यूपी पुलिस ने कुछ दिन पहले आतंकी संगठन अंसार गजवातुल हिंद के दो आतंकियों को गिरफ्तार किया था। उसके बाद से अखिलेश यादव ने वोट बैंक की गंदी राजनीति शुरू कर दी।
जैसा बयान उन्होंने कोरोना वैक्सीन के लिए दिया था वैसा ही घटिया बयान उन्होंने इस बार भी दिया। अब दो आतंकियों की गिरफ्तारी पर उन्होंने कहा कि उनको भाजपा की पुलिस पर भरोसा नहीं है।
उनका क्या आशय है ऐसे घटिया बयान से ? यही कि इन आतंकियों को झूठे केस में फसाया गया है और उनको मुस्लिम होने के कारण फसाया गया है। अगले साल चुनाव होने वाले हैं और अखिलेश यादव ऐसा बयान देकर मुस्लिम वोट को अपने पाले में करने की कोशिश करेंगे ।
आतंकियों की तरफदारी करने वाले बयान ऐसे समय देकर अखिलेश यादव ने सुरक्षा एजेंसियों के मनोबल को तोड़ने और समाज में तनाव पैदा करने की कोशिश की है।
आज से दस वर्ष पहले आज ही के दिन (१३ जुलाई) को मुंबई के झवेरी बाजार, दादर और ओपेरा हाउस में बम धमाके हुए थे। जिसमे कई लोगो की जान चली गई थी, ये वो दौर था जब देश में आए दिन बम धमाके होते रहते थे।
नवंबर २००७ में यूपी में वाराणसी, फैजाबाद, और लखनऊ की कचहरी में बम विस्फोट हुए थे। इन धमाकों में १५ लोगो की जान चली गई थी और इससे दुगने लोग घायल हो गए थे। इसी वर्ष गोरखपुर में बम धमाके हुए थे और इसी वर्ष के दिसंबर के महीने में रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर भी धमाका हुआ था, जिसमे सात जवान शहीद हो गए थे।
ये सब भीषण आतंकी घटनाएं थी,जिसमे शामिल हुए कुछ लोगो को गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन जब २०१२ में अखिलेश यादव सत्ता में आए तो उन्होंने इन संग्धित आतंकियों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की पहल की थी।
पहले स्थानीय अदालतों ने उनके अरमानों पर पानी फेरा, फिर उच्च न्यायालय ने। सपा सरकार ने अपने घोषणा पत्र में लिखा था कि जिन बेकसूर लोगो को पकड़ा गया है उनको रिहा करवाया जाएगा।
आखिर सपा सरकार को कैसे पता चल गया कि पकड़े गए संग्धित आतंकी ’ बेकसूर’ है।
वो तो भगवान का शुक्र है कि अदालतों ने सक्रियता दिखाई और सपा सरकार की याचिकाओं को खारिज कर दिया,वरना पता नही कितने बेकसूर आतंकी छूट जाते और वो क्या क्या उत्पात मचाते।
एक और महत्वपूर्ण बात यह भी कि मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव ने जिन आतंकियों के मुकदमे वापस लेने चाहे थे, उन सभी को बाद में उम्र कैद से लेकर फांसी तक की सजा सुनाई गई।
अगर सपा सरकार ने इन आतंकियों को रिहा करवा दिया होता तो सारी सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल टूट जाता। आतंकियों के हौसले कितने बढ़ जाते और वो क्या क्या आतंकी घटनाओं को अंजाम देते।
अगर आज वर्तमान समय में सपा सरकार होती तो क्या उत्तर प्रदेश एटीएस इन आतंकी संगठनों को ढूंढ पाता? अगर पकड़ भी लेता तो सरकारी दवाब के कारण उसको छोड़ना पड़ जाता,और कितने निर्दोष लोगो की जान चली जाती।
जब तक किसी पर दोष सिद्ध नही हो जाता तब तक उसकी अपराधी नहीं माना जा सकता है और यह बात संग्धित आतंकियों पर भी लागू होती है। लेकिन इसका क्या मतलब कि आतंकियों की पैरवी की जाए? जो अखिलेश यादव ने करने का प्रयास किया।
ऐसा पहली बार नही हो रहा है वर्ष २००८ में जब बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था तब सलमान खुर्शीद ने कहा था कि सोनिया गांधी की आंखो में आंसू आ गए थे। कई नेता उस समय आतंकियों की पैरवी कर रहे थे।
बाटला हाउस एनकाउंटर में भागे हुए एक आरोपी आरिज खान उर्फ जुनैद को कुछ महीने पहले सजा सुनाई गई थी । जब यह सजा सुनाई गई थी तब सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, आदि से कुछ बोलते नही बना, क्योंकि वो बुरी तरह से बेनकाब हो गए थे।
कुलमिलाकर सपा और अन्य पार्टियां सता में आने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। इन आतंकी समर्थकों वाले नेताओं और पार्टियों को कोई मतलब नहीं है देश सेवा से, इन्हे बस अपनी जेब भरनी है,देश और जनता से इन्हे कोई मतलब नहीं है।
ऐसी पार्टियां,लोग, संस्थाएं जो भी आतंकियों के समर्थन में प्रदर्शन करने आते हैं इनकी वकालत करते हैं,सबसे पहले उनको जेल में बंद कर देना चाहिए।