एक बार श्रीकृष्ण जी मथुरा में एक रंगरेज के यहाँ गए, और उससे कहा, ” मुझे भी कपड़ा रंगना है, मुझे एक बाल्टी रंग दे दो ।” रंगरेज श्रीकृष्ण जी से प्रभावित था । उसने एक बाल्टी रंग की दे दी । बाल्टी लेकर श्रीकृष्ण जी पहुँच गए मथुरा के चौराहे पर और वहाँ जोर – जोर से कहने लगे, ” यहाँ पर मैं वस्त्र रंगता हूँ । जो भी अपना वस्त्र रंगवाना चाहे, आकर रंगवा ले, मुफ्त में ।” धीरे – धीरे लोगों की भीड़ लग गई । किसी ने अपना अंग वस्त्र दिया, तो किसी ने धोती, तो किसी ने कुर्ता, तो किसी ने चादर, तो किसी ने चोली । सबने अपनी – अपनी फरमाइश कही, ‘मुझे हरा चाहिए, मुझे लाल चाहिए, मेरे लिए पीला कर दो, मुझे नीला पसंद है, मेरे लिए सफेद चलेगा । श्रीकृष्ण जी सबकी फरमाइश सुन कर वस्त्र बाल्टी में डालते गए और निकाल करके लोगों को देते गए, उसी रंग में जो वे चाहते थे ।
ऐसा करते – करते सवेरे से शाम हो गई । लोगों की भीड़ अब बंद हो गई । श्रीकृष्ण जी अपनी बाल्टी उठाकर जाने वाले थे, कि एक आदमी आया और बोला, ‘मेरा एक कपड़ा रंगना बाकी है, आप रंग दीजिएगा ?’ श्रीकृष्ण जी ने बाल्टी नीचे रखी और कहा, ‘कपड़ा दो । किस रंग में रंगना है,बोलो ?’ व्यक्ति बोला, ‘उसी रंग में रंगिए जो रंग इस बाल्टी में है । सवेरे से शाम तक मैं देख रहा हूँ, कि बाल्टी एक ही है आपके पास, लेकिन आप उस बाल्टी से सभी रंग निकाल रहे हैं । जो जैसा कह रहा है, वैसा ही रंग आप दिए जा रहे हैं । मेरी अपनी कोई मर्जी नहीं है, रंग की । जो रंग इस बाल्टी में है, उसी रंग में आप मेरे इस वस्त्र को रंग दीजिए ।’ कृष्ण झिजक गए । व्यक्ति को गले लगा लिया । बड़े प्रेम से मुस्कुरा के नटखट श्याम बोले तुमने मुझे पहचान लिया । वही होता है जो मैं चाहता हूं, मैं भी उनको अनजान बने देता हूं ।
कृष्ण ही सब कुछ है, मित्र, सखा, हमसाया ।
प्रभु तुम्हारी कृपा मुझ पर बनी रहे ।
कृष्ण की जय हो । धर्म की विजय हो, अधर्म का नाश हो ।
यही हम सब की प्रार्थना होनी चाहिए ।
उसी रंग में रहना रे बंदे, उसी रंग में रहना, जिस रंग में परमेश्वर राखे, उसी रंग में रहना