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भारतस्य ततैकलेदृशं घटनाम् यदा, आंग्ला: एकेण सह ५२ क्रांतिकारिन् तिन्त्रिणिनः वृक्षे लंबिताः स्म ! भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब, अंग्रेजों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था !

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फोटो साभार गूगल

भारतस्य ततैकलेदृशं घटनाम् यदा, आंग्ला: एकेण सह ५२ क्रांतिकारिन् तिन्त्रिणिनः वृक्षे लंबिताः स्म ! तु वामपंथिनः इतिहासस्य इयत् वृहत् घटनाम् अद्यैव अगोचरिण: अंधकेषु आवृतं ! उत्तरप्रदेशस्य फतेहपुर जनपदे स्थितं बावनी इमली एकं प्रसिद्धं तिन्त्रिणिनः वृक्षमस्ति, यत् भारते एकः हुतात्मा स्मारक: अपि अस्ति !

भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब, अंग्रेजों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था पर वामपंथियों ने इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा ! उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है !

अस्यैव तिन्त्रिणिनः वृक्षे २८ अप्रैल १८५८ तमम् गौतम क्षत्रिय:, जोधा सिंह अटैया तस्य च् ५१ सह्योगिन् शूले दोलिताः स्म ! इदम् स्मारक: उत्तर प्रदेशस्य फतेहपुर जनपदस्य बिंदकी उपखंडे खजुआ ग्रामम् निकषा बिंदकी प्रखंडमुख्यालयेण त्रीणि किलोमीटर पश्चिमे मुगल मार्गे स्थितमस्ति ! इदं स्मारक: स्वतंत्रतासेनानिभिः कृतवान बलिदानानां प्रतीकमस्ति !

इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे ! यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है ! यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है !

२८ अप्रैल १८५८ तमम् आंग्लसैन्यै: बावन स्वतंत्रता सेनानी: एकस्य तिन्त्रिणिनः वृक्षे शूलम् दत्तमासीत् ! इदम् तिन्त्रिणिनः वृक्षमद्यपि उपस्थितमस्ति ! जनानां विश्वासमस्ति तत तं नरसंहारस्यानंतरम् तं वृक्षस्य विकासमवरुद्धम् ! १० मई १८५७ तमम् यदा बैरक पुर छावन्यां स्वतंत्रतायाः शंखनादम् कृतवान !

28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी ! ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है ! लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है ! 10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया !

तर्हि १० जून १८५७ तमम् फतेहपुरे क्रान्तिवीरा: अपि इति दिशायां पगम् बर्धिता: यस्य नेतृत्वं क्रियेत् स्म जोधासिंह अटैया ! फतेहपुरस्येव ५१ जनाः यस्य सह्योगिन: आसीत् ! एता: वीरा: सर्वात् प्रथम फतेह पुर प्रखंडम् एवं कोषागारम् स्वाधिपत्ये नीताः ! जोधा सिंह अटैयायाः मनसि स्वतंत्रतायाः अग्नि बहु कालतः प्रज्वलित: स्म ! तस्य संबंधम् तात्या टोपेतः निर्मितुं अभवत् स्म !

तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया ! फतेहपुर के ही 51 लोग इनके सहयोगी थे ! इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया ! जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी ! उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था !

मातृभूमिम् मुक्तकारितुं एतौ मेलित्वा आंग्लै: पांडु नद्या: तटे समाघातौ ! परस्परसंमुखस्य संग्रामस्य अनंतरम् आंग्ल सैन्यम् रणक्षेत्रम् त्यक्त्वा पलायितं ! एतौ वीरौ कर्णपुरे स्वध्वजम् स्थापितौ ! जोधासिंह हृदयस्य ज्वाला इयते अपि शांतम् न अभवत् ! सः २७ अक्टूबर, १८५७ तमम् महमूदपुर ग्रामे एकम् आंग्ल निरीक्षकमारक्षिम् च् तं काळम् दग्धित्वा हतः !

मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली ! आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया ! जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई ! उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया !

यदा ते एके गृहे वसित: स्म ! सप्त दिसंबर, १८५७ तमम् यः गंगापार रानीपुर आरक्षिकेंद्रे घातित्वा आंग्लस्य एकस्य गुप्तचरस्य वधम् कृतः ! जोधासिंह: अवधस्य एवं बुन्देलखण्डस्य क्रांतिकारी: संगठित्वा फतेहपुरे अपि अधिपत्यं कृतः ! आवागमनस्य सौविध्यं दर्शन् क्रान्तिकारिण: खजुहाम् स्व केन्द्रम् निर्मिता: !.

जब वे एक घर में ठहरे हुए थे ! सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया ! जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया ! आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया !

कश्चितेव देशद्रोहिन् गुप्तचरस्य सूचनायां प्रयागतः कर्णपुर गन्तुं कर्नल पावेल: इति स्थाने एकत्रितं क्रांतिसैन्ये घातम् कृतवान ! कर्नल पावेल: तस्य इति गढ़म् त्रोटितुं इच्छति स्म, तु जोधा सिंहस्य योजनाम् अचूकमासीत् ! सः गुरिल्ला युद्ध प्रणाल्या: आश्रयं नीत:, यस्मात् कर्नल पावेल: हतः !

किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया ! कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी ! उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया !

सम्प्रति आंग्ला: कर्नल नीलस्य नेतृत्वे सैन्यस्य नव समूहम् प्रेषिता: ! यस्मात् क्रांतिकारिन् बहु क्षतिम् अभवन् ! तु यस्यानंतरमपि जोधा सिंहस्य मनोबलम् न्यूनम् नाभवत् ! सः नवरूपेण सैन्यस्य संगठनस्य, शस्त्रसंग्रहस्य धनैकत्रीकरणस्य च् योजनां निर्मित: ! यस्मै सः छद्मवेषे प्रवासम् प्रारंभित: !

अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी ! इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी ! लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ ! उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी ! इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया !

तु देशस्येदम् दुर्भाग्यम् रमितं तत वीरभि: सह-सह अत्र देशद्रोहिन् अपि बर्ध्यन्ति ! यदा जोधसिंह अटैया अरगल नृपेण संघर्षहेतु विचार-विमर्शित्वा खजुहा पुनः आगच्छति स्म, तर्हि कश्चितेव गुप्तचरस्य सूचनायां ग्राम घोरहायाः पार्श्व आंग्लानां अश्वसैन्यम् तेनावृतं ! किंचितकालांतरस्य संघर्षस्यानंतरमिव जोधा सिंह स्व ५१ क्रान्तिकारिभिः सखाभिः सह अवरुद्धमभवत् !

पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं ! जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया ! थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये !

२८ अप्रैल, १८५८ तमम् मुगल मार्गे स्थितं तिन्त्रिणिनः वृक्षे तेन स्व ५१ सखाभिः सह शूलम् आरोपिता: ! तु आंग्लानां बर्बरतात्रैव न विरमिता: ! आंग्ला: सर्वाणि स्थानानि उद्घोषम् कृतवन्तः तत यत् कश्चितापि शवान् वृक्षात् अवतारिष्यति तेनापि तत वृक्षेण लम्बिष्यते !

28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी ! लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी !अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा !

यस्यानंतरम् बहुदिवसानि एव शवा: लंबिताः श्येन: गृध्र: च् भक्षितुं रमिताः ! अंततः सम्राट भवानी सिंह: स्वसखाभिः सह ४ जूनम् गत्वा शवान् वृक्षतः अधो अवतरित: अंतिम संस्कारम् कृतवन्तः च् ! बिंदक्या: खजुहायाः च् मध्य स्थितं तत तिन्त्रिणिनः वृक्षमद्य (बावनी इमली) स्मारकस्य रूपे स्मरते !

जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे ! अंततः महाराजा भवानी सिंह अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया गया ! बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है !

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