यथार्थे कथानकमस्ति १२०६ ख्रीष्टाब्दस्य ! १२०६ ख्रीष्टाब्दे कामरूपे एकम् ओजपूर्णम् स्वरम् गुंजरति स्म ! बख्तियार खिलजी: त्वम् ज्ञानस्य मंदिरम् नालंदाम् दग्धित्वा कामरूपस्य (असम) धरायाम् आगत: !
असल में कहानी है सन् 1206 ईसवी की ! 1206 ईसवी में कामरूप में एक जोशीली आवाज गूंजती थी ! बख्तियार खिलजी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर कामरूप (असम) की धरती पर आया है !
यदि त्वम् त्वत् च् एकमपि सेनानी ब्रह्मपुत्रम् अतिक्रम्यतुम् शक्नुतः तर्हि माता चंड्याः (कामातेश्वरी) शपथम् अहम् जीवितमेव अग्नि समाधि ग्रहणिष्यामि-नृप: पृथु: !
अगर तू और तेरा एक भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा-राजा पृथु !
तस्यानंतरम् २३ मार्च १२०६ तममसमस्य धरायाम् एकम् इदृशं रणम् रणितं यत् मानवास्मितरेतिहासे स्वर्णाक्षरेषु अंकितमस्ति !
उसके बाद 27 मार्च 1206 को असम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है !
एकम् इदृशं रणम् यस्मिन् कश्चित सैन्यस्य सैनिका: रणितुमागता: तर्हि १२ सहस्राणि स्यु: जीवितानि च् केवलं १०० !
एक ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज के फौजी लड़ने आए तो 12 हजार हों और जिन्दा बचे सिर्फ 100 !
ये जनाः युद्धानामेतिहासम् पठिता:, ते ज्ञायन्ति तत यदा कश्चित द्वे सैन्ये रणतः तर्हि कश्चित एकम् सैन्यम् तर्हि मध्ये इव च् पराजितं ज्ञात्वा पलायति समर्पणं करोति वा !
जिन लोगों ने युद्धों के इतिहास को पढ़ा है वे जानते हैं कि जब कोई दो फौज लड़ती है तो कोई एक फौज या तो बीच में ही हार मान कर भाग जाती है या समर्पण करती है !
तु इति युद्धे १२ सहस्राणि सैनिका: रणिताः जीवतानि केवलं १०० ताः अपि आहता: ! इदृशं दृष्टांत संपूर्ण विश्वस्येतिहासे कश्चित न !
लेकिन इस लड़ाई में 12 हजार सैनिक लड़े और बचे सिर्फ 100 वो भी घायल ! ऐसी मिसाल दुनिया भर के इतिहास में संभवतः कोई नहीं !
अद्यापि गुवाहाटियः पार्श्व ततशिलालेखम् विद्यमानम् अस्ति यस्मिन् इति रणम् प्रति अलिखत् ! तं काळम् मुहम्मद बख्तियार खिलजी: बिहारस्य बङ्गस्य च् बहवः नृपान् जयमानः असमम् प्रति बर्धयति स्म !
आज भी गुवाहाटी के पास वो शिलालेख मौजूद है जिस पर इस लड़ाई के बारे में लिखा है ! उस समय मुहम्मद बख्तियार खिलजी बिहार और बंगाल के कई राजाओं को जीतते हुए असम की तरफ बढ़ रहा था !
इति काळम् तं नालंदा विश्वविद्यालयम् दग्धितः स्म सहस्राणि विद्वानाचार्यणां हनित: स्म ! नालंदा विश्व विद्यालये विश्वस्यानमोळं पुस्तकानि, पांडुलिपिन:, अभिलेखम् इत्यादि दग्ध्वा मृदा भवितं स्म !
इस दौरान उसने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया था और हजारों विद्वान आचार्यो का कत्ल कर दिया था ! नालंदा विवि में विश्व की अनमोल पुस्तकें, पाण्डुलिपियाँ, अभिलेख आदि जलकर खाक हो गये थे !
अयम् जेहादी खिलजी: मूलतः अफगानिस्तान वासिनः आसीत् मुहम्मद गोरिण: कुतुबुद्दीन ऐबकस्य वा संबंधिनासीत् ! अनंतरस्य काळस्य अलाउद्दीन खिलजी: अपि तस्य संबंधिनासीत् !
यह जेहादी खिलजी मूलतः अफगानिस्तान का रहने वाला था और मुहम्मद गोरी व कुतुबुद्दीन ऐबक का रिश्तेदार था ! बाद के दौर का अलाउद्दीन खिलजी भी उसी का रिश्तेदार था !
यथार्थे तः जेहादी खिलजी:, नालंदाम् मृदायां मेलित्वासमस्य मार्गे तिब्बत गमनमेच्छति स्म ! कुत्रचित तिब्बत तं काळम् चिनस्य, मंगोलिय:, भारतस्य, अरबस्य सूदूर पूर्वस्य वा देशानां मध्य वाणिज्यकर्मस्य एकम् महत्वपूर्णम् केंद्रमासीत् !
असल में वो जेहादी खिलजी नालंदा को खाक में मिलाकर असम के रास्ते तिब्बत जाना चाहता था !क्योंकि तिब्बत उस समय चीन, मंगोलिया, भारत, अरब व सुदूर पूर्व के देशों के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था !
खिलजी: यस्मिन् अधिपत्य कर्तुमेच्छति स्म ! तु तस्य मार्गमवरोधितुम् स्थित: आसीत् असमस्य नृपा: पृथु: येन नृप: बरथु: अपि कथ्यते स्म ! आधुनिक गुवाहाटियः पार्श्व द्वयो मध्य युद्धमभवताम् !
खिलजी इस पर कब्जा जमाना चाहता था ! लेकिन उसका रास्ता रोके खड़े थे असम के राजा पृथु जिन्हें राजा बरथू भी कहा जाता था ! आधुनिक गुवाहाटी के पास दोनों के बीच युद्ध हुआ !
नृप: पृथु: शपथम् नीत: तत कश्चितापि परिस्थित्यां सः खिलजिम् ब्रह्मपुत्र नदी अतिक्रमित्वा तिब्बतम् प्रति न गन्तुम् दाष्यति !
राजा पृथु ने सौगन्ध खाई कि किसी भी सूरत में वो खिलजी को ब्रह्मपुत्र नदी पार कर तिब्बत की ओर नहीं जाने देंगे !
सः तस्य वा आदिवासी योद्धा: विषयुक्त शराणि, खड्ग, भाला लघु तु तीक्ष्ण खड्गै: खिलजिण: सैन्यं असाधु प्रकारेण कर्तित: !
उन्होने व उनके आदिवासी यौद्धाओं नें जहर बुझे तीरों, खुकरी, बरछी और छोटी लेकिन घातक तलवारों से खिलजी की सेना को बुरी तरह से काट दिया !
स्थित्या भीत्वा खिलजी: स्व बहवः सैनिकै: सह बनस्य पर्वतानां लाभम् उत्थित्वा पलायनस्य प्रयत्नं कृतः ! तु असमका: तर्हि जन्मजात योद्धा: आसन् !
स्थिति से घबड़ाकर खिलजी अपने कई सैनिकों के साथ जंगल और पहाड़ों का फायदा उठा कर भागने लगा ! लेकिन असम वाले तो जन्मजात यौद्धा थे !
अद्यापि विश्वे तै: मुक्तवा कश्चित न पलायितुम् शक्नुता: ! तेन ताः पलायका: खिलजिन् स्व सूक्ष्म तु विषाक्त शरभि: छिद्रता: !
आज भी दुनिया में उनसे बचकर कोई नहीं भाग सकता ! उन्होने उन भगोडों खिलजियों को अपने पतले लेकिन जहरीले तीरों से बींध डाला !
अन्ते खिलजी: केवलं १०० सैनिकान् रक्षित्वा धरायाम् जानयो तिष्ठ्वा क्षमा याचिष्यति ! नृप: पृथु: तदा तस्य सैनिकान् स्व पार्श्व बंधनम् कृतः खिलजिम् च् केवलं जीवितं त्यक्त: !
अन्त में खिलजी महज अपने 100 सैनिकों को बचाकर जमीन पर घुटनों के बल बैठकर क्षमा याचना करने लगा ! राजा पृथु ने तब उसके सैनिकों को अपने पास बंदी बना लिया और खिलजी को अकेले को जिन्दा छोड़ दिया !
तेन अश्वे धृत: कथित: च् त्वम् पुनः अफगानिस्तान गच्छतु मार्गे च् यतपि मेलितं तेन कथ्यतु तत त्वया नालंदाम् दग्धित: स्म पुनः त्वया नृप: पृथु मेलित:, केवलं इत्येव कथित: जनै: !
उसे घोड़े पर लादा और कहा कि तू वापस अफगानिस्तान लौट जा और रास्ते में जो भी मिले उसे कहना कि तूने नालंदा को जलाया था फिर तुझे राजा पृथु मिल गया, बस इतना ही कहना लोगों से !
खिलजी: संपूर्ण मार्गे अति अपमानं अभवत् यदा तः पुनः स्व स्थानम् प्राप्त: तर्हि तस्य कथानक: श्रुत्वा तस्य इव भ्रातृज: अली मर्दान: इव तस्य शिरोच्छेदित: !
खिलजी रास्ते भर इतना बेईज्जत हुआ कि जब वो वापस अपने ठिकाने पंहुचा तो उसकी दास्ताँ सुनकर उसके ही भतीजे अली मर्दान ने ही उसका सर काट दिया !
तु कति दुःखद वार्तास्ति तत इति बख्तियार खिलजिण: नामे बिहारे एकस्य क्षेत्रस्य नाम बख्तियारपुरमस्ति तत्र च् रेलवे जंक्शन अपि अस्ति !
लेकिन कितनी दुखद बात है कि इस बख्तियार खिलजी के नाम पर बिहार में एक कस्बे का नाम बख्तियारपुर है और वहां रेलवे जंक्शन भी है !
यद्यपि अस्माकं नृप: पृथो: नामस्य शिलालेखमपि अन्वेषणं कर्तुम् भवति ! तु यदा स्वैव देश भारतस्य नाम भारत कृताय न्यायालये याचिका दत्तुम् भवितं तदावगम्यतुम् शक्नोति तत किं इदृशं भवितुम् भविष्यति !
जबकि हमारे राजा पृथु के नाम के शिलालेख को भी ढूंढना पड़ता है ! लेकिन जब अपने ही देश भारत का नाम भारत करने के लिए कोर्ट में याचिका लगानी पड़े तो समझा जा सकता है कि क्यों ऐसा होता होगा !
उपरोक्त लेखम् पठनस्यानंतरमपि यदि कापुरुषे, नपुंसके एवं तथाकथित देशद्रोहियि, धर्मनिरपेक्षे, बुद्धिजीवियि स्वार्थी हिन्दुषु वा एकत: भावनाम् न जागृता: तर्हि का कथ्यन्तु इदृशान् जनान्, भवन्तः अपि बदन्तु !
उपरोक्त लेख पढ़ने के बाद भी अगर कायर, नपुंसक एवं तथाकथित गद्दार धर्म निरपेक्ष बुद्धिजीवी व स्वार्थी हिन्दूओं में एकता की भावना नहीं जागती तो क्या कहें ऐसे लोगों को, आप ही बताइए !