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वस्तुतः जनाः सत्यं स्वीकृतुमेव नेच्छन्ति ! दरअसल लोग सच को स्वीकार ही करना नहीं चाहते हैं !

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कदा शणपुटेषु, कदा यानपेटिकायां तर्हि कदा फ्रिज इत्यां लब्धेत् बालिकानां शवेषु जनाः इदम् मानयन्ति तत संभवतः बालिका इवोदण्डासीत्, कुटुंबस्य वार्ता न शृणुतातएव स्व कृत्यस्य परिणाम: लब्धिता, वस्तुतः इदम् ९९% प्रकरणेषु इदमसत्याकलनम् भवति !

कभी बोरे में, कभी सूटकेस तो कभी फ्रिज में मिलती लड़कियों की लाशों पर लोग यह मान लेते हैं कि शायद लड़की ही उदण्ड थी, परिवार की बात नहीं सुनी सो अपनी करनी का फल पा गयी, वस्तुतः यह 99% मामलों में यह गलत आकलन होता है !

सत्येदमस्ति तत बालिका विष्टम्भिता न, अवरुद्धयते ! तां परितः दृढ़ जाल इति रचते तत अंततः तेनावरुद्धमेव भवति ! बालकस्य सहाय्य कर्ता पूर्ण समुहम् भवन्ति, तु बालिकाम् कश्चित ज्ञापितुं एव न भवति तत तया एताभिः लुण्ठकाभि: अंतरे रमितमस्ति !

सच यह है कि लड़की फँसती नहीं, फँसाई जाती है ! उसके चारों ओर इतना मजबूत जाल बनाया जाता है कि अंततः उसे फंसना ही होता है ! लड़के का सहयोग करने वाले पूरा पूरा गैंग होते हैं, पर लड़की को किसी ने बताया तक नहीं होता है कि उसे इन लुटेरों से दूर रहना है !

ग्रामे हाईस्कूल इंटर इत्यां पाठका: अधिकांशतः बालिका: नैव सोशल मीडिया इत्या संलग्ना: सन्ति, नैव वार्तापत्र पठन्ति वार्ता दर्शन्ति ! याः सोशल मीडिया इत्यां सन्ति अपि, ताः स्व सख्याभिः, मित्रै: संलग्नम् गीत, गजल, शायरी इत्येषु संलग्ना: सन्ति !

गाँव में मैट्रिक इंटर में पढ़ने वाली अधिकांश लड़कियां ना तो सोशल मीडिया से जुड़ी हैं, ना ही अखबार पढ़ती हैं समाचार देखती हैं ! जो सोशल मीडिया में हैं भी, वे अपनी सहेलियों, दोस्तों से जुड़ी गीत, गजल शायरी में डूबी हैं !

कुटुंबस्य जनाः कदा स्पष्टरूपेण अवगम्यतुमेव न भवति ततेदृशै: बालकै: अंतरे रमितमस्ति ! विश्वासम् न भवेत् तर्हि स्व सहवासिनस्य कश्चित इंटरमीडिएट इत्या: छात्राभिः पृच्छतु किं सा इति प्रकारस्य यान पेटिकायां घटना: ज्ञायति !

परिवार के लोगों ने कभी ढंग से समझाया तक नहीं होता है कि ऐसे लड़कों से दूर रहना है ! भरोसा नहीं होता तो अपने पड़ोस की किसी इंटरमीडिएट की स्टूडेंट से पूछिये कि क्या वह इस तरह की सूटकेस वाली घटनाओं को जानती है !

भवान् उत्तरम् न इत्यामेव लब्धिष्यति ! बालिकायाः का दोषम् ? सा टीवी दर्शति, तत्र प्रीति प्रसरनस्ति ! इंस्टा, फेसबुक इत्यामपि लव युक्त शायरी इति प्रसृतं अस्ति ! चलचित्री गीतेषु वोडका पात्वा सेक्स कृतस्य वार्ता: भवन्ति !

आपको उत्तर नहीं में ही मिलेगा ! लड़की का क्या दोष ? वह टीवी देखती है, वहाँ प्यार पसरा हुआ है ! इंस्टा, फेसबुक पर भी लव और इश्क मुश्क वाली शायरी पसरी हुई है ! फिल्मी गानों में वोडका पीकर सेक्स करने की बातें होती हैं !

पंजाबी गायका: तर्हि गीतेषु ज्ञापयन्ति तत दले किं किं भवति ! कति पितरः याः बालिकाभिः स्व धर्मस्य संस्काराणां वार्ता कुर्वन्ति ? इदृशे बालिका कश्चित लक्ष्यकस्य जाल इत्या कुत्रात्म रक्षिष्यति !

पंजाबी रैपर तो गाने में ही बता देते हैं कि पार्टी में क्या क्या होता है ! कितने माँ बाप जो बच्चों से अपने धर्म व संस्कारों की बातें करते हैं ? ऐसे में लड़की किसी शिकारी के जाल से कहाँ बच पाएगी ?

टीवी इत्यां, विद्यालये, क्रीडायां, वार्तापत्रे, पाठ्य पुस्तकेषु धर्मनिरपेक्षतायाः महिमामंडिते ! इदृशे काले यदि कुटुंबमपि बालिकाभिः धर्मम् गृहीत्वा वार्ता न कुर्यात् तर्हि पुनः बालिका कीदृशं अवगम्यिष्यति ?

टीवी पर, स्कूल-कॉलेज में, खेलकूद में, अखबार पत्रिका में, कोर्स की किताबों तक में सेक्युलरिज्म की महिमा गायी जा रही है ! ऐसे समय में यदि परिवार भी बच्चों से धर्म को लेकर बात नहीं करे तो फिर बच्ची कैसे समझेगी ?

इदृशी बालिकाम् कश्चित आफताब: मेलयति यं स्व फेसबुक आईडी इत्यां धर्मस्य स्थाने मानवता इति अलिखत्, प्रीत्या: च् मूर्ति भूत्वा तस्या: दुनिया इति परिवर्तनस्य दृढ़कथनानि करोति, तर्हि तस्यै रक्षणम् सरलमस्ति किं ?

ऐसी लड़की को कोई आफताब मिलता है जिसने अपनी फेसबुक आईडी तक में धर्म के कॉलम में मानवता लिखा है, और प्रेम की मूर्ति बनकर उसकी दुनिया बदल देने के दावे करता है, तो उसके लिए बचना आसान है क्या ?

तया तर्हि सर्वम् सामान्यमेव परिलक्ष्यति न ? यदा च् अवरुद्धते तदा जनाः तया इव कुवच: ददान्ते ! जनाः विस्मरन्ति तत सा लक्ष्यमस्ति ! वस्तुतः यत् विरोधम् लक्ष्यकस्य भवनीयः, तत लक्ष्यस्य भवते !

उसे तो सब सामान्य ही लगेगा न ? और जब लड़की फँस जाती है तो लोग उसे ही गाली देने लगते हैं ! लोग भूल जाते हैं कि वह शिकार है ! दरअसल जो विरोध शिकारी का होना चाहिये, वह शिकार का होने लगता है !

सत्येदमस्ति तत एकदावरुद्धस्यानंतरम् बहिः निस्सरणस्य कश्चित मार्गम् न भवेत् बालिकायाः पार्श्व एकं प्रति इमोशनल ब्लैकमेलिंग तर्हि द्वितीयं प्रति चित्रम् चलचित्रम् प्रसरस्य भयं ! केचनापि करोतु, सा न निस्सरते !

सच यह है कि एक बार फँस जाने के बाद बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता लड़की के पास ! एक ओर से इमोशनल ब्लैकमेलिंग तो दूसरी ओर से फोटो, वीडियो वायरल करने का भय ! कुछ भी कीजिये, वह नहीं निकल पाती है !

यानपेटिकायां फ्रिज इत्यां भूत्वापतत् बालिकासु हंसित्वा भवान् प्रकरणस्य दीपस्तम्भ: किं न रचन्तु, इति असाध्यामम् अंतरे कर्तुं न शक्ष्यते ! येन अंतरे कृताय भवान् पीड़ितायाः न, लक्ष्यकस्य विरोधम् कर्तुं भविष्यति !

सूटकेस या फ्रीज में लाश बन कर पड़ी लड़कियों पर हँस कर आप मुद्दे का मजाक भले बना लें, इस भयावह बीमारी को दूर नहीं कर सकेंगे ! इसे दूर करने के लिए आपको पीड़ित का नहीं, शिकारी का विरोध करना होगा !

इति असाध्यामे वार्ता करोतु, स्व सहवासिने चर्चा करोतु, बालिका: ज्ञापयन्तु तत ताः लक्ष्ये सन्ति ! तदा आम संपादिष्यते ! हंसित्वा भवान् लक्ष्यकस्य मनोबल इति बर्धन्ते !

इस भयावह बीमारी पर बात कीजिये, अपने अड़ोस-पड़ोस में चर्चा कीजिये, बच्चियों को बताइये कि वे टारगेट पर हैं ! तब बीमारी खत्म हो पाएगी ! हँस कर आप शिकारी का मनोबल ही बढ़ा रहे हैं !

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