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ज्ञायतु सूर्यदेवस्योत्पत्त्या: रहस्यं ! जानिए सूर्य देव की उत्पत्ति का रहस्य !

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दिवाकरम् यदि विज्ञानस्य दृष्टितः द्रष्टु तु अपि सः भगवततः न्यूनम् न कुत्रचित् सूर्यम् विना जीवनस्य कल्पना कर्तुं न शक्नोति ! सूर्यस्य पूजनम् वैदिक कालतः भवति ! वेदेषु ऋचासु च् सूर्यदेवस्य स्तुतिम् कृतवान्, तु मनसि सदैवतः इदम् वार्तोत्थयति तत सूर्यस्य उत्पत्ति अंततः अभवत् कदा ?

सूर्य को अगर विज्ञान की नजर से देखें तो भी वह भगवान से कम नहीं क्योंकि सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है ! सूर्य की पूजा वैदिक काल से हो रही है ! वेदों और ऋचाओं में सूर्य देव की स्तुति की गई है, लेकिन मन में हमेशा ये बात उठती है कि सूर्य की उत्पत्ति आखिर हुई कब ?

किमस्ति तस्य उत्पत्त्या: रहस्यं ! शास्त्रेषु वर्णितं अस्ति तत सृष्ट्याः आरंभे ब्रह्मा महोदयस्य मुखतः ॐ इति शब्दस्योच्चारणाभवत् स्मायमेव च् सूर्यस्य प्रारंभिक सूक्ष्म स्वरूप: आसीत् ! यस्यानंतरम् भू: भुवः तथा स्व: शब्दानि उत्पादयन् ! इमानि त्रीणि शब्दानि पिंड रूपे ॐ इत्यां विलोपितवन्तः तु सूर्यम् स्थूल रूपम् ळब्धवान् !

क्या हैं उनकी उत्पत्ति का रहस्य ! शास्त्रों में वर्णित है कि सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी के मुख से ॐ शब्द का उच्चारण हुआ था और यही सूर्य के प्रारंभिक सूक्ष्म स्वरूप था ! इसके बाद भूः भुव: तथा स्व: शब्द उत्पन्न हुए ! ये तीनों शब्द पिंड रूप में ॐ में विलीन हुए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला !

सृष्ट्याः आरंभे उत्पन्न भूतेन यस्य नामादित्य: अभवत् ! तु आगतु ज्ञायेत् कीदृश: भगवतः सूर्य अर्थतः आदित्यस्य जन्म ! ब्रह्मा महोदयस्य पुत्र मरीचि मरीचिण: च् पुत्र महर्षि कश्यपस्य पाणिग्रहण प्रजापति दक्षस्य दुहिता दित्यादित्या चभवताम् स्म !

सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा ! तो आइए जानें कैसे भगवान सूर्य यानी आदित्य का जन्म ! ब्रह्मा जी के पुत्र मरिचि और मरिचि के पुत्र महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ था !

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दित्या दैत्य: जात: अदिति च् देवान् जन्माभवत् स्म ! तदैवतः दैत्यस्य देवानां च् मध्य कलहम् अरभताम् स्म ! अस्य कलहम् दृष्ट्वा देवमाता अदिति बहु दुखिता रमितुं अरभत् सा सूर्यस्य च् उपासना कर्तुं अरभत् ! तस्याराधनाया सूर्यदेवः प्रसन्न: जात: तेन च् पुत्रस्य रूपे जन्म नयस्य वर: दत्तवान् !

दीति से दैत्य पैदा हुए और अदिति ने देवताओं को जन्म हुआ था ! तभी से दैत्य और देवताओं के बीच लड़ाई शुरू हो गई थी ! इस लड़ाई को देखकर देवमाता अदिति बहुत दुखी रहने लगी और वह सूर्य की उपासना करने लगीं ! उनकी आराधना से सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्हें पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दे दिया !

केचन काळमनंतरम् तस्य गर्भतः तेजस्विन् बालक: अर्थतः भगवतः सूर्य: जन्मालभत्, अनंतरे सः दैत्यानां नाश: कृतवान् ! अदित्याः गर्भतः जन्मस्य कारणं तस्य नामादित्य: अभवत् स्म ! सूर्यस्य जन्मस्थली कलिंग देशम् मान्यते !

कुछ समय पश्चात उनके गर्भ से तेजस्वी बालक यानी भगवान सूर्य ने जन्म लिया, बाद में उन्होंने असुरों का नाश किया ! अदिति के गर्भ से जन्म के कारण उनका नाम आदित्य पड़ा था ! सूर्य की जन्मस्थली कलिंग देश मानी जाती है !

शास्त्रेषु वर्णितमस्ति तत तस्य गोत्र: कश्यप: जाति ब्राह्मण: चस्ति ! सूर्यम् प्रसन्न: कर्तुं केचन विशेष वस्तूनि बहु महत् धरयन्ति ! यथा गुड़, गुग्गुलस्य धूप, रक्त चंदन, अर्कस्य समिधा नीरजस्य च् पुष्पम् ! सूर्यस्य रथे केवलं एकम् चक्रं अस्तीदम् च् संवत्सरम् कथ्यति !

शास्त्रों में वर्णित है कि उनका गोत्र कश्यप और जाति ब्राह्मण है ! सूर्य को प्रसन्न करने के लिए कुछ खास चीजें बहुत मायने रखते हैं ! जैसे गुड़, गुग्गल की धूप, लाल चन्दन, अर्क की समिधा और कमल के फूल ! सूर्य के रथ में केवल एक पहिया है और ये संवत्सर कहलाता है !

अस्य रथम् सप्त पृथक-पृथक वर्णानां अश्वा: येन कर्षयन्ति ! विशेष वार्ता इदमस्ति ततास्य रथस्य सारथिन् खंज:, मार्गम् निरालंबमस्ति, अश्वानां खलीनस्य स्थानं सर्पाणां रज्जु अस्ति ! श्रीमद्भागवत पुराणे सूर्यस्य रथस्यैकं चक्रम् संवत्सरम् भवति यस्मिन् च् मास रूपिणां द्वादशारा: भवन्ति !

इस रथ को सात अलग-अलग रंग के घोड़े इसे खींच रहे होते हैं ! खास बात ये है कि इस रथ का सारथी लंगड़ा, मार्ग निरालम्ब है, घोड़े की लगाम की जगह सांपों की रस्सी है ! श्रीमद् भागवत् पुराण में सूर्य के रथ का एक चक्र (पहिया) संवत्सर होता है और इसमें मास रूपी बारह आरे होते हैं !

ऋतु रूपे षड् नेमिषास्ति, त्रीणि चतुर्मासानि रूपम् नाभि अस्ति ! रथस्य धुर्या: एकम् अंशम् मेरुपर्वतस्य शिखरे अस्ति द्वितीय च् मानसरोवर पर्वते, अस्मिन् रथे अरुण नाम्नः सारथिन् भगवतः सूर्यम् प्रति रमति ! भगवतः सूर्यस्य द्वे भार्ये स्त: संज्ञा निक्षुभा च् !

ऋतु रूप में छह नेमिषा है, तीन चौमासे रूप नाभि है ! रथ की धुरी का एक सिरा मेरूपर्वत की चोटी पर है और दूसरा मानसरोवर पर्वत पर, इस रथ में अरुण नामक सारथी भगवान सूर्य की ओर रहता है ! भगवान् सूर्य की दो पत्नियां हैं संज्ञा और निक्षुभा !

संज्ञायाः सुरेणु, राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा इत्यादयः बहवः नामानि सन्ति तथा छायायाः एव द्वितीय नाम निक्षुभास्ति ! संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टायाः पुत्री अस्ति ! भगवतं सूर्यम् संज्ञाया वैवस्वतमनु, यम:, यमुना, अश्वनी कुमार द्वय रैवन्त: तथा छायाया शनि, तपती, विष्टि सावर्णिमनु इमे दश संतति: अभवत् !

संज्ञा के सुरेणु, राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा आदि अनेक नाम हैं तथा छाया का ही दूसरा नाम निक्षुभा है ! संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टा की पुत्री है ! भगवान् सूर्य को संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार द्वय और रैवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णिमनु ये दस संतानें हुई !

सूर्य: सिंह राश्या: स्वामिन् सन्ति ! यस्य महादशा षड् वर्षस्य भवति ! प्रिय रत्न माणिक्यं अस्ति ! सूर्यस्य प्रिय वस्तूनि सवत्सा गो, गुड़, तांबा, स्वर्ण एवं रक्त वस्त्रम् इत्यादयः सन्ति ! सूर्यस्य धातु स्वर्ण तांबा च् स्त: ! सूर्यस्य जप संख्या ७००० अस्ति !

सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं ! इनकी महादशा 6वर्ष की होती है ! प्रिय रत्न माणिक्य है ! सूर्य की प्रिय वस्तुएं सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाल वस्त्र आदि हैं ! सूर्य की धातु सोना और तांबा है ! सूर्य की जप संख्या 7000 है !

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः अस्ति ! तत्रैव सामान्य मंत्रम् ॐ घृणि सूर्याय नमः अस्ति ! यदि सूर्य: निर्बल: असि तु नित्यं सूर्योपासना, सूर्यम्, अर्घ्यदत्तेन, रविवासरस्य व्रत: कृतेन सूर्य देवस्य च् नित्यम् दर्शनकृतेन सूर्यदेवः प्रसन्न: सबल: भवन्ति !

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः है ! वहीं, सामान्य मंत्र ॐ घृणि सूर्याय नमः है ! यदि सूर्य निर्बल हो तो नित्य सूर्य उपासना, सूर्य को अर्ध्य देने से, रविवार का व्रत करने से और सूर्यदेव के नित्य दर्शन करने से सूर्यदेवता प्रसन्न और बली होते हैं !

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