राजनीती एक अजीब सी दुनिया है, जहाँ कब क्या बदल जाए, किसी को पता नहीं चलता। जो आज आपका दुश्मन है वो हो सकता है कल आपने दोस्त बन जाए , और जो आज आपके साथ खड़ा है, वो संभव है कल आपका प्रतिद्वंदी हो जाए। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी का स्थिति बड़ी अजीब है, पिछले कुछ सालो ने हम देख रहे हैं की कैसे विरोधी दलों के लोग बहुसंख्या में बीजेपी ज्वाइन किये जा रहे हैं, और कई बार ये हानिकारक भी सिद्ध हो जाता है।
बीजेपी जैसी राजनीतिक पार्टी मूलतः विचारधारा से चलने वाली पार्टी है, जिसके सञ्चालन के मूल में निहित है हिंदुत्व और देशप्रेम से ओत प्रोत विचारधारा। यही विचारधारा ही सभी लोगो को आपस में बांधे रहती है और आगे का मार्ग प्रशस्त भी करती है, लेकिन पिछले कुछ समय से ये देखने में आ रहा है कि जो लोग बीजेपी से जुड़ते हैं, वो शुरू में तो विचारधारा से जुड़ाव दिखाते हैं, लेकिन फिर धीरे धीरे विचारधारा को तिलांजलि दे कर अपना असली स्वरुप उजागर कर देते हैं । आज हम ऐसे ही एक उदहारण के बारे में इस आर्टिकल के माध्यम से बात करेंगे।
आज हम बात कर रहे हैं सुनील देशमुख की, जो महाराष्ट्र के अमरावती से बीजेपी के विधायक हैं। ये महाशय पहले कांग्रेस के सदस्य रहे हैं, और इन्होने कांग्रेस को छोड़ दिया था, क्युकी 2009 में कांग्रेस ने इन्हे टिकट देने से मना कर दिया था । उससे पहले ये कांग्रेस कि सरकार में मंत्री रहते हुए फाइनेंस और प्लानिंग मिनिस्टर, पब्लिक वर्क्स और ऊर्जा जैसे पोर्टफोलियो संभाल चुके थे, लेकिन टिकट के लालच में इन्होने बीजेपी का दामन संभाल लिया था।
लेकिन आज बीजेपी में इतने साल गुजारने के बाद भी ये उसकी विचारधारा को आत्मसात नहीं कर पाएं हैं, और ये अपना असली रंग रह रह कर दिखाते ही रहते हैं । इनका राजीव गाँधी से बड़ा गहरा रिश्ता है, उनके सम्मान में ये झूठ बोलने से भी नहीं पीची हटते। पिछले कुछ समय से lockdown की वजह से लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं, देशमुख साहब की मानें तो ये राजीव गाँधी की वजह से ही संभव हुआ है। ये साहब राजीव गाँधी की जय जयकार कर रहे हैं, और ये प्रचार कर रहे हैं जैसे डिजिटल क्रांति राजीव गाँधी की वजह से ही आयी थी ।

यहाँ देखिये कैसे ये राजीव गाँधी को डिजिटल इंडिया का आर्किटेक्ट बता रहे हैं, जबकि सच ये है की भारत की बड़ी IT कम्पनीज जैसे TCS, HCL, Wipro, Infosys, Patni Computers आदि तो राजीव गाँधी के राजनीति में आने से पहले ही बन चुकी थी और काम कर रही थी , लेकिन इनकी आदत है अपने असली मालिक को संतुष्ट करने की, गांधी परिवार से जुड़ाव दिखाने के लिए ही ऐसे ट्वीट या पोस्ट किये जाते हैं ।

साध्वी प्रज्ञा के बारे में तो सभी को पता है, कैसे उन्हें हिन्दू आतंकवाद के मुद्दे पर घेरा गया, इतने साल अवैध तरीके से उन्हें जेल में रखा गया, उन पर भयानक अत्याचार भी किये गए। आज हर भारतीय को साध्वी प्रज्ञा से ना सिर्फ सहानुभूति है बल्कि उनके हिंदुत्व के लिए किये गए त्याग की वजह से उनके लिए सम्मान भी है। साध्वी जी समय समय पर होने ऊपर हुए अत्याचारों और उस समय के ATS चीफ हेमंत करकरे के संदिग्ध रोल के बारे में बोलती रहती हैं और 26/11 के आतंकी हमले की साजिश पर पर्दा भी हटाती रहती हैं ।
इन घटनाओ के बारे में जान कर किसी का भी खून खौल सकता है , लेकिन ये सुनील देशमुख ही हैं जो साध्वी प्रज्ञा के विरोध में बोलते हैं , और कांग्रेस और उसके क्रियाकलापों का येन केन प्रकारेण बचाव करते हैं । सुनील देशमुख ने तो साध्वी प्रज्ञा को हेमंत करकरे पर की गयी टिपण्णी वापस लेनी और माफ़ी मांगने के लिए भी कहा था, सोचिये कितनी बेशर्मी रही होगी देशमुख साहब के अंदर ऐसी ओछी मांग करते हुए ।

साध्वी प्रज्ञा ने कई बार साफ़ किया है की उन्हें फंसाने में कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह का काफी बड़ा हाथ रहा है ,लोगो ने बाकायदा ये तस्वीर शेयर की थी, जिसमे साध्वी प्रज्ञा अपने ऊपर हुई नाइंसाफी का बदला लेते हुए दिख रही हैं, और इसमें में सुनील देशमुख को तकलीफ हो गयी । सोचिये, ये कैसे इंसान हैं, जिन्हे एक महिला पर हुए अत्याचार का बदला लेने के बजाये अपनी पुरानी पार्टी का बचाव करना बेहतर लगा?

इनके तौर तरीके देख कर बीजेपी और संघ के लोगो ने इनका काफी विरोध किया और इन्हे खूब खरी खोटी भी सुनाई, और देशमुख साहब की बेशर्मी देखिए, इन्होने बीजेपी के ही कार्यकर्ताओ को ही इसका दोषी ठहरा दिया और कहा की उनकी वजह से पार्टी का नाम खराब होता है , देशमुख साहब यहाँ एक सवाल है, एक महिला पर हुए अत्याचार का बदला लेना की बात कहने से पार्टी का नाम कैसे खराब हो गया? ये तो मानवता है, ये मांग तो आपको उठानी चाहिए थे, आप वरिष्ठ नेता हैं, आप आवाज़ उठाते तो लाखो लोगो का समर्थन ही मिलता, लेकिन आपने अपने पुराने मालिकों की तरफदारी करना ही चुना, कितना शर्मनाक है ये।

यहाँ देखिये, एक और मुद्दे पर सुनील देशमुख एक बीजेपी के सामान्य समर्थक से कैसे बदतमीजी से बात करते दिख रहे हैं । यहाँ बीजेपी के समर्थक ने कहा कि शाहबानो जैसी गरीब मुस्लिम औरत को न्याय देने के बजाये राजीव गाँधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण करते हुए कानून ही बदल दिया था, जिससे लाखो मुस्लिम औरतो की जिंदगी बर्बाद हो गयी थी।
ये सत्य ही कहा गया था, इसमें कोई दोराय नहीं, लेकिन सुनील देशमुख को यहाँ भी दर्द हुआ, और उन्होंने जवाब में कहा कि तुम नाथूराम गोडसे के पथ पर चलने वाले लोगो को ये क्या समझ आएगा, तुम्हारी बात कौन सुनता है, तुम्हारी बातें अप्रासंगिक हैं ।

यहाँ हम यही कहना चाहते हैं कि ऐसे बाहरी लोगो को पार्टी में लाने का क्या फायदा, जिन्हे बीजेपी की विचारधारा से कोई सरोकार ना हो, जिनके मन में कांग्रेस और गाँधी परिवार के लिए ही निष्ठा हो, और अभी भी वो उन्ही की तरफदारी ही करें । यहाँ ये कहना भी जरूरी है कि ऐसे नेताओ कि वजह से बीजेपी और संघ के कर्मठ कार्यकर्ताओ को ठेस पहुँचती है, साध्वी प्रज्ञा के मुद्दे पर सामान्य कार्यकर्ताओ ने देशमुख को काफी खरी खोटी सुनाई और उन्हें याद दिलाया कि वे इतने सालो से बीजेपी में है, अतः उनके विचार पार्टी लाइन से जुड़े होने चाहिए न कि विरोधी पार्टी से जुड़े होने चाहिए।
पार्टी को भी ऐसे उदहारण ध्यान में रखने चाहिए, ऐसे नेताओ के लिए पार्टी और विचारधारा महत्त्व नहीं रखती, ये समय समय पर गाँधी परिवार के समर्थन वाले बयान देते हैं और सही समय आने पर वापस उसी पार्टी में चले भी जाते हैं। इन दोगले नेताओ कि वजह से हमारे कर्मठ कार्यकर्ताओ को उनका हक नहीं मिलता। पार्टी नेतृत्व को इस बारे में सोचना चाहिए और ऐसे नेताओ को पार्टी से निकाल देना चाहिए, और एक अव्वल तो बाहरी नेताओ को ना लिया जाए, और अगर लेना भी पड़े तो उनका बीजेपी की विचारधारा के प्रति समर्पण की जरूरी शर्त होनी चाहिए।