36.1 C
New Delhi

एक प्रेम दीवानी…एक दरस दीवानी!

Date:

Share post:

एक थे कृष्ण!परमावतार!योगेश्वर श्री कृष्ण!

एक थी राधा!बरसाना गांव की अनिध्यसुन्दरी! योगेश्वर श्रीकृष्ण की प्रेमिका, योगेश्वर की योगिनी शक्ति! राधा ने कृष्ण को टूटकर प्रेम किया! राधा ने कहा तुम मेरे हो, कृष्ण ने मान लिया! राधा ने कहा, तुम स्वयं को मुझे दे दो! मेरे हो जाओ श्याम! और श्याम राधा के हो लिए!

कृष्ण को जिसने जिस रूप में चाहा, उस रूप में पाया!

राधा ने प्रेमी के रूप में चाहा, उन्हें प्रेमी बनकर मिले!
गोपियों ने रसिया के रुप में चाहा, उन्हें रसिया बनकर मिले!
नंद बाबा और यशोदा मईया ने पुत्र के रूप में चाहा, तो देखिए, उनकी जैविक संतान न होते हुए भी उन्हें संतान के रूप में मिले!
अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में गुरु रूप में मांगा, उन्हें गुरु रूप में मिले!
शिशुपाल ने शत्रु रूप में चाहा, तो उन्होंने क्या खूब शत्रुता निभाई!
बलराम और सुभद्रा ने भ्राता के रूप में मांगा, उन्हें भाई के रूप में मिले!
सुदामा ने मित्र के रूप में मांगा और कृष्ण की निभाई मित्रता आज मिसाल है!

किंतु एक स्त्री ऐसी भी थी, जिसने कृष्ण को सबसे अधिक पाया! और वो थी कृष्ण की #दरस दीवानी… मीराबाई!

ये तो प्रेम की बात है उधो!

मीराबाई के बारे में सोचता हूँ तो आश्चर्य होता है। उनका प्रेम अपनी तरह का अद्वितीय था। कृष्ण धराधाम छोड़ कर द्वापर में ही जा चुके थे फिर भी हजारों वर्ष बाद भी मीरा ने अधिकार जता कर कहा, “तुम हो! यहीं हो! और मैं तुम्हारी हूँ…….” और सचमुच कृष्ण जितने मीरा के हुए उतने किसी के नहीं हुए!

प्रेम में डूबे सामान्य लोग अपने प्रिय पर दावा करते हैं कि तुम मेरे हो! मीरा ने इसके उलट जा कर कहा, मैं तुम्हारी हूँ!

मीरा ने मांगा नहीं, दिया, और फिर बिना मांगे सबकुछ पा लिया।

जिस कृष्ण को स्वयं राधारानी अपना पति नहीं कह सकीं, उनको मीरा ने साधिकार अपना पति कहा! माना और सिद्ध भी किया कि सचमुच वे ही थे! मीरा को पढ़ कर लगता है कि सचमुच प्रेम समर्पण की पराकाष्ठा का नाम है।

मनुष्य सामान्यतः किसी एक के भरोसे नहीं रह पाता। उसके मन में भरोसे का द्वंद चलता ही रहता है, इस पर करूँ या उसपर… पर किसी एक के भरोसे रहने का आनन्द अद्वितीय होता है, बस कोई कृष्ण सा निभाने वाला मिलना चाहिए ।

पत्नियों को छोड़ दें तो कृष्ण के जीवन में दो स्त्रियाँ आईं, जिन्होंने अपना सर्वस्व उनके भरोसे छोड़ दिया। पहली द्रौपदी! चीरहरण के समय सबको भूल कर उन्होंने केवल कृष्ण पर भरोसा किया! फिर कृष्ण ने जो भयवधी निभाई वह इतिहास है।

और दूसरी हुईं मीरा , जो कृष्ण के आगे सबको भूल गयीं। किसी ने कहा घर छोड़ दो, तो छोड़ दिया। किसी ने कहा विष पी लो तो पी लिया। न किसी से भय, न किसी से मोह… भरोसा केवल और केवल कृष्ण का… फिर कृष्ण कैसे न होते मीरा के? सच पूछिए तो स्वयम्बर में कृष्ण को मीरा ने ही जीता था।

मीरा के विषपान की बड़ी चर्चा हुई। शायद प्रेम करना विष पीने जैसा ही होता है! कृष्ण जैसा कोई मिल गया तो विष को अमृत बना देता है और प्रेम की प्रतिष्ठा रह जाती है, नहीं तो… आप आज के समय में ही देख लीजिए, जाने कितनो का शव खेतों में मिलता है!

कुछ मूर्ख कवियों ने कह दिया कि प्रेम किया नहीं जाता, हो जाता है। इस सृष्टि में यूँ ही कुछ नहीं होता। और प्रेम तो सजीवों का सबसे पवित्र भाव है, उसे बिना जांचे परखे किसी को कैसे दे देंगे। प्रेम के लिए तो सुपात्र का ही चयन होना चाहिए। मीरा ने सुपात्र का चयन किया तो अमर हुईं, उनकी दरस दीवानी बनकर!

खैर…….कृष्ण अकेले थे जिन्होंने सिद्ध किया कि जिसका कोई नहीं उसका मैं… जिसने जिस रूप में चाहा, उसे उस रूप में मिल गए। नन्द बाबा-यशोदा मइया ने पुत्र रूप में चाहा, तो न होते हुए भी उनके पुत्र हो गए। गोपियों ने वात्सल्य भाव से देखा, तो उनकी गोद में खेले। राधा ने प्रेम किया तो उन्हें प्रेमी के रूप में मिले, और क्या खूब मिले। उद्धव और अर्जुन ने मित्र के रूप में चाहा तो उन्हें उस रूप में मिले। सुदामा ने ईश्वर के रूप में पूजा तो उनका घर भर दिए। जामवंत को लड़ने की चाह थी, तो उनकी वह इच्छा भी पूरी किये। रुक्मिणी सत्यभामा को तो छोड़िये, नरकासुर की बंदिनी सोलह हजार राजकुमारियों तक ने पति रूप में चाहा तो उन्हें उस रूप में भी मिले… किसी को निराश नहीं किया।

फिर मीरा को कैसे निराश करते?

मीरा ने कृष्ण ने मांगा नहीं कि मेरे हो जाओ, बल्कि मान लिया कि कृष्ण ही मेरे हैं। आगे सब कृष्ण के ऊपर था। सो जिस दिन उन्होंने पहली बार कृष्ण का नाम लिया उसदिन से लेकर उनके अंतिम दिन तक कृष्ण उन्ही के रहे, उनके साथ रहे!

कृष्ण की प्रेमिकाओं ने दिखाया कि प्रेम करते कैसे हैं, तो कृष्ण ने बताया कि निभाते कैसे हैं। सम्बन्धों को निभाने के मामले में कृष्ण अद्भुत हैं।

अच्छा सुनिए! कृष्ण इतने आसानी से मिल भी नहीं जाते, मीरा होना पड़ता है। केवल एक दरस की प्यासी बनकर आजीवन “पायो जी मैंने, प्रेम रतन धन पायो….” और “मेरो तो गिरधर गोपाल दुसरो न कोई….” गाते हुए रहना पड़ता है! विष पीना पड़ता है!

##

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img

Related articles

नेहा उपरि ३० सेकेण्ड्-मध्ये १४ प्रावश्यं प्रहारिता, कण्ठस्य शिराः अकर्तयत् ! नेहा पर 30 सेकेंड में 14 बार चाकू से वार, काट डाली गले...

कर्णाटकस्य हुब्ली-नगरे फयाज इत्यनेन नेहा हीरेमठ्-इत्यस्याः छुरिकाघातेन अहनत् ! नेहा प्रकाश्यदिवसे क्रूरतया मारिता आसीत्! अधुना अस्मिन् प्रकरणे नेहा-वर्यस्य...

कांग्रेसस्य दृष्टि भ्रष्टाचारे-पीएम नरेंद्र मोदिन् ! कांग्रेस का ध्यान भ्रष्टाचार पर-पीएम नरेंद्र मोदी !

प्रधानमन्त्री नरेन्द्रमोदी कर्णाटकस्य बेङ्गळूरुनगरे जनसभां सम्बोधयति ! नादप्रभु केम्पेगौडा वर्यः बेङ्गलूरुनगरं महत् नगरं कर्तुं स्वप्नम् अपश्यत्, परन्तु काङ्ग्रेस्-सर्वकारः...

कन्हैया लाल तेली इत्यस्य किं ?:-सर्वोच्च न्यायालयम् ! कन्हैया लाल तेली का क्या ?:-सर्वोच्च न्यायालय !

भवतम् जून २०२२ तमस्य घटना स्मरणम् भविष्यति, यदा राजस्थानस्योदयपुरे इस्लामी कट्टरपंथिनः सौचिक: कन्हैया लाल तेली इत्यस्य शिरोच्छेदमकुर्वन् !...

१५ वर्षीया दलित अवयस्काया सह त्रीणि दिवसानि एवाकरोत् सामूहिक दुष्कर्म, पुनः इस्लामे धर्मांतरणम् बलात् च् पाणिग्रहण ! 15 साल की दलित नाबालिग के साथ...

उत्तर प्रदेशस्य ब्रह्मऋषि नगरे मुस्लिम समुदायस्य केचन युवका: एकायाः अवयस्का बालिकाया: अपहरणम् कृत्वा तया बंधने अकरोत् त्रीणि दिवसानि...