फर्जी स्वामी चिदानंद सरस्वती – ‘छद्म’ सेकुलरिज्म के ध्वजवाहक, मौलानाओ के मित्र और देव भूमि की जमीन पर कब्ज़ा करने वाले धर्मगुरु

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पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि कई धर्मगुरु, मौलवी, पादरी और बाबा खबरों में रहे हैं, लेकिन गलत कारणों से । इन लोगो ने तमाम तरह के जुर्म किये, जिनमे आर्थिक घपले, मर्डर, बलात्कार जैसे खौफनाक जुर्म भी हैं। ये लोग कहने को धर्म के ठेकेदार बनते हैं, लेकिन समय समय पर ये अपने लालच, अकड़, और अति महत्वाकांक्षा के चक्कर में अपराध के दलदल में फंस जाते हैं।

ये धर्म के ठेकेदार अपने चारो और एक धर्मभीरु चमचो की सेना बना कर रखते हैं , जो इन लोगो के कुकर्मो पर कोई सवाल नहीं करते, बल्कि उनका बचाव ही करते हैं, और कभी कभी तो हथियार भी उठा लेते हैं, दंगा करते हैं और देश में कानून व्यवस्था भी बिगाड़ देते हैं। कई धर्म के ठेकेदार इस समय जेल में भी हैं, लेकिन इनके चेलों के बीच ये लोग अभी भी भगवान् का दर्जा रखते हैं।

आज हम आपको एक धर्मगुरु की कहानी सुनाएंगे, जो कहने को तो खुद को हिन्दू धर्म का ठेकेदार समझते हैं, इनके साथ लाखो लोगो का समर्थन भी है, लेकिन धर्म के आड़ में इन्होने दुनिया भर की अवैध गतिविधियां कर राखी हैं । जी हम बात कर रहे हैं प्रसिद्द धर्म गुरु स्वामी चिदानंद सरस्वती की, जो एक बहुत बड़े धार्मिक गुरु माने जाते हैं, और ये ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन के प्रमुख भी हैं, जो भारत के सबसे बड़े धार्मिक संस्थानों में से एक माना जाता है , साथ ही साथ ये इंडियन हेरिटेज रिसर्च फाउंडेशन IHRF के संस्थापक और चेयरमैन भी हैं।

हो सकता है आप लोग इस बात से भौंचक्के हो जाएँ, और सोचने लगे कि हम ऐसे बड़े धार्मिक इंसान पर सवाल क्यों उठा रहे हैं, तो यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि पूरे तथ्यों के साथ इन कि सच्चाई आपके सामने रखने जा रहे हैं।

स्वामी नहीं, ये हैं देव भूमि पर अवैध कब्ज़ा करने वाले इंसान

क्या आपको पता है, उत्तराखंड के वन विभाग ने स्वामी चिदानंद सरस्वती और परमार्थ निकेतन के खिलाफ एक केस किया हुआ है, सरकारी वन विभाग की ढाई एकड़ जमीन पर अवैध कब्ज़ा करने और उस पर अवैध निर्माण कार्य करने के लिए ?

जी आपने सही पढ़ा, पौढ़ी गढ़वाल की प्रसिद्द वकील और RTI एक्टिविस्ट अर्चना शुक्ला ने इस मामले पर एक PIL भी फाइल की थी, उसके बाद उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देश पर ये केस दर्ज किया गया।

हो सकता है आपको हमारी बातो पर विश्वास ना हो, लेकिन इस खबर को कई जाने माने मीडिया और अखबारों ने छापा भी था। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बाकायदा निर्णय दिया था कि स्वामी चिदानंद सरस्वती और परमार्थ निकेतन इस अवैध कब्जे को हटाएं, और अगर वो ऐसा ना करें तो वन विभाग उन पर कार्यवाही करें और सरकारी जमीन को कब्जामुक्त कराये।

और ये कोई पहला मामला नहीं है ,ऋषिकेश में वीरभद्र मंदिर के पास वीरपुर खुर्द में रिजर्व फॉरेस्ट की 35 बीघा जमीन में अतिक्रमण और निर्माण करने पर वन विभाग ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष चिदानंद मुनि के विरुद्ध केस दर्ज कर विभागीय जांच शुरू कर दी थी । इसकी रिपोर्ट प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून के माध्यम से न्यायालय को सौंपी दी थी, और इस पर एक्शन होना बाकी है ।  

सितंबर 2019 में हरिद्वार निवासी एक व्यक्ति ने वीरपुर खुर्द में रिजर्व फॉरेस्ट की 35 बीघा भूमि में कब्जा जमाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। इस संबंध में उक्त व्यक्ति ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की थी। जिसमें कहा गया कि वीरपुर खुर्द में रिजर्व फॉरेस्ट की 35 बीघा भूमि में कब्जा कर 52 कमरे, एक बड़ा हॉल और गोशाला का निर्माण किया गया है।

जिस पर कार्रवाई की बजाय वन और राजस्व विभाग की ओर से लगातार अनदेखी की जा रही है। हाईकोर्ट ने संबंधित विभाग को अंतिम समय देते हुए एक्शन टेकन रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए। हाईकोर्ट के इन आदेशों पर डीएफओ देहरादून ने रेंज अधिकारी ऋषिकेश एमएस रावत को उचित कार्रवाई के लिए निर्देशित किया। इस पर उन्होंने वन अधिनियम 1927 सेक्शन 26 के अंतर्गत परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष चिदानंद मुनि के विरुद्ध केस दर्ज किया है।

इनमे से कई केस में कोर्ट ने इनके खिलाफ कार्यवाही भी की है, और इनके करोडो रूपए के अवैध निर्माण भी तोड़े गए हैं, वहीं कुछ केस काफी एडवांस्ड स्टेज में चल रहे हैं।

मौलानाओ का साथ और मदरसे का खेल

चिदानंद सरस्वती ने एक नया खेल शुरू किया है, ये आजकल मौलानाओ के साथ काफी घुल मिल गए हैं, और सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर के ये उस जमीन पर मदरसे भी खुलवा रहे हैं । ये सरकारी अफसरों और नेताओ से मिल कर वन विभाग कि जमीन पर कब्ज़ा करते हैं, फिर गुरुकुल खोलने का झांसा दे कर वहां मुस्लिम मौलानाओ और मुस्लिम बच्चो को बसा देते हैं, मदरसे बना देते हैं। हमने ऐसे ही एक गुरुकुल का स्क्रीनशॉट डाला है, जो अब एक मदरसे में तब्दील हो चुका है।

Picture Credit – Google

15 मई को ही परमार्थ निकेतन के गुरुकुल में कई बटुक वेदपाठ कर रहे थे, इन्हे विधिवत निमंत्रण के साथ बुलाया गया था, और इस कार्यक्रम का आयोजन स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने किया था, इसमें गुरुकुल के ऋषिकुमारों ने मदरसा छात्रों का स्वागत किया। उसके बाद स्वामी चिदानन्द सरस्वती के निर्देश पर गुरुकुल के ऋषिकुमारों और मदरसे के छात्रों को एक साथ बैठाया गया और वहां पर कुरआन की आयतें पढ़ी गयी।

इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा – मदरसा चल कर मठ, आश्रम और गुरुकुल आए और मठ चलकर मदरसों तक पहुंचे। दोनों एक दूसरे की आस्थाओं और जीवन मूल्यों को समझने की कोशिश करें। तभी हम भावी पीढ़ियों को एकता के संस्कार दे सकेंगे।’

क्या आपको लगता है ऐसे कार्यक्रम होने चाहिए, और ऐसे कार्यक्रमों से स्वामी क्या साबित करना चाह रहे हैं, क्या वे किसी मस्जिद में कोई हिन्दू कार्यक्रम कर सकते हैं?

धर्मगुरु नहीं, ये हैं छद्म गुरु

अधिकतर लोगो को शायद पता भी नहीं होगा, कि ये जो नाम इन्होने धारण किया हुआ है, ये भी चोरी का है । इनका असली नाम संतोष अरोरा है, और ये विभाजन के समय पाकिस्तान से विस्थापित हो कर भारत आये थे । इन्होने किसी गुरु -शिष्य परंपरा का पालन नहीं किया, और ना ही किसी गुरु के साथ कार्य किया ।

यहाँ तक कि इनका नाम चिदानंद सरस्वती भी इन्होने चोरी किया है। असली स्वामी चिदानंद सरस्वती जी तो स्वामी शिवानंद जी के शिष्य थे और डिवाइन लाइफ सोसाइटी, ऋषिकेश के प्रणेता थे । लेकिन संतोष अरोरा ने लोगो के आँखों में धूल झोंकने और पैसा कमाने के लिए स्वामी चिदानंद सरस्वती का नाम इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

Picture Credit – स्वामी चिदानंद सरस्वती

ऐसा भी कहा जाता है, कि 80 के दशक में , विदेशो से आने वाले फण्ड को ये स्वामी चिदानंद सरस्वती का नाम उपयोग करके खुद ले लिया करते थे। बाद में जब असली स्वामी जी को इनके कुकृत्य का पता लगा तो इन्हे बुलाया गया और झिड़का गया और आगे से ऐसी किसी भी गतिविधि ना करने के लिए पाबंद किया गया।

जब तक स्वामी चिदानंद सरस्वती जीवित थे, संतोष अरोरा ने ‘नारायण मुनि’ नाम रख लिया, जैसे ही उनकी मृत्यु हुई, इन्होने वापस से अपना नाम स्वामी चिदानंद सरस्वती रख लिया, और देश विदेश से आने वाले फण्ड और श्रद्धालुओं को स्वयं ग्रहण करना शुरू कर दिया। इनकी इसी गतिविधियों की वजह से डिवाइन लाइफ सोसाइटी, ऋषिकेश ने इन पर आजीवन प्रतिबन्ध लगाया हुआ है, और ये उनके आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकते हैं ।

लेबर कानून और इनकम टैक्स 80-G का उल्लंघन

स्वामी चिदानंद और इनका परमार्थ निकेतन कई तरह के लेबोर कानून के उल्लंघन करने में लिप्त रहा है, और साथ ही साथ ये इनकम टैक्स के सेक्शन 80-G का भी उल्लंघन करते हैं, लोगो ने डोनेशन लेते हैं, और उसका गलत उपयोग करते हैं । इस मामले में कई RTI एक्टिविस्ट्स ने इन पर केस भी किये हुए हैं।

पवित्र गंगा को सीवर से गन्दा करने वाले

परमार्थ निकेतन एक काफी बड़ा आश्रम है, जहाँ करीब हजार कमरे बने हुए हैं, जहाँ देश विदेश से लोग आते रहते हैं । आश्रम की सीवर कैपेसिटी सीमित है, और ये भी एक तथ्य है कि ये लोग सीवर को गंगा नदी में प्रवाहित कर देते हैं।

इस मामले को भी कई RTI एक्टिविस्ट्स ने उठाया, और राज्य के पॉलुशन कण्ट्रोल बोर्ड ने कई बार अपनी टीम भेजी आश्रम का ऑडिट करने के लिए, और हमेशा ये पाया कि आश्रम की सीवर कैपेसिटी वहां आने कमरों कि संख्या से काफी कम है। इससे साफ़ जाहिर है, कि काफी बड़ी मात्रा में सीवर को गंगा नदी में डाला जा रहा है, सोचिये ये कितना बड़ा अधर्म है।

कानून व्यवस्था का मखौल उड़ाने वाले स्वामी

केदारनाथ की आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार ने कुछ नियम बनाये थे, जिससे कि भविष्य में इस तरह कि दुर्घटनाओं को रोका जा सके, इसमें से सबसे जरूरी था किसी भी नदी के तट से 200 मीटर कि दूरी तक कोई भी निर्माण ना बनाना ।

लेकिन स्वामी चिदानंद सरस्वती तो अपनी शक्ति और पैसे के घमंड में थे, उन्होंने इन नियम कानूनों का मखौल उड़ा दिया और उनका आश्रम गंगा नदी के 200 मीटर से भी कम क्षेत्र में है। यही नहीं, जिस घात पर परमार्थ निकेतन वाले पूजा करते हैं, वो भी अवैध रूप से कब्ज़ा किया हुआ है।

COVID प्रोटोकॉल का मजाक बना कर मुस्लिमो को उत्तराखंड में बसाया

आज पूरी दुनिया COVID से जूझ रही है, और पिछले 2 साल से इस वायरस ने पूरी दुनिया को हिला डाला है। ऐसे में सब का एक ही लक्ष्य होना चाहिए, कि सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों का पालन किया जाए । लेकिन चिदानंद स्वामी ने तो कसम खा रखी है, कि किसी भी नियम कायदे का पालन करना ही नहीं है।

परमार्थ निकेतन के द्वारा इस समय हजारो मुस्लिम ठेकेदार और मजदूरों को उत्तराखंड के अलग अलग हिस्सों में ला कर बसाया गया है, ये सब लोग चिदानंद सरस्वती के अवैध कब्जो पर निर्माण कार्य करते हैं, और इन्हे बुलाने के चक्कर में स्थानीय लोगो को अनदेखी कि गयी है, अन्यथा उत्तराखंड में मजदूर या ठेकेदार नहीं हैं क्या?

साथ ही साथ, इन लोगो को RTPCR और अन्य तरह कि टेस्टिंग प्रोटोकॉल का उल्लंघन करके लाया गया है, और एक बार भी नहीं सोचा गया कि इन लोगो के आने से उत्तराखंड के लोगो पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

सरकार और प्रशासन का पूरा समर्थन

ये तो जाहिर ही है कि बिना सरकार और प्रशासन के समर्थन के ऐसे कुकर्म नहीं किये जा सकते , चिदानंद स्वामी इस मामले में काफी प्रभुत्व रखते हैं, और सरकार किसी भी पार्टी कि हो, उनका बोलबाला ही रहता है । प्रशासन के लोग इन्हे कानून नियमो का उल्लंघन करने देते हैं, एक्शन नहीं लेते, और इनसे लड़ने के लिए सीधा कोर्ट ही जाना पड़ता है ।

आप इन सभी तथ्यों के बारे में इंटरनेट पर सर्च कर के भी जानकारी पा सकते हैं। इस आर्टिकल का उद्देश्य हमारे पाठको को इन घृणित कुकृत्यों के बारे में सतर्क करना है । ये लोग हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं, लेकिन ये असल में धूर्त अपराधी हैं, जो हिन्दुओ की आँखों में धूल झोंक रहे हैं, देवभूमि की जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर रहे हैं, जिहादी लोगो का साथ दे रहे हैं, और गंगा को प्रदूषित भी कर रहे हैं ।

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