फोटो साभार सोशल मीडिया
कैलाश पर्वतं, यत्र वासमस्ति देवानां देवः महादेवस्य, यत्राद्यैव कश्चितापि जनाः न प्राप्तुं शक्नुता:, तादृशम् तर्हि विश्वस्य सर्वात् उच्चै: शिखरम् गौरी शंकरमस्ति यस्मिन् च् ७००० सहस्र जनाः अधुनैव प्राप्तवंता: !
कैलाश पर्वत, जहाँ निवास स्थान है देवो के देव महादेव का, जहाँ पर आज तक कोई भी व्यक्ति नहीं पहुँच सका, वैसे तो विश्व की सबसे ऊँची चोटी गौरी शंकर (माउंट एवरेस्ट )है और जिस पर 7000 हजार लोग अभी तक पहुँच चुके हैं !
तु किं कारणमस्ति तत यस्मात् लघु कैलाश पर्वते अद्यैव कश्चितापि जनाः प्राप्तुं न शक्नुता:, इदृशम् न अस्ति तत तत्र प्राप्तस्य प्रयत्नम् न कृतवान ! तत्र प्राप्तुं बहवः प्रयासम् कृतवन्तः ! तु सर्वा: साफल्यं न लभते !
पर क्या कारण है कि उससे छोटे कैलाश पर्वत पर आज तक कोई भी व्यक्ति नहीं पहुँच सका, ऐसा नहीं है कि वहाँ पर पहुँचने की कोशिश नहीं की गई ! वहाँ पर पहुँचने के लिए अनेक प्रयास किये गये ! परंतु सभी असफल रहे !
कुत्रचित् तत्रारोहणम् कर्तुं गतवन्तः जनैः सह केचन इदृशमेव घटना: अभवत् यस्मात् तेषां विस्मित: कृतवान, तत्रारोहणम् कर्तुं गतवन्तः जनानां कथनम् अस्ति तत तत्रारोहणम् कृतस्यानंतरम् तत्र काळम् बहुतीव्रतायाग्रम् बर्धिते अकस्मात् च् हस्तयो: नख केशम् च् बहुदीर्घम् भवन्ते !
क्योंकि वहाँ पर चढ़ाई करने गए लोगों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिससे उनके होश उड़ गये, वहाँ पर चढ़ाई करने गए लोगों का कहना है कि वहाँ पर चढ़ाई करने के बाद वहाँ पर समय बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगता है और अचानक हाथ के नाखून और बाल बहुत बड़े हो जाते हैं !
यस्यातिरिक्तं तत्र अस्माकं कश्चित यंत्रम् कार्यम् न करोति दिग्भ्रम: च् भवति ! यदि बहु प्रयत्नम् कुर्वन्ति तर्हि अस्माभिः कश्चिताभासम् कारयति तत सम्प्रति मृत्यु सन्निकटमस्ति यंकारणं जनाः पुनरागच्छन्ति ! बहवः वैज्ञानिका: नासा च् स्वानुसंधानेणेदम् निष्कर्षं निस्सरेत् ततेदम् तत स्थानमस्ति !
इसके अलावा वहाँ पर हमारे कोई यन्त्र काम नहीं करते और दिशा भ्रम होता है ! अगर ज्यादा कोशिश करते हैं तो हमें कोई आभास कराता है कि अब मृत्यु निकट है जिस कारण लोग वापिस आ जातें हैं ! बहुत से वैज्ञानिक और नासा ने अपनी खोज से ये निष्कर्ष निकाला है कि यह वह स्थान है !
यत्र विज्ञानमनुत्तीर्णमस्ति ते च् इति स्थानम् धरायाः केंद्रम् मान्येत् ! ते कथ्यन्ति तत निश्चयमेवात्र कश्चित इदृशमेव शक्तिमस्ति यत् बहु अधिकं शक्तियुक्तमस्ति यस्य च् संमुखम् विज्ञानम् केचनापि न, तस्य कथनम् अस्ति ततेदम् पर्वत: प्राकृतिकं नास्ति !
जहाँ पर विज्ञान फेल है और उन्होंने इस स्थान को धरती का केन्द्र माना है ! वह कहते हैं कि निश्चय ही यहाँ पर कोई ऐसी शक्ति है जो बहुत अधिक शक्तिशाली है और जिसके सामने विज्ञान कुछ भी नहीं, उनका कहना है कि यह पर्वत प्राकृतिक नहीं है !
यस्य निर्माणम् कश्चित शक्ति: कृतवान इति पर्वतस्य च् ४ मुखानि सन्ति यत् चतुर्णां दिशानां प्रतिनिधित्वं कुर्वन्ति ! अस्माकं वेदेषु, रामायणे, महाभारते कैलाशस्य वर्णनमस्ति वयं अद्यापि मानसरसः यात्रा कुर्याम:, कैलाश पर्वते द्वे सरसि स्त: !
इसका निर्माण किसी शक्ति ने किया है और इस पर्वत के चार मुख हैं जो चारों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं ! हमारे वेदों, रामायण, महाभारत में कैलाश का वर्णन है हम आज भी मानसरोवर की यात्रा करते हैं, कैलाश पर्वत पर दो झीलें है !
एकं ब्रह्मरचितं दिनकरस्याकारस्य पवित्र: सर: येन वयं मानसर: कथ्यामः द्वितीयं राक्षस सर: यत् चंद्रस्याकारस्यास्ति, वैज्ञानिका: इदमपि स्वीक्रियेत् तत ययो: सरसो: निर्माणम् कृतवान !
एक ब्रह्मा द्वारा रचित सूर्य के आकार की पवित्र झील जिसे हम मानसरोवर कहते हैं और दूसरी राक्षस झील जो कि चन्द्र के आकार की है, वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि इन झीलों का निर्माण किया गया है !
यदा वयं मानसरसा दक्षिण दिशाम् प्रति पश्याम: तर्हि एकस्य स्वास्तिकस्य निर्माणम् अस्माभिः पश्याम: यस्य वैज्ञानिका: ज्ञाते अक्षम: रमन्ति, तथा ते इदम् ज्ञातमपि कर्तुं न शक्नुता: तत मानसरसि यदा हिम द्रवति तर्हि ढक्कस्य ॐ इत्या: च् ध्वनिम् कीदृशं कुत्रतः च् उद्भवति !
जब हम मानसरोवर से दक्षिण दिशा की ओर देखते हैं तो एक स्वास्तिक का निर्माण हमें दिखाई देता है जिसका वैज्ञानिक पता लगाने में नाकाम रहे हैं, तथा वह यह पता भी नहीं लगा सके हैं कि मानसरोवर पर जब बर्फ पिघलती है तो डमरू और ओम की ध्वनि कैसे और कहाँ से उत्पन्न होती है !
येन वयं स्पष्टम् शृणुतुं शक्नुम: ! कैलाश पर्वत तत स्थानमस्ति यत्र कालस्य प्रवेशं वर्जितमस्ति, कैलाश पर्वतस्य ४ मुखानि सन्ति, पूर्वे अश्वमुखम् यत् स्फटिकेण, पश्चिमे गजमुखम् यत् रक्तप्रस्तरेण, उत्तरे सिंहमुखम् यत् स्वर्णेन दक्षिणेन च् मयूरमुखम् यत् नील: प्रस्तरेण निर्मितमस्ति !
जिसे हम साफ सुन सकते हैं ! कैलाश पर्वत वह स्थान है जहाँ पर काल का प्रवेश वर्जित है, कैलाश पर्वत के चार मुख हैं, पूर्व में अश्व मुख जो कि क्रिस्टल से, पश्चिम में हाथी मुख जो कि रूबी से, उत्तर मे सिंह मुख जो कि स्वर्ण से और दक्षिण में मोर मुख जो कि नीलम से निर्मित है !
कैलाश पर्वतोपरि सदैवाश्मन् प्रकाशितुं रमति यस्य च् उपरितः कश्चित यान: खग: वा न निस्सरितुं शक्नोति, इदृशम् पवित्र स्थानमस्ति देवानां देवः महादेवस्य ! यत्राधुनिक विज्ञानमनुत्तीर्णमस्ति !
कैलाश पर्वत पर हमेशा बिजली चमकती रहती है और जिसके ऊपर से कोई जहाज या पक्षी नहीं निकल सकता है, ऐसा पवित्र स्थान है देवों के देव महादेव का ! जहाँ पर आधुनिक विज्ञान फेल है !