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काशी विश्वनाथ का रक्तरंजित इतिहास

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सन 1644 ईसवी का काशी! संसार की प्राचीनतम नगरी! आदिनाथ शिव का निवास स्थान! भारतवर्ष की संस्कृति का केंद्र बिंदु! अयोध्या और मथुरा के बाद सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक! यह वो समय था ,जब समूचे उत्तर भारत में मुगलों का क्रूर शासन अपने चरम पर था और मुगल सत्ता अपने शबाब पर थी!

परन्तु इसी बीच गंगा मईया की गोद से एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसके मुखमंडल पर जन्म से ही शिव के समान आभा थी! उस बालक ने जन्मते ही ओंकार का उच्चारण किया और जन्म के कुछ ही बर्षों बाद शिव में उसकी आस्था दिन प्रतिदिन बढ़ती गई!

उसके बचपन में उसके सामने तमाम खिलौने रखे जाते, परन्तु उसे सबसे अधिक पसन्द डमरू और खेलने वाले त्रिशूल ही आते!

पिता का नाम था गंगाधर पंडित और पिता ने बालक की शिव में आस्था को देखते हुए उसका नाम शिवजी के ही नाम पर रख दिया….”रुद्र’…

रुद्र धीरे धीरे पिता से शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने लगा और कहते हैं मात्र चार वर्ष की आयु तक उसने रावण रचित शिवताण्डवस्त्रोत कंठस्थ कर लिया था और जब वह घाट पर खड़े होकर अपनी मधुर वाणी से तांडव का पाठ करता तो न सिर्फ लोग, बल्कि पशु और पक्षी भी वहां रुककर तांडव पाठ का श्रवण करते!

वह तेजस्वी बालक धीरे धीरे बड़ा होने लगा और उसकी समझ में आने लगा कि जबतक भारतवर्ष पर मुगल राज करेंगे, सनातन धर्म सुरक्षित नहीं रह सकता और यदि इसे सुरक्षित रखना है, तो शास्त्र के साथ साथ शस्त्र की शिक्षा भी अनिवार्य करनी होगी!

माला के साथ भाला लेकर चलना होगा! शिव के भोलेनाथ वाले स्वरुप को छोड़कर वास्तव में रुद्र बनना होगा!

कम उम्र से ही उसने अपने मित्रों का लड़ाका दल बनाना शुरू कर दिया था और वे रोज गंगा के उस पार जाकर धनुष बाण, तलवारबाजी और घुड़सवारी का अभ्यास किया करते!

पंडित जी समझाते तो वह कहता…..”पिताजी! जब स्वयं वेदों में ही शास्त्र के साथ शस्त्र शिक्षा अनिवार्य है, तो फिर इसमें सोचना क्या! और आज तो यह समय की मांग भी है!” पंडित जी रुद्र के उत्तर से निरुत्तर हो जाते!

समय बीतता गया! रुद्र का सारा दिन पहले काशी विश्वनाथ के पूजन के साथ आरम्भ होता और सांयकाल तक युध्दाभ्यास के साथ समाप्त होता!

इसी बीच औरँगजेब मुगल सत्ता की गद्दी पर बैठा और गद्दी पर बैठते ही उसने हिन्दू विरोधी कार्य करने शुरू कर दिए!
रुद्र के कानों तक भी उसके अत्याचारों की खबर पहुँचती!

कभी वह सुनता कि हजारों हिंदुओं को तलवार के दम पर मुसलमान बना दिया गया तो कभी सुनता कि मुगल सैनिकों द्वारा हिन्दू स्त्रियों का अपहरण और बलात्कार किया गया!

यह सब सुनकर उसकी आँखों में रक्त उतर आता और उसकी भुजाएं कड़कड़ा उठतीं! वह कहता…..”कसम भोलेनाथ की! इस दुष्ट से एक बार यदि सामना हो गया तो अपनी बलि देकर भी उसका सर काटूंगा!”

दिन बीतते गए! वह सुनता था कभी इस मंदिर को ध्वस्त किया गया, तो कभी इस मंदिर को! इसी बीच उसने सुना कि दक्खन में एक शेर ऐसा भी है,जिसने इस दुष्ट औरंगजेब के जीना हराम कर रखा है! उस योद्धा का नाम था छत्रपति शिवाजी! शिवाजी की गाथाएं सुन सुनकर रुद्र के मन में उनके प्रति आपार श्रद्धा जागृत हो गई थी!

फिर कुछ ही समय पश्चात काशी में खबर फैली कि दक्खन वाले शिवाजी को औरंगजेब ने धोखे से कैद कर लिया था किंतु महाराज अपनी बुद्धिमानी से टोकरे में बैठकर भाग निकले! यह खबर सुनकर रुद्र को बड़ी प्रसन्नता हुई!

उसकी प्रसन्नता और भी बढ़ी जब उसे ज्ञात हुआ कि आगरा से बचकर महाराष्ट्र जाने के क्रम में शिवाजी महाराज, काशी में पधारे हैं! खबर बड़ी गुप्त थी, किंतु पिता गंगाधर पंडित जी की पहुँच दूर दूरतक थी और उन्होंने किसी प्रकार इस बात का पता लगा लिया था और दोनों पिटापूत्र उस महान राजा के दर्शन के लिए पहुँचे भी थे!

रुद्र ने उस महान मराठा राजा को देखा और देखता रह गया! औरंगजेब से प्रतिशोध लेने की उसकी इच्छा और प्रबल हो उठी!

फिर आया 1669 का वर्ष! भारतवर्ष के लिए एक काला वर्ष, जिसने भारतवर्ष की आत्मा को छलनी कर दिया! सनातन के हृदयस्थल पर आघात किया!

दुष्ट औरंगजेब ने 1669 में काशी विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान जारी कर दिया!

मुगल सैनिक काशी में इस बात की खबर देने आए और यह सुनते ही रुद्र और उसके साथियों की भुजाएं फड़क उठीं! उनकी उंगलियां उन फरमान लाने वालों का गला घोंटने को आतुर हो उठीं! परन्तु, पिता के समझाने पर वह कुछ क्षण के लिए शांत हुआ!

आखिरकार 18 अप्रैल 1669 का वह काला दिन आ पहुँचा और मुगल सेनाएँ काशी में फैलने लगीं! औरंगजेब का स्पष्ट आदेश था कि हिंदुओं के सभी पूजास्थल और प्राचीन मंदिर ध्वस्त कर दिए जाएं!

सब कुछ मंजूर था, परन्तु शिव का अनन्य भक्त शिव का मंदिर कैसे टूटने देता! अपने जीते जी तो एकदम नहीं!

रुद्र ने ठान लिया कि वह गली गली जाकर लड़ाकों की फौज बनाएगा और अपने साथियों की मदद से स्वयं मुगलों से लोहा लेगा!

उसकी वाणी में ओज था! उसकी ललकार में दम था! उसकी बातों में वीरता का आकर्षण था! लोग, जुड़ते गए और काशी विश्वनाथ की रक्षा के लिए बहुत बड़ी संख्या में तो नहीं, फिर भी एक ठिक ठाक संख्याबल खड़ा हो गया!

सब काशी विश्वनाथ मंदिर को घेरकर खड़े हो गए! रुद्र अपने सबसे विश्वसनीय साथियों के साथ मंदिर के गर्भगृह की सुरक्षा में था!

बार बार उसकी नजर, शिवजी के उस ज्योतिर्लिंग की ओर जाती और वह “हर हर महादेव” कहता! इस उच्चारण से उसे शक्ति मिल रही थी! रुद्र, रुद्र बन रहा था!

तभी बाहर तीरों के चलने और तलवारें टकराने की आवाजें सुनाई देने लगीं! वह समझ गया कि आक्रमणकारी आ गए हैं! वह महादेव को प्रणाम करके, युद्ध के लिए सज्ज हो गया!

मुगल सैनिक संख्या में बहुत ज्यादा थे, फिर भी कटकर गिरने और चीखने की अधिकांश आवाजें उन्ही की आ रही थीं! काशी विश्वनाथ के रक्षक पूरी वीरता से लड़ रहे थे!

उन्हें लड़ना था, समूचे जगत के रक्षक, महादेव की रक्षा के लिए! और उन्हें मरना था, इतिहास में अमर होने के लिए!

एक एक कर, मंदिर के बाहर लगाई रुद्र की सुरक्षा पंक्ति के लड़ाके कटकर गिरने लगे!

“हर हर महादेव” का प्रचंड शोर हो रहा था! तलवारें टकरा रही थीं! ढाल आपस मे लड़ रहे थे! घोड़े हिनहिना रहे थे और हाथी चिग्घाड़ रहे थे!

तभी मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे पर किसी भारी चीज से टक्कर की आवाज हुई! रुद्र समझ गया कि अब समय आ पहुँचा है बाबा के लिए बलिदान होने का!

उसने तलवार ऊपर उठाई और जोर से चिल्लाया….

“हर हर महादेव……”

दरवाजे पर फिर टक्कर हुई! कई टक्करों बाद दरवाजा टूट गया और अंदर आते मुगल सैनिक रुद्र और उसके साथियों की तलवार से कटकर गिरने लगे!

वह पूरे वेग से तलवार नचा रहा था! रक्त के छींटों से उसका शरीर लाल हो चुका था! उसे भी कई जगह जख्म लगे थे,परन्तु उसे परवाह कहा थी!

उसके साथी वीरतापूर्वक लड़ रहे थे और बलिदान हो रहे थे!

“मारो काटो…” की आवाजें आ रही थीं!

किंतु शत्रु के भारी संख्याबल के आगे वो वीर लड़ाके कबतक टिकते!

अब रुद्र अकेला बच गया था, पर लग ही नहीं रह था कि उसे इस बात की परवाह है!

उसे तो केवल इस बात की परवाह थी कि अपने जीते जी इन म्लेच्छों को शिवजी को स्पर्श नहीं करने देना है!

उसने एक छुपे हुए साथी को इशारा किया कि अब उसके छुपे रहने का उद्देश्य पूरा करने का समय आ गया है! इशारा पाते ही वह साथी काशी विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग उठाकर भागा और मंदिर प्रांगड़ में बने कुएं में छलांग लगा दी!

उधर उसने छलांग लगाई और इधर एक वार से रुद्र की तलवार छटककर दूर जा गिरी!

परन्तु रुद्र, साक्षात रुद्र बन गया था! उस रणमत योद्धा का चेहरा तक पहचान नहीं आ रहा था!

शायद स्वयं महादेव अपने भक्त के भीतर समा गए थे!

तलवार गिरते ही उसने अपने कमर में बंधा चाकू निकाला और सामने आ रहे सैनिक के गले मे भोंक दिया! फिर उसे चलाकर मारा और एक और सैनिक को मार डाला!

जब मुगल्य सैनिकों ने उसे करीब आकर घेर लिया तो भी उसने हार नहीं मानी और “हर हर महादेव”….कहते हुए उसे पकड़ने आ रहे शत्रु के गले मे अपना नाखून घुसा दिया! रक्त का फव्वारा निकल पड़ा!

रुद्र का यह भीषण स्वरूप देखकर मुगल सैनिक बुरी तरह भयभीत हो गए!

आखिरकार उन्हें गोला बनाकर, चारो ओर से घेरकर रुद्र को पकड़ना पड़ा!

शेर, गीदड़ों के कब्जे में आ गया था!

“बड़ी सख्त जान है ये!” एक सैनिक बोला और रुद्र ने उसके मुंह पर थूक दिया!

उसे अपने घायल होने, पकड़े जाने या सामने आ रही मृत्यु का भय नहीं था, बल्कि उसे इस बात की खुशी थी कि उसने अपने जीते जी पापियों को शिवलिंग का स्पर्श करने नहीं दिया!

रुद्र ने जैसे ही उस सैनिक के मुंह पर थूका , उसने अपनी तलवार निकाली और रुद्र की गर्दन पर चला दी!

उस वीर बांकुड़े ने ….”हर हर महादेव ….” कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए!

रुद्र के बलिदान से शिव की पूजन स्थली लाल हो गई! पावन हो गई!

वह वीर योद्धा बलिदान हो गया! उसके बाद ही मंदिर तोड़ा जा सका! और उस दिन, केवल मंदिर नहीं टूटा था…..बल्कि भारतवर्ष का हृदय टूटा था! सनातन धर्म की आत्मा टूटी थी!

उस दिन केवल काशीवासी ही नहीं रोए थे, बल्कि शायद महादेव भी अपने पुत्र के बलिदान पर रोए होंगे!

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आशीष #शाही

पश्चिम #चंपारण, #बिहार

17/03/2021

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