मध्यप्रदेशस्य उच्चन्यायालयेन उक्तम् अस्ति यत् मुस्लिम्-बालकस्य हिन्दु-बालिकायाः च विवाहः मुस्लिम्-विधिना वैधविवाहः नास्ति इति। न्यायालयेन विशेषविवाह-अधिनियमेन अन्तर्धार्मिकविवाहेभ्यः आरक्षकाणां संरक्षणस्य याचना अपि निराकृतम्। मध्यप्रदेशस्य उच्चन्यायालयेन सोमवासरे (२७ मे २०२४) अयं निर्णयः दत्तः।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की के बीच विवाह मुस्लिम कानून के अनुसार वैध विवाह नहीं है ! कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अंतर-धार्मिक विवाह के लिए पुलिस सुरक्षा की माँग को भी खारिज कर दिया ! मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सोमवार (27 मई 2024) को ये फैसला सुनाया !
मध्यप्रदेशस्य उच्चन्यायालयस्य जबल्पूर् खण्डपीठस्य न्यायाधीशेन गुरपाल सिंह: अहलूवालिया इत्यनेन अयं निर्णयः घोषितः। न्यायाधीशः गुरपाल सिंह: अहलूवालिया अवदत् यत् मुस्लिम् बालकस्य हिन्दु बालिकायाः च मध्ये विवाहः मुस्लिम् व्यक्तिगत विधिना अनियमितः (अथवा फासिदः) विवाहः इति मन्यते इति।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर मुख्य बेंच में जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने ये फैसला सुनाया ! जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की के बीच विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अनियमित (या फासिद) विवाह माना जाएगा !
यद्यपि ते विशेषविवाह-अधिनियमेन विवाहिताः तथापि! “उच्चन्यायालयेन सोमवासरे (मे २७, २०२४) स्वस्य आदेशे अवदत् यत्, मुस्लिम् नियमानुसारेण, मुस्लिम बालकस्य, मूर्तिपूजिका अथवा अग्निप्रहारिका बालिकया सह विवाहः वैधविवाहः नास्ति “इति। यद्यपि विवाहः विशेषविवाह-अधिनियमेन पञ्जीकृतः अस्ति तथापि!
भले ही उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह किया हो ! हाई कोर्ट ने सोमवार (27 मई 2024) को अपने आदेश में कहा, मुस्लिम कानून के अनुसार, किसी मुस्लिम लड़के का किसी ऐसी लड़की से विवाह वैध विवाह नहीं है जो मूर्तिपूजक या अग्निपूजक हो ! भले ही विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड हो !
परन्तु सः विवाहः वैधः इति न मन्यते, सः अनियमितः (फासिस्ट्) विवाहः इति मन्यते! जबल्पूर्-उच्चन्यायालयः एकस्मिन् हिन्दु-महिलायाः मुस्लिम्-पुरुषस्य च याचिकायाः विचारणां कुर्वन् आसीत्। यस्मिन् एका हिन्दु-महिला मुस्लिम्-पुरुषः च विशेष-विवाह-अधिनियमेन विवाहस्य इच्छां प्रकटितवन्तौ!
लेकिन वो विवाह वैध नहीं माना जाएगा, इसे अनियमित (फासीद) विवाह ही माना जाएगा ! बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जबलपुर हाई कोर्ट ने एक हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था ! जिसमें हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह की इच्छा जताई थी !
तेषां अधिवक्तारः न्यायालयं प्रति अवदत् यत् तौ उभौ स्वधर्मस्य अनुसरणं निरन्तरं करिष्यन्ति, ये परस्परं मतं न स्वीकर्तुम् इच्छन्ति! विवाहानन्तरं अपि हिन्दु-महिला हिन्दु-मतं पालयति, मुस्लिम्-पुरुषः च मुस्लिम्-मतं पालयति। एतादृशे स्थितौ अस्य दम्पत्योः कृते आरक्षकसंरक्षणं दातव्यम्! येन ते विशेषविवाह अधिनियमेन विवाहस्य पञ्जीकरणं कर्तुं शक्नुवन्ति!
उनके वकील ने कोर्ट को बताया कि वो दोनों अपना-अपना ही धर्म मानना जारी रखेंगे, जो एक-दूसरे का धर्म नहीं अपनाना चाहते ! विवाह के बाद भी हिंदू महिला हिंदू धर्म को मानेगी और मुस्लिम पुरुष मुस्लिम धर्म को ! ऐसे में इस जोड़े को पुलिस सुरक्षा दी जानी चाहिए ! ताकि वो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह का रजिस्ट्रेशन करा सकें !
अधिवक्ता अपि न्यायालयं प्रति अवदत् यत् द्वयोः मतयोः जनाः व्यक्तिगत-विधिना विवाहं कर्तुं न शक्नुवन्ति, परन्तु विशेष विवाह अधिनियमेन वैधानि भविष्यन्ति इति। अस्मिन् विषये न्यायालयः अवदत् यत् विशेषविवाह अधिनियमस्य विरोधं धार्मिक-प्रथानां अन्तर्गतं कर्तुं न शक्यते, परन्तु एतादृशः विवाहः व्यक्तिगत-विध्याः अन्तर्गतं मान्यः न भविष्यति इति।
वकील ने कोर्ट को ये भी बताया कि दो धर्मों के लोग पर्सनल लॉ के तहत विवाह नहीं कर सकतें, लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ये वैध होगा ! इस पर कोर्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट को धार्मिक कृयाकलापों के तहत चुनौती तो नहीं दी जा सकती, लेकिन पर्सनल लॉ के तहत ऐसा विवाह मान्य नहीं होगा !
एतादृशे सन्दर्भे अयं विवाहः अनियमितः (फासिद्) विवाहः भविष्यति! उच्चन्यायालयेन सर्वोच्चन्यायालयस्य निर्णयः निर्दिष्टः (मोहम्मद् सलीम् तथा अन्ये च शम्सुद्दीन् विरुद्धम्)। न्यायालयः अवदत् यत्, “यः विवाहः व्यक्तिगत-विधिना मान्यः नास्ति, सः विशेष विवाह-अधिनियमेन मान्यः भवितुं न शक्नोति” इति।
ऐसे में ये विवाह एक अनियमित (फसीद) विवाह होगा ! हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले (मोहम्मद सलीम और अन्य बनाम शम्सुद्दीन) का रेफरेंस दिया ! हाईकोर्ट ने कहा, जो विवाह पर्सनल लॉ के तहत मान्य नहीं, वो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी मान्य नहीं हो सकती !
विशेषविवाह-अधिनियमस्य धारा-४ इत्यस्य अनुसारं, विवाहः तदा एव भवितुम् अर्हति यदा द्वयोः अन्यतमः अन्यस्य मतं स्वीकरोति। उच्चन्यायालयेन याचिकां निराकृत्वा अवदत् यत् ते विवाहं विना एकत्र निवसितुं न इच्छन्ति (लिव्-इन्-रिलेशन्शिप् मध्ये) तथा च हिन्दु-बालिका इस्लाम्-मतं न स्वीकरोति!
स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा-4 के हिसाब से विवाह तभी हो सकता है, जब दोनों में से कोई एक दूसरे का धर्म स्वीकार कर ले ! हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि वो बिना विवाह के साथ नहीं रहना (लिव-इन-रिलेशनशिप में) चाहते और न ही हिंदू लड़की इस्लाम अपना रही !
उच्चन्यायालये हिन्दु-महिलायाः परिवाराः अस्य विवाहस्य विरोधम् अकुर्वन्, यदि एतत् विवाहं भवति तर्हि ते समाजे बहिष्कृताः भविष्यन्ति इति उक्तवन्तः। तस्मिन् एव समये, परिवारः अवदत् यत् बालिका गृहात् बहिः गच्छन्ती आभूषणानि अपि स्वसमीपात् नीतवती इति!
हाई कोर्ट में हिंदू महिला के परिजनों ने इस विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि अगर ये विवाह हुआ, तो समाज में उनका बहिष्कार कर दिया जाएगा ! साथ ही परिवार ने कहा कि लड़की घर से जाते समय ज्वैलरी भी साथ लेकर गई थी !