एकोनविंशतिनि सद्याम् नरेंद्र नाथस्य रूपे एकः इदृश: विभूति: भारतीय भूधरायाम् जन्म नीतः यतेतिहास निर्माणायेव निर्मितः स्म ! मात्र ३१ वर्षस्य उम्रे सः वैचारिक रूपे क्रांति आनीत: येन कालम् भारत आंग्लकाः आधीने आसीत् !
19वीं सदी में नरेंद्र नाथ के रूप में एक ऐसी शख्सित ने भारतीय भूधरा पर जन्म लिया जो इतिहास रचने के लिए ही बना था ! महज 31 साल की उम्र में उन्होंने वैचारिक तौर पर क्रांति लाये जिस समय भारत अंग्रेजों गुलामी में था !
नरेंद्र नाथेन विवेकानंद निर्मयस्य क्रमे सः वैचारिक क्रांतिम् विस्तारितः येन विश्वम् परितः मान्यता ळब्धानि ! पीएम नरेंद्र मोदी: सदैव स्व उद्बोधनेषु स्वामी महोदयस्य विचाराणां उल्लेखं कुर्वन्ति !
नरेंद्र नाथ से विवेकानंद बनने के क्रम में उन्होंने वैचारिक फलक को विस्तार दिया जिसे दुनिया की चारों ओर मान्यता मिली है ! पीएम नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में स्वामी जी के विचारों की जिक्र करते हैं !
स्वामी विवेकानंदं प्रति कथ्यते तत येन कश्चितैव अपि जनाः तः सः मेलित: तेन स्व कृतः ! एका वैदेशिका महिला स्वामी विवेकानंदं निकषागत्वा बदिता तत सा तेन पाणिग्रहण कर्तुम् इच्छति !
स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा जाता है कि जिस किसी भी शख्स से वो मिले उसे अपना बना लिया ! एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के करीब आकर बोली कि वो उनसे शादी करना चाहती है !
अस्य प्रकारस्याग्रहे विवेकानंद बदित: तत अंततः मयैव किं ? भवती ज्ञायतु न तत अहम् एकः यत्यास्मि ? महिला अबदत् तत अहम् भवतः यथैव गौरवपूर्ण:, सुशील: तेजयुक्त: च् पुत्रैच्छामि यस्य च् संभावना तदास्ति यदा भवान् मया पाणिग्रहण करोतु !
इस तरह के आग्रह पर विवेकानंद बोले कि आखिर मुझसे ही क्यों ? आप जानती नहीं की मैं एक सन्यासी हूँ ? औरत बोली कि मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूँ और इसकी संभावना तभी है जब आप मुझसे विवाह करें !
विवेकानंद: बदित: तत अस्माकं पाणिग्रहण तर्हि संभवम् नास्ति ! तु एकः उपायरस्ति अद्यतः अहमेव भवत्याः पुत्र निर्मयामि,भवती मम माता निर्मयतु भवतीम् मम रूपे मम यथा पुत्र ळब्धिष्यति ! महिला विवेकानंदस्य चरणयो पतिता बदिता च् तत भवान् साक्षात् ईश्वरस्य रूपरस्ति !
विवेकानंद बोले कि हमारी शादी तो संभव नहीं है ! लेकिन एक उपाय है आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूँ, आप मेरी मां बन जाओ आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जायेगा ! औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली कि आप साक्षात् ईश्वर के रूप है !
अस्यैव प्रकारम् स्वामी विवेकानंद: विदेश: गतः तर्हि तेन भगवा वस्त्रमोष्णीषम् च् दर्शित्वा जनाः अपृच्छन् भवतः शेष वस्तूनि कुत्रास्ति ? स्वामी महोदयः अबदत् तत मम पार्श्व केवलं इत्येव वस्तूनि अस्ति, अस्य प्रकारस्योत्तरे केचन जनाः परिहास कृतमानः कथिता: ततयम् कीदृशैव संस्कृतिमस्ति भवतः देहे केवलं एकः भगवा उत्तरछदः उपस्तृतः !
इसी तरह स्वामी विवेकानन्द विदेश गए तो उन्हें भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा आपका बाकी सामान कहां है ? स्वामी जी बोले कि बस मेरे पास इतना ही सामान है, इस तरह के जवाब पर कुछ लोगों ने मजा लेते हुए कहा कि यह कैसी संस्कृति है आपकी तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है !
पटलम् पदीनाम् यथा केचनापि परिधान नास्ति ? यस्मिन् स्वामी विवेकानंद महोदयः मंदं हसित: बदित: च् तत् अस्माकं संस्कृति भवतानां संस्कृतिभिः भिन्नमस्ति ! भवतानां संस्कृत्या: निर्माण भवतानां सौचिक: करोति ! यद्यपि अस्माकं संस्कृत्या: निर्माण अस्माकं चरित्रम् करोति !
कोट पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ?इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है ! आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते है ! जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है !
एकदा स्वामी विवेकानंद: विदेशम् गतः तत्र तस्य स्वागताय बहु जनाः आगताः स्म ताः जनाः स्वामी विवेकानंदं प्रति हस्त मेलनाय हस्तं बर्धितः आंग्ल भाषायां च् हरि:ओम कथितः यस्य उत्तरे स्वामी महोदयः द्वयौ हस्तौ संयुक्तवा नमस्ते इति कथितः !
एक बार स्वामी विवेकानंद विदेश गए जहां उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में हेलो कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कहा !
तान् जनाननुभूता: तत् संभवतः स्वामी महोदयं आंग्लभाषा नागच्छति तर्हि तेषु जनेषुतः एकः हिंद्यामपृच्छत् भवान् कीदृश: सन्ति ? तदा स्वामी महोदयः कथितः तत अहम् सम्यकमस्मि धन्यवाद: !
उन लोगों को लगा कि शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगों में से एक ने हिंदी में पूछा आप कैसे हैं ? तब स्वामी जी ने कहा कि आई एम फाइन थैंक यू !
तान् जनान् वृहदैवाश्चर्याभवत् तेस्वामी महोदयेन अपृच्छन् तत यदा वयं भवता आंग्लभाषायाम् वार्ता कृतानि तर्हि भवान् हिंद्याम् उत्तरम् दत्त: यदा वयं हिंद्यामपृच्छन् तर्हि भवान् आंग्लभाषायां कथिता: यस्य का कारणमस्ति ?
उन लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा कि जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है ?
इति प्रश्नस्य उत्तरे स्वामी महोदयः कथितः तत यदा भवान् स्वमातु: सम्मान करोति स्म यदा च् अहम् स्वमातु: आदरं करोति स्म यदा च् भवान् मम मातु: आदरम् कृतः तदाहम् भवतः मातु: आदरम् कृतः !
इस सवाल के जवाब में स्वामी जी ने कहा कि जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी मां का सम्मान किया तब मैंने आपकी मां का सम्मान किया !
यदि कश्चितापि भ्रातृन् भगिनी: आंग्लभाषायाम् बदितम् लिखितम् वा नागच्छन्ति तर्हि तेन कश्चितस्यापि संमुखम् त्रपित: भवस्यावश्यकतां नास्ति अपितु त्रपित: तर्हि तेन भवनीयाः येन हिंदी नागच्छन्ति कुत्रचित कुत्रचित हिंदी इव अस्माकं राष्ट्रभाषामस्ति ! अस्माभिः तर्हि इति वार्तायाम् गर्वम् भवनीयाः !
यदि किसी भी भाई बहन को इंग्लिश बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए !