वर्ष 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखते हुए भाजपा ने तीन दशक के एक मिथक को तोड़ा था कि गठबंधन राजनीति के काल में कोई पार्टी अपने दम पर बहुमत नहीं ला सकती।
उसके बाद कई चुनावों में और खासकर 2017 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की अभूतपूर्व जीत ने ब्रांड मोदी को पूरी तरह स्थापित कर दिया ।
वर्ष 2019 के बाद 2022 में चार राज्यों में दोबारा पार्टी को सत्ता में लाकर प्रधानमंत्री मोदी ने एंटी इनकंबेंसी की जगह प्रो इनकंबैंसी की शब्दावली को मजबूती से खड़ा कर दिया।
पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का सबसे बड़ा यही सार है कि अब चुनाव जाति के पिंजरे से बाहर आने लगा है ।
शासन, प्रशासन और विकास अब केंद्रीय भूमिका में आने लगा है।
योजनाओं की घोषणा होने के बजाय उन्हें जमीन तक पहुंचाने का काम किया जाता है ।
यह तय हो जाता है कि वोटर उसी के साथ खड़े होंगे जो युवा ,महिला और पिछड़े वर्ग के सपनों को जगा कर रख सकता है और उन्हें पूरा करने का विश्वास पैदा कर सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी जी की छाया में भाजपा ने इसे बखूबी जमीन पर उतार रही है।
देश में फिलहाल प्रशासन के दो मॉडल सबसे लोकप्रिय हैं पहला भाजपा मॉडल और दूसरा दिल्ली मॉडल । कई मानकों पर दोनों मॉडल में कुछ समानताएं भी हैं, और कई जगह पर इनमें अंतर भी है।
एक मॉडल जिसमें नीचे तक लोगों को लाभ पहुंचाने कोशिश की जाती है, सख्त फैसले होते हैं और सुविधाओं को बढ़ाने की बात की जाती है ।
दूसरा मॉडल जिसमें मुफ्त बिजली ,मुफ्त का पानी जैसे मुद्दे जनता को भाते हैं ।
एक मॉडल कई राज्यों में लगातार विश्वास हासिल कर रहा है और दूसरा मॉडल घिसे पिटे और तौर तरीके से राहत का वादा करता है, लेकिन काम नहीं कर पाता ।
दोनों मॉडल में एक समानता होती है कि नेताओं का संवाद नीचे तक जारी रहता है ।
पंजाब में दिल्ली मॉडल ने धूम मचा दी, इसलिए दिल्ली को ही दोहरा दिया । आम आदमी पार्टी वहां सबसे विश्वसनीय पार्टी बन गई है।
यह तौर तरीके कुछ दूसरे राज्यों में भी क्षेत्रीय दलों की ओर से अपनाए जा रहे हैं ,लेकिन एक प्रदेश के बाहर वह जनता के सपनों को नहीं जगह पा रहे हैं ।
यह चुनाव नतीजे गठबंधन की राजनीति को भी बताते हैं, ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने तीन चुनावों में गठबंधन के हर प्रयास का प्रयोग कर लिया है।
पहले कांग्रेस के साथ, फिर बहुजन समाज पार्टी के साथ और इस बार रालोद व भाजपा को छोड़कर आए कुछ दलों के साथ।
जबकि भाजपा का साथ छोड़कर सपा में गए कई नेता भी हार गए ।
जो नेता चुनाव जिताने– हराने का दावा करते थे वे खुद हार गए । यानी गठबंधन की सफलता असफलता के मुख्य दल की विश्वसनीयता के साथ जुड़ी होती है ।
अभी भाजपा सबसे भरोसेमंद और विश्वसनीय पार्टी बन गई है और मोदी जी की छाया में प्रो इनकंबेंसी का उदाहरण।
उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार एक ही पार्टी की सरकार का उदाहरण 37 साल बाद दोहराया गया है।
इससे पहले हरियाणा भी यह दिखा चुका है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन भी कुछ ऐसा ही रहा है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बड़ी जीत के साथ साथ मणिपुर और गोवा में दोबारा सत्ता हासिल कर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
यह ऐसी उपलब्धि है जो जातिवाद से परे है, ऐसी उपलब्धि जो विकास के साथ आस्था को लेकर संवेदनशील हैं, एक ऐसी उपलब्धि जिसमें नेतृत्व किसी भी दाग से परे है और ऐसी उपलब्धि जो परिवारवाद के खिलाफ है।
मालूम हो कि 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के कई बड़े खिलाड़ी हार गए थे और इस बार पंजाब में अकाली दल परिवार घर बैठ गया ।