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वैश्विक हिताय हिंदुत्व सम्मेलने वक्ता: किं कथित: आगच्छन्तु ज्ञायन्ति ! वैश्विक हित के लिए हिन्दुत्व कांफ्रेंस में वक्ताओं ने क्या कहा, आइए जानते हैं !

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प्रथम दिवस का सारांश !

प्रथम दिवसं प्रणय कुमार: स्व वक्तव्ये कथित: तत वयं स्ववक्तव्ये हिंदुत्व सत्य भ्रांत्यां चर्चां करिष्यामि, सः कथित: तत हिंदुत्व किमस्ति, आगच्छन्तु ज्ञायन्ति, सः कथित: हिन्दुत्वस्य नाम सनातन दर्शनं अस्ति, सनातन दर्शने च् सर्वैव सत्यमेव सत्यमस्ति असत्यं केचनापि न !

प्रथम दिवस प्रणय कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि हम अपने वक्तव्य में हिंदुत्व सत्य और भ्रांति पर चर्चा करेंगे, उन्होंने कहा कि हिंदुत्व क्या है, आइए जानते हैं, उन्होने कहा हिंदुत्व का नाम सनातन दर्शन है, और सनातन दर्शन में सब कुछ सत्य ही सत्य है असत्य कुछ भी नहीं !

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स्व वक्तव्ये सः कथित: सनातनं किमस्ति ? इति प्रश्नस्योत्तरे सः ज्ञापित: तत कालस्य कसौट्यां यत् सत्यमसि तैव सनातनमस्ति ! सः अग्रम् कथित: तत अस्माकं धर्मे भ्रान्तिम् कुत्रातागतं ? यस्योत्तरे सः कथित: विद्वान पाठक: दर्शक: च् इदम् ज्ञायतुम् भविष्यति विगत सहस्रभि: वर्षभिः वयंसंघर्षे रमिता: विदेशिन: आततायिनां स्थित्वा समाघातम् कृता: !

अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा सनातन क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि काल की कसौटी पर जो सदैव खरा हो वही सनातन है ! उन्होंने आगे कहा कि हमारे धर्म में भ्रांति कहाँ से आयी ? इसके उत्तर में उन्होंने कहा विद्वान पाठक और दर्शक यह जानते होंगे विगत हजार वर्षों से हम संघर्ष में रहे विदेशी आततायियों का डटकर सामना किया !

इदम् मिथ्या कुप्रचारमस्ति तत वयं दास: रमिता: अपितु इदम् सत्यमस्ति तत वयं संघर्षरता: देशस्य च् प्रत्येक प्रान्ते अस्माभिः अवसरम् लब्धिता: तर्हि विदेशिन: आक्रांतानुन्मूलता: ! हिन्दू दर्शनम्, हिन्दू चिन्तनम्, हिन्दू विचारान् सदैव स्वहृदये उच्च स्थानं दत्ता: !

यह मिथ्या कुप्रचार है कि हम गुलाम रहे बल्कि यह सत्य है कि हम संघर्षरत रहे और देश के हर प्रान्त में हमें अवसर मिला तो विदेशी विधर्मी आक्रांताओं को उखाड़ फेंका ! हिन्दू दर्शन,हिन्दू चिंतन,हिन्दू विचारों को सदैव अपने हृदय में ऊंचा स्थान दिया !

भ्रंति यत् वास्तवे उत्पादितं तत स्वतंत्रता ळब्धस्य अनंतरमभवत् ! दुर्भाग्यतः स्वतंत्रता ळब्धस्यानंतरम् यस्य हस्तेषु देशस्य सत्ता रमति सः एकैव कुटुंबस्य हस्तेषु रमति, यत् पाश्चात्य सभ्यतायाः ओतम् प्रोतम् रमित: ! तस्य मूलम् भारतीय न रमित:, यत् च् कष्टकारकं अभवत् तत वामपंथिन: धर्मनिर्पेक्षक: वा कृताः !

भ्रांति जो वास्तव में उत्पन्न हुई है वह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुई है ! दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिनके हाथ में देश की सत्ता रही है वह एक ही परिवार के हाथों में रही है, जो अंग्रेजियत के रंगों में पूर्ण रूप से रंगी रही ! उसकी जड़े भारतीय नहीं रही, और जो कोढ़ में खाज का काम किया वह वामपंथियों व छद्म धर्मनिरपेक्षों ने किया !

एताः जनाः युवानां हृदये विष संचरणस्य कार्यम् कृताः ! सः युवाषु नैतिक विचारमुत्पन्नैव न भवितुम् दत्ता: ! यस्य परिणाममिदमस्ति तत अद्य हिन्दू दर्शनेण, हिन्दू चिन्तनेण, हिन्दू विचार परम्पराया, स्व जीवन मूल्येण, स्व संस्कारै:, शत्रु मित्र बोधेण, सम्यक संतुलितं च् सत्येतिहासम् च् बोधेण अद्यस्य वंशज: पूर्णतया वंचितम् सन्ति !

इन लोंगों ने युवाओं के हृदय में जहर घोलने का काम किया ! उन्होंने युवाओं में नैतिक सोंच को पैदा ही नहीं होने दिया ! जिसका परिणाम यह है कि आज हिन्दू दर्शन, हिन्दू चिंतन, हिन्दू विचार परम्परा अपने जीवन मूल्य, अपने संस्कारों, शत्रु मित्र बोध, सम्यक और संतुलित और सत्य इतिहास बोध से आज की पीढ़ी पूर्णतया वंचित है !

केचन संलग्ना: ते स्व कुटुंबै: हिंदू संस्कारान् ग्रहणम् कुर्वन्ति कुत्रचित कुटुंब अस्माकं सर्वात् वृहदाधारम् तु तेषु अपि ताः जनाः घातम् कर्तुमारंभिताः ! हिन्दू सत्य भ्रमेत्यादयं ज्ञेयमस्ति तर्हि वयं सत्यम् ज्ञायन्तु तर्हि भ्रमम् संपादितुम् भविष्यते ! अज्ञानैव भ्रमस्य कारणम् सत्यमेव च् भ्रमस्य निवारणम् !

कुछ जुड़े हुए हैं वे सभी अपने परिवारों से हिन्दू संस्कारों को ग्रहण कर रहे हैं क्योंकि परिवार हमारा सबसे बड़ा आधार है लेकिन उस पर भी उन लोगों ने हमले करना शुरू कर दिया है ! हिन्दू सत्य भ्रम आदि को जानना है तो हम सत्य को जान ले तो भ्रम समाप्त हो जाएगा ! अज्ञान ही भ्रम का कारण और सत्य ही भ्रम का निवारण है !

सदीनां तपस्यायानुभवेण च् वयं एकैव इदृशैव जीवन पद्धति विकसितं येषु विचाराणां स्वतंत्रता रमितं, पूजा पद्धत्या: विभिन्नतां रममानः अपि स्व स्व अनुरूपेण ईश्वरस्य चिंतनमेव हिन्दुत्वम्, हिंदुत्वस्य चिंतनेण इव मनुजस्य सर्वतोमुखी विकासमभवत् !

सदियों की तपस्या और अनुभव से हम एक ऐसी जीवन पद्धति विकसित की जिसमें विचारों की स्वतंत्रता रही, पूजा पद्धति की विभिन्नता रहते हुए भी अपने अपने तरीके से ईश्वर का चिंतन ही हिंदुत्व है, हिंदुत्व के चिंतन से ही मनुष्य का सर्वतोमुखी विकास हुआ है !

बाइबिल कथ्यति तत मनुज: पापस्योद्भवमस्ति तैव अद्य अस्माभिः शिक्षयन्ति ! तै: एकदा विचारणीयं मनुजस्य उत्पत्त्या: तस्य निष्कर्षे कीदृशैवासंगततां, वयं न मानयामः तत मनुज: पापस्योद्भवम्, कुत्रचित अस्माकं अत्रेदमवधारणाम् अद्यापि तत संतानोत्पत्ति ईश्वरस्य दानमस्ति !

बाइबिल कहता है कि मनुष्य पाप की उपज है वही आज हमें सीख देते हैं ! उन्हें एक बार विचार करना चाहिए मनुष्य की उत्पत्ति के उनके निष्कर्ष में कैसी असंगतता है, हम नहीं मानते कि मनुष्य पाप की उपज है, क्योंकि हमारे यहां यह अवधारणा आज भी है कि संतानोत्पत्ति ईश्वर की देन है !

आत्मा परमात्मा च् द्वय नापितु एकैव सत्तायाः द्वयो पृथक पृथक रूपमस्ति वयमेव कथिता: तत नरे नारयणे च् कश्चित अंतरम् न कुत्रचित द्वयो सृष्टि चक्रस्य पुरकौ स्त:, अद्य ईसाईयत इत्यस्य विस्तारवदिन् राज्यवादिन् चिन्तनम् सर्वान् पाश्चात्य सभ्यतां प्रति प्रेरितानि कुत्रचित तस्य प्रदर्शनमेव इति प्रकारम् रमति तत सः सर्वा: युवा: ग्रहणतुमिच्छन्ति !

आत्मा और परमात्मा दो नहीं अपितु एक ही सत्ता के दोनों अलग अलग रूप है हमीं ने कहा कि नर और नारायण में कोई अंतर नहीं क्योंकि दोनों सृष्टि चक्र के पूरक है, आज ईसाइयत के विस्तारवादी राज्यवादी चिंतन ने सबको पाश्चात्य सभ्यता की ओर प्रेरित किया है क्योंकी उनका प्रदर्शन ही इस तरह रहा है कि वह सभी युवा ग्रहण करना चाहते हैं !

मजहब रिलीजन धर्म इति च् समं न सन्ति कुत्रचित मजहब इतस्य अर्थ संकुचितमस्ति रिलीजन केवलं जनवादम् निरूपयति तु धर्मम् प्रत्ये कथ्यते धार्यते इति धर्म: अर्थतः येषु धारणस्य शक्तिमसि तैव धर्म: मुस्लिम सम्प्रदाये कथितं तत यत् भिन्न जात्या: असि तेन निर्मूलयन्तु, तु हिन्दू धर्मम् कथ्यति सर्वेषु दयाम् कुर्वन्तु !

मजहब रिलीजन और धर्म समान नहीं हैं क्योंकि मजहब का अर्थ संकुचित है रिलीजन केवल व्यक्ति वाद को निरूपित करता है परंतु धर्म के बारे में कहा जाता रहा है धार्यते इति धर्म: अर्थात जिसमें धारण करने की शक्ति हो वही धर्म है मुस्लिम सम्प्रदाय में कहा गया कि जो गैर जाति का हो उसे समाप्त कर दो, परन्तु हिन्दू धर्म कहता है सब पर दया करो !

ईसाईन: स्वम् केचन परिवर्तितमस्ति तु मुस्लिम: अद्यापि स्व एकस्य पुस्तकस्य लेखम् जनान् मान्यतुं इच्छति ! तस्य पुस्तकम् कथ्यति धरा करपट्टिका इव अस्ति, धरा न भ्रमयति अपितु दिनकर: भ्रमयति किं इदम् तर्कमुचितमस्ति तर्हि भवन्तः स्वयं स्वेभ्यः प्रश्नं कुर्वन्तु ज्ञायन्तु च् किमुचितमस्ति किमनुचितमस्ति !

ईसाइयों ने अपने आप को कुछ बदला है परंतु मुस्लिम आज भी अपनी एक किताब के लिखे को लोगों को मनवाना चाहते है ! उनकी किताब कहती है कि धरती चिपटी है, धरती चक्कर नहीं लगाती अपितु सूर्य चक्कर लगाता है क्या यह तर्क उचित है तो आप स्वयं अपने आप से प्रश्न करिए और जानिए क्या उचित है क्या अनुचित !

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