महंत पन्ना कूपे कूर्दनेण पूर्वम् नंदिण: पार्श्व गतः, नेत्रे आवृतस्य तस्य च् कर्णे कथितुं आरंभितः, विपत्ति भगवतः रामे अपि आगतवान स्म, त्रिलोक स्वामिनी सीताम् रावण: हरित: स्म !
महंत पन्ना कुंए मे कूदने से पहले नंदी के पास गए, आँखे बंद की और उनके कान में कहने लगे, विपत्ति भगवान राम पर भी पड़ी थी, त्रिलोक स्वामिनी माता सीता को रावण हर ले गया था !
यदा हनुमत महोदयः मातु: अन्वेषणे अशोक वाटिका प्राप्त: तयाः च् स्वेण सह चरितुं कथित: तर्हि माता नकृता कथिता च् सीतायाः प्रतीक्षैव श्री रामेण लंकायाः विनाशस्य प्रेरणाभविष्यति !
जब हनुमान जी माता की खोज में अशोक वाटिका पहुँचे और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा तो माता ने मना कर दिया और कहा कि सीता की प्रतीक्षा ही श्रीराम द्वारा लंका के विनाश की प्रेरणा बनेगी !

यदि त्वया सहाहम् गमिष्यामि तर्हि कदाचित मया लब्ध्वा श्रीराम: पुनः गमिष्यति, अतएव भो पुत्र मया प्रतीक्षाकर्तुं ददातु ! भो नंदी महोदयः, इदमेव वार्ताहं भवतम् स्मरणम् कारयामि, प्रतीक्षा करोतु, इति तीर्थस्योद्धार कर्तुं कश्चित न कश्चितावश्यं आगमिष्यति !
यदि तुम्हारे साथ मैं जाऊंगी तो कदाचित मुझे पाकर श्रीराम वापस चले जाएंगे, इसलिए हे पुत्र मुझे प्रतीक्षा करने दो ! हे नंदी महाराज, यही बात मैं आपको स्मरण करा रहा हूँ, प्रतीक्षा करना, इस तीर्थ का उद्धार करने कोई न कोई अवश्य आएगा !
माता सीता सम विश्वासम् धृत्वा प्रतीक्षा कर्तुं, मम अंशे समाधि आगमिष्यति भवतम् अंशे प्रतीक्षामस्ति शिववाहन: ! इदम् कथित्वा महंत पन्ना कूपे कुर्दितः ! आतंकिनां समुहमागतं, अविमुक्तेश्वर क्षेत्रम् ध्वस्तम् कृतवान !
माता सीता सा विश्वास रखकर प्रतीक्षा करना, मेरे हिस्से समाधि आएगी आपके हिस्से प्रतीक्षा है शिव वाहन ! यह कहकर महंत पन्ना कुंए में कूद गए ! आताताइयों की फौज आई, अविमुक्तेश्वर क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया गया !
नंदी जटायु इव हतभूत्वा इदम् दर्शितुं रमित: पुनः एकदिवसं एका राज्ञी आगता, तां महादेवम् आंचलेन उत्थिता, नंदी दर्शित: तस्य सिरे मातानुसुइयायाः वात्सल्य स्पर्शम् भवति स्म तु नंदिण: प्रतीक्षा शेषम् आसीत् ! सद्य: विगतानि, युगम् परिवर्तितं, नंदी दिवसं गणयति स्म !
नंदी जटायु से हत होकर यह देखते रहे, फिर एक दिन एक रानी आयीं, उसने महादेव को आँचल से उठाया, नंदी ने देखा उनके सिर पर माँ अनुसूइया का वात्सल्य स्पर्श हो रहा था पर नंदी की प्रतीक्षा शेष थी ! सदियाँ बीतीं, युग बदला, नंदी दिन गिन रहे थे !
एकदिवसं नंदी दर्शित: अविमुक्तेश्वरक्षेत्रस्य पुनरुद्धारं भवति, सः शृणुत: नवभारतस्य नृप: काशिण: कायकल्पस्यादेशम् दत्तवान ! एकदिवसं नंदिण: गातं मातागंगायागंतुकं पवनम् स्पर्शित: !
एक दिन नंदी ने देखा अविमुक्तेश्वर क्षेत्र का पुनरुद्धार हो रहा है, उन्होंने सुना नए भारत के राजा ने काशी का कायाकल्प करने का आदेश दिया है ! एक दिन नंदी के शरीर को माँ गंगा से आने वाली हवाओं ने छुआ !
३५२ वर्षाणि विगतानि मातागंगाम् दृष्टं ! नंदिण: आनंदम् पुनरागत:, विश्वनाथधामस्य अलौकिकता पुनरागतं, तु नंदी अद्यापि ज्ञानवापी तीर्थम् प्रति विक्ष्यति स्म, महंत पन्नाम् विक्ष्यति स्म !
तीन सौ बावन साल बीत गए माँ गंगा को निहारे ! नंदी का आनंद लौट आया, विश्वनाथ धाम की अलौकिकता लौट आयी पर नंदी अभी भी ज्ञानवापी तीर्थ की ओर देख रहे थे, महंत पन्ना को देख रहे थे !
नवभारतस्य नृपस्य खंडित कार्यानां कीर्त्यां नंदिण: तप: बलवती अभवत् ! तेनेदम् ज्ञाने आगतः तत महादेवस्य कार्यार्धमस्ति, मातागंगाया कृतं दृढ़कथनं अर्धमस्ति ! तं आदिष्ट: तत ज्ञानवापी तीर्थम् मुक्तम् क्रियेत् ! कूपे समाधिस्थ महंत पन्ना हर्षित:, नंदिण: प्रतीक्षा पूर्णभवितमस्ति !
नए भारत के राजा के खंडित कार्यों की कीर्ति पर नंदी का तप भारी पड़ा ! उसे यह समझ में आया कि महादेव का काम अधूरा है, माँ गंगा से किया हुआ वादा अधूरा है ! उसने आदेश दिया कि ज्ञानवापी तीर्थ को मुक्त किया जाए ! कुंए में समाधिस्थ महंत पन्ना मुस्कराये, नंदी की प्रतीक्षा पूर्ण होने को है !