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नूपुर शर्माम् करणीया, अधुना सर्वोच्च न्यायालयस्य आश्रयं ! नुपूर शर्मा को करना चाहिए, अब सर्वोच्च न्यायालय का सहारा !

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इति कलहस्य अंतस्य सर्वात् सरलमुपायं इदमेवास्ति तत नूपुर शर्मायां सरलं सर्वोच्च न्यायालये अभियोगं चरितं ! नूपुरस्याधिवक्ता न्यायालये सिद्धम् करोतु तत का तस्या: क्रयिन् यत् कथनम् दत्तमासीत्, तत हदीसे लिखितमस्ति तत न !

इस विवाद का अंत करने का सबसे आसान तरीका यही है कि नुपूर शर्मा पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में केस चले ! नुपूर के वकील अदालत में साबित करें कि क्या उनकी मुवक्किल ने जो बयान दिया था, वो हदीस में लिखा है कि नहीं !

तत्रैवोत्तरे मुस्लिमपक्षस्य कपिल सिब्बल: यथा अधिवक्ता:, इदम् सिद्धम् कुर्वन्तु तत हदीसे इदृशं लिखितमस्ति तत न ! न्यायालये विस्तारेण सह एकं सारगर्भित वादयुद्धम् हदीसे असि ! एके-एके-पृष्ठे चर्चामसि ! न्यायालयस्य पूर्ण प्रोसिडिंग साधारण जनाः एव प्रेषयतु !

वहीं जबाव में मुस्लिम पक्ष के कपिल सिब्बल जैसे वकील, ये साबित करें कि हदीस में ऐसा लिखा है कि नहीं ! कोर्ट में विस्तार के साथ एक सारगर्भित बहस हदीस पर हो ! एक-एक पन्ने पर चर्चा हो ! कोर्ट की पूरी प्रोसिडिंग आम जनता तक पहुंचाई जाये !

पुनः सर्वोच्चन्यायालयं इदम् निर्णयं ददातु तत बुखार्या: हदीसे का लिखितमस्ति तस्य चर्थम् का सन्ति ! हदीसस्य पूर्णव्याख्यामसि ! का नूपुर तथ्य हीनवार्ता बदिता पुनः वैदम् वार्ता सत्ये हदीसे लिखितमस्ति ! यदा १०० कोटि हिन्दुनां देशे न्यायालये प्रभु श्रीरामस्यास्तित्वे वादयुद्धम् भवितुं शक्नोति !

फिर सुप्रीम कोर्ट ये फैसला दे कि बुखारी की हदीस में क्या लिखा है और उसके मायने क्या हैं ! हदीस की पूरी व्यख्या हो ! क्या नुपूर ने मनगढ़ंत बात बोली या फिर ये बात सही में हदीस में लिखी है ! जब 100 करोड़ हिंदुओं के देश में कोर्ट में प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर बहस हो सकती है !

यदा श्रीरामं न्यायालये काल्पनिक बदितुं शक्नोति ! अन्य तर्हि अन्य न्यायालयानि श्रीरामस्य जन्म स्थानस्य धार्मिक मान्यतासु निर्णयाय १५० वर्षाणि शृणुनम् कर्तुं शक्नोति तर्हि हदीसे का लिखितमस्ति का च् न लिखितमस्ति, यस्मिन् न्यायालयं किं शृणुनं कर्तुं शक्नुतं ?

जब श्रीराम को अदालत में काल्पनिक बताया जा सकता है ! और तो और अदालतें श्री राम के जन्म स्थान की धार्मिक मान्यताओं पर फैसला करने के लिए 150 साल सुनवाई कर सकती है तो हदीस में क्या लिखा है और क्या नहीं लिखा है, इस पर कोर्ट क्यों सुनवाई नहीं कर सकता ?

हदीसस्य शिक्षान् गोपितं किं ? पूर्णमानवतां हदीसस्य ज्ञानेण किं वंचितुं कृतं ? अंततः स्वधार्मिक ग्रंथम् गृहीत्वा इयत् भयं किं ? द्वितीय धर्मस्य जनाः तर्हि स्वधार्मिकग्रन्थस्य प्रचारम् प्रसारम् कुर्वन्ति, भवन्तः स्वहदीसम् गोपितुं किं इच्छन्ति ?

हदीस की सीखों को छुपाना क्यों ? पूरी मानवता को हदीस के ज्ञान से क्यों वंचित करना ? आखिर अपने धार्मिक ग्रन्थ को लेकर इतना डर क्यों ? दूसरे धर्म के लोग तो अपने धार्मिक ग्रन्थ का प्रचार प्रसार करते हैं, आप अपनी हदीस को छुपाना क्यों चाहते हैं ?

अयोध्याभियोगस्य शृणुनस्य काळम् अज्ञातं कति हिंदू धर्मग्रंथान् उद्घातित्वा मुस्लिम पक्षं वादयुद्धम् कृतमासीत्, तु मया तर्हि स्मरणम् नागत: तत कदापि यस्मिन् हिंदूपक्षमापत्तिम् कृतमसि ! पुनः हदीसे तथ्यपरकचर्चाम् किं नासि ? सर्वम् स्पष्टम् भविष्यति !

अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान न जाने कितने हिन्दू धर्म ग्रंथों को खंगाल कर मुस्लिम पक्ष ने बहस की थी, लेकिन मुझे तो याद नहीं पड़ता कि कभी इस पर हिन्दू पक्ष ने आपत्ति ली हो ! फिर हदीस पर तथ्यपरक चर्चा क्यों न हो ? दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा !

तादृशमपीति देशे संविधानस्य सम्मानम् भवनीयं, कश्चित शरिया विधेयके देशम् किं चरितं ? हदीसेण संलग्नम् प्रकरणे न्यायालयं गमनेण किं भयं अनुभवति ? का इदम् भयं हदीसस्य सत्यं गृहीत्वा अस्ति ? यदा भवन्तः ज्ञानवाप्यां सर्वोच्चन्यायालयं गन्तुं शक्नोति तर्हि नूपुरस्य प्रकरणे अपि गच्छन्तु !

वैसे भी इस देश में संविधान का सम्मान होना चाहिए, किसी शरिया कानून पर देश क्यों चले ? हदीस से जुड़े मुद्दे पर कोर्ट जाने से क्यों डर लग रहा है ? क्या ये डर हदीस के सच को लेकर है ? जब आप ज्ञानवापी पर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हो तो नुपूर के केस में भी जाओ !

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