34.1 C
New Delhi

वीरों का बसंत : वीरों के जीवन में केवल एक ही रंग होता है…..रक्त का, शौर्य का, बाहुबल का रंग ,लाल रंग!

Date:

Share post:

बसंत! ऋतुओं में ऋतुराज! सबके लिए इसके अपने मायने हैं,अपने अर्थ हैं! जहां यह बच्चों के लिए रँग और गुलाल का आकर्षण लेकर आता है, भक्तों के लिए शिवरात्रि लेकर आता है, वही प्रेमियों के लिए प्रेम का मधुमास लेकर आता है!
पर न जाने क्यों, मैं इस वसंत न तो होली के रंगों की सोच रहा हूँ और न प्रेम के मधुमास के बारे में! मेरा मन हमेशा की तरह भारतवर्ष के इतिहास में अटका पड़ा है और मैं सोच रहा हूँ वीरों के वसंत के बारे में!

सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा है ……

“कह दे अतीत अब मौन त्याग, लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का कैसा हो वसंत!!

हल्दीघाटी के शिला खण्ड, ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड;दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो वसंत!!

हाँ! मैं सोच रहा हूँ कैसा होता होगा वसंत उस महाराणा का, जिसने घास की रोटी खाई और घास के बिस्तर पर सोया, पर अपने जीते जी मेवाड़ नहीं दिया!

महाराणा की तो छोडिय!जब अकबर ने महाराणा का एक “रामप्रसाद” नाम का हाथी जब्त कर लिया, तो उसके लाख प्रयत्नों के बाद भी रामप्रसाद ने मुगलों की रोटी नहीं खाई और पानी तक नहीं पिया! इसपर अकबर ने कहा था, जिसका हाथी मेरी गुलामी नहीं कर रहा है, वो क्या खाक मुझसे डरेगा!”

मैं सोच रहा हूँ, कैसा होता होगा वसंत, उस महान राणा सांगा का, जिसके केवल एक हाथ, एक पैर और एक आंख थी! शरीर पर अस्सी घाव थे फिर भी वह खानवा में बाबर से टकरा गया! उसके तोपों की आवाज सांगा को नहीं डिगा सकी!

मैं सोचता हूँ किस मिट्टी से बनी थीं भुजाएं उस बाजीराव पेशवा की, जिसने चालीस साल के अल्प जीवन में ही समूचे हिंदुस्तान को भगवा पताका के नीचे ला दिया था!

मैं सोचता हूँ किस मिट्टी का बना था, दिल्ली का वो अंतिम हिन्दू राजा, पृथ्वीराज चौहान ….जिसने हर बार गोरी को क्षमा किया, पर पराजय और बंदी बनने के बाद भी, केवल एक श्लोक सुनकर तीर चला दिया और शत्रु का संहार कर दिया!

क्या शौर्य रहा था उस महान छत्रपति का, जिसने अपने जीते जी मुगलों के दक्षिण पर राज करने के मंसूबे कभी कामयाब नहीं होने दिए और फिर उस महान राजा के बेटे को भी भला कोई कैसे भूल सकता है, जिसकी आंख निकाल ली गई, खाल नोच ली गई और अंततः सर काट दिया गया, पर उसने अपनी आंखें नहीं झुकाई!

मैं सोचता हूँ, कैसे मनाते होंगे वसंत गुरु गोविंद और उनके चार साहिबजादे! कैसे बीतते होंगे दिन, उस रणबांकुरे बंदा बहादुर के, जो साक्षात काल बनकर बरसता था मुगलों पर!

मैं सोचता हूँ, कैसे मनाती होंगी होली और रँग, महारानी लक्ष्मीबाई! कैसे टकराई होंगी वह अंग्रेजों से ,छोटे बच्चे को पीठ पर बांधकर!

मैं सोचता हूँ इन सबके बारे में! और देर तक सोचने पर बस यही पाता हूँ कि इनके जीवन में भी बंसत होता होगा! रँग होते होंगे! पर वो रँग, होली और गुलाल के नहीं, बल्कि रक्त के होते होंगे!

वीरों के जीवन में केवल एक ही रँग होता है…..रक्त का रंग, शौर्य का रँग, बाहुबल का रंग….लाल रँग! और वीरों के जीवन में वंसत, प्रेम का मधुमास लेकर नहीं, बल्कि शौर्य का पूर्वाभास लेकर आता है!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img

Related articles

प्रेमिम् ळब्धुं धर्मस्य भित्तयः त्रोटित्वा रुबीना खानतः अभवत् रूबी अवस्थी, कृतवती पाणिग्रहण ! प्रेमी को पाने के लिए मजहब की दीवारें तोड़कर रुबीना खान...

उत्तरप्रदेशस्य बहराइच जनपदस्यारक्षि स्थानम् देहात क्षेत्र वासिना एका युवती स्वप्रेमिम् ळब्धुं धर्मस्य भित्ति त्रोटितवती ! ताम् धर्म परिवर्तनम्...

प्रस्तुतभूतेन पूर्वम् ७२ हूरें चलचित्रम् निस्सरत् दंगलतः अग्रं ! रिलीज से पहले 72 हूरें फिल्म निकली दंगल से आगे !

निर्देशक: संजय पूरन सिंहस्य निर्देशने निर्मितं चलचित्रम् ७२ हूरें इत्या: टीजर प्रस्तुतस्यानंतरेन विशेष चर्चायामस्ति ! इदम् चलचित्रम् ७...

अजमेर ९२ चलचित्रतः खिन्न: जात: जमीयत कृतवान् चलचित्रे प्रतिबंधस्य याचना ! अजमेर 92 फिल्म से भड़के जमीयत ने की फिल्म पर बैन की माँग...

सत्य घटनासु आधृतं द कश्मीर द केरला स्टोरी च् चलचित्रयो साफल्यस्यानंतरम् अजमेर ९२ चलचित्रं १४ जुलै, २०२३ तमम्...

ज्ञायतु सूर्यदेवस्योत्पत्त्या: रहस्यं ! जानिए सूर्य देव की उत्पत्ति का रहस्य !

दिवाकरम् यदि विज्ञानस्य दृष्टितः द्रष्टु तु अपि सः भगवततः न्यूनम् न कुत्रचित् सूर्यम् विना जीवनस्य कल्पना कर्तुं न...