सीआईडी के कुछ अधिकारी उनके निजी सचिव मुन्ना लाल के घर पहुंच गए और इस फैसले की प्रति को लीक करने का दवाब डालने लगे।
इंदिरा गांधी चाहती थी कि उनको एक रात पहले ही फैसला पता चल जाए ताकि वो इसे रोक सके, लेकिन यह फैसला लीक नही हो सका और इंदिरा गांधी को फैसले का पता नहीं चल सका।
इस फैसले को रूकवाने के लिए तब इंदिरा गांधी ने उस समय के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की भी मदद ली थी । लेकिन वो भी इस फैसले को लीक नही करवा सके जिसके कारण इंदिरा गांधी उनसे बहुत नाराज हो गई थी और वो कहती थी कि आप कैसे मुख्यमंत्री है जो एक जज को संभाल नहीं पाए।
तो यहां हमने देखा कि सत्ता से बाहर नहीं जाने के लिए इंदिरा गांधी ने कितने नीच स्तर तक गिर गई थी ,वो सत्ता को कभी खोना नहीं चाहती थी और उन्होंने हर संभव प्रयास किया सत्ता मे बने रहने के लिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट में भी गई थी लेकिन वहां उनको कोई राहत नहीं मिली। तब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती है, लेकिन न वो इस दौरान संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेंगी, सांसद को मिलने वाला वेतन भी उनको नही मिलेगा ।
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को आंशिक राहत दी थी लेकिन इंदिरा गांधी समझ गई थी की यह उनको बचा नही पाएगी,और उन्होंने लोकतंत्र को ही खत्म करने का फैसला ले लिया।
इंदिरा गांधी के इस फैसले के बारे में किसी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भी नही पता था ।
इस लेख को बताने का यही मतलब था कि लोगो को ज्यादा से जायदा आपातकाल के बारे में अवगत कराया जा सके, युवाओं को बताया जा सके कि किस तरह लोकतंत्र की हत्या की गई थी।
जो लोग नरेंद्र मोदी जी को कोसते रहते हैं कि उनके कारण देश में आपातकाल की स्तिथि है उन लोगो को यह पता होना चाहिए कि असलियत में कैसी थी इमरजेंसी।
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