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मंदिरस्य सोपाने किं तिष्ठति ? मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठते है ?

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वृद्धा: कथयन्ति तत यदापि कश्चित मंदिरे दर्शनाय गच्छतु तु दर्शनस्यानंतरम् बहिः आगत्य मंदिरस्य सोपाने किंचित काळम् तिष्ठन्ति, किं भवन्तः ज्ञायन्ति अस्य परंपरायाः कः कारणम् अस्ति ?

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी पर थोड़ी देर बैठते हैं, क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है ?

अद्यत्वे तु जनाः मन्दिरस्य सोपाने तिष्ठ्वा स्व गृहस्य वणिजस्य राजनित्या: च् चर्चा: कुर्वन्ति तु इदम् प्राचीन परंपरा एकाय विशेष उद्देश्याय अरचयत् ! वास्तवे मन्दिरस्य सोपाने तिष्ठ्त्वा अस्माभिः एकस्य मंत्रस्य स्मरणम् करणीयाः स्वागन्तुका: वंशान् चपि ज्ञापनीयाः !

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई ! वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक का स्मरण करना चाहिये और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बताना चाहिये !

अनायासेन मरणम् , विना दैन्येन जीवनम् !
देहान्तं तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् !!

अस्य मंत्रस्यार्थमस्ति, अनायासेन मरणं, अर्थतः विना पीड़ाया अस्माकं मृत्यु असि वयं कदापि च् रुग्ण: भूत्वासने भूत: भूत:, पीड़ा ळब्ध्वा मृत्युम् प्राप्तम् नासि चलतैवास्माकं प्राण निस्सराणि !

इस श्लोक का अर्थ है, अनायासेन मरणम्, अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं !

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विना दैन्येन जीवनम्, अर्थतः परवशतायाः जीवनम् नासि अर्थतः अस्माभिः कदापि कश्चितस्याश्रयित् भवितुं नाभवत्, यथापंग भूते जनाः द्वितीये आश्रितं भवते तथा परवशम् विवश: वा नासि, भगवदस्य कृपाया विना भिक्षाया एव जीवन निर्वाह: भवितुं अशक्नोत् !

विना दैन्येन जीवनम्, अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े, जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो, ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके !

देहांते तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम्, अर्थतः यदापि मृत्यु असि तदा भगवतस्य संमुखमसि, यथा भीष्म पितामहस्य मृत्यो: काळम् स्वयं भगवतः तस्य संमुखम् गत्वा समुत्थितः, तस्य दर्शनम् कृतं प्राणोत्सर्ग: अभवत् ! भो परमेश्वरः इदृश: वरः अस्माभिः ददातु ! इदम् प्रार्थना कुर्वन्तु !

देहांते तव सानिध्यम्, देहि में परमेश्वरम्, अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए, उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ! हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ! यह प्रार्थना करें !

वाहनम्, बालक:, बालिका, स्वामिन्, भार्या, गृहम्, धनमिदम् न याचितरस्तीदम् भगवतः भवतः पात्रतायाः अनुसारेण स्वयं भवतम् ददाति, अतएव दर्शनस्यानंतरम् तिष्ठ्वायम् प्रार्थनावश्यमेव करणीयः ! इदम् प्रार्थनामस्ति, याचनाम् न !

गाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं, इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ! यह प्रार्थना है, याचना नहीं !

याचना सांसारिक पदार्थेभ्यः भवति यथा गृहम्, दासता, वणिजं, पुत्र, पुत्री सांसारिक सुखम्, धनम् अनेभ्यः वार्ताभ्यः वा यत् याचनाम् क्रियते तत याचनामस्ति तत भिक्षामस्ति !

याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है !

वयं प्रार्थना कुर्याम: प्रार्थनायाः विशेषार्थ: भवति अर्थतः विशिष्ट, श्रेष्ठ, अर्थना अर्थतः निवेदनम् ठाकुर महोदयेण प्रार्थना करोतु प्रार्थना च् कः कृतरस्ति, इदम् मंत्रम् बदितमस्ति !

हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ, अर्थना अर्थात निवेदन, ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है !

सर्वातावश्यकी वार्ता, यदाहम् मंदिरे दर्शनम् कर्तुं गच्छामः तु स्वच्छंद नेत्रे भगवतं दर्शनीयाः, अवलोकनीयाः, तस्य दर्शनम् करणीयाः ! केचन जनाः तत्त्राक्षिनिकाणम् समुत्थयन्ति, निग्रहणं किं कृतं वयं तु दर्शनम् कर्तुं अगच्छाम !

सबसे जरूरी बात, जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए, उनके दर्शन करना चाहिए ! कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं, आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं !

भगवतस्य स्वरूपस्य, श्रीपादयो, मुखारविंदस्य, श्रृंगारस्य, संपूर्णानंद: नयाम ! नेत्रयो पिबाम स्वरूपम्, दर्शनम् कुर्याम दर्शनस्यानंतरम् च् यदा बहिः आगत्य तिष्ठाम तदाक्षिनिकाणम् यः दर्शनम् कुर्याम तं स्वरूपस्य ध्यानम् कुर्याम ! मंदिरे निग्रहणम् न करणीय: !

भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का, संपूर्णानंद लें ! आंखों में भर ले स्वरूप को, दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें ! मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना चाहिये !

बहिः आगमनस्यानंतरम् सोपाने तिष्ठ्वा ठाकुर महोदयस्य ध्यानम् कुर्वन्तु तदा निग्रहणम् कुर्वन्तु यदि च् ठाकुर महोदयस्य स्वरूपम् ध्याने नागतम् तु पुनः मंदिरे गच्छन्तु भगवतस्य च् दर्शनं कुर्वन्तु, नेत्राणि अवरुद्धस्य पश्चातोपरोक्तं मंत्रस्य पाठ: कुर्वन्तु, इदमेव शास्त्रम् इदमेव सनातनी वृद्धानां कथनम् !

बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें, नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें, यहीं शास्त्र हैं यहीं सनातनी बुजुर्गो का कहना हैं !

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