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मोदी सरकार के 5 ब्रह्मास्त्र, जिन्होंने भारत को एक ‘पिछड़े देश’ से मजबूत वैश्विक आर्थिक ताकत में तब्दील कर दिया

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भारत को पहले सोने की चिड़िया कहा जाता था, आजादी के बाद हमारे आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे, और हम तीसरी दुनिया के देश या फिर आर्थिक रूप से पिछड़े देश माने जाते थे। स्थिति बुरी होती गयी, और एक समय हमे अपना सोना भी गिरवी रखना पड़ गया था, उसके बाद उदारीकरण का दौर आया, हालात सुधरे, लेकिन हम अभी भी पिछड़े हुए ही थे, और आर्थिक समावेश की बात की जाए तो हम बहुत पीछे थे, हमारी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी औपचारिक अर्थव्यवस्था से दूर ही था।

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश की बागडोर संभाली थी, तब देश के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे, हम Fragile -5 ग्रुप में रखे गए थे, जिसका अर्थ था हमारी अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी, और नए नेतृत्व पर एक दबाव था अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकने का।

8 अगस्त 2014 को जब जनधन एकाउंट्स की योजना शुरू हुई, तो जैसा अमूमन किसी भी सरकारी योजना के साथ होता है, सबने इसको भी एक थकी हारी और बेकार की योजना बताया था। ये योजना थी गरीबो के लिए, और इस पर सबसे बड़ा सवाल ये था कि कोई एकाउंट क्यों खुलवायेगा? गरीबो के पास कौन से पैसे होते हैं, जो एकाउंट में रखेंगे??

शुरू में zero बैलेंस एकाउंट की वजह से लोगो ने खाते खुलवाए, बैंकिंग कर्मियों को भी इस योजना में लगाया गया, उन्होंने भी काफी मेहनत की, गांव कस्बों और दूर दराज के इलाको में शिविर लगा कर, बैंक में आये लोगो को समझा कर, और भी कई तरीको से बैंक कर्मियों ने एकाउंट खुलवाए।

जनधन, आधार और मोबाइल (JAM) ने किया कमाल

सरकार के पहले ३ ब्रह्मास्त्र थे, जिन्हे कहते हैं JAM (जनधन, आधार और मोबाइल) । जनधन एकाउंट खोले गए, आधार को कानूनी रूप से मजबूती दी गयी, फाइनेंसियल इस्तेमाल के लिए आधार के कानून में बदलाव किए गए, उसकी सुरक्षा के उपाय किये गए, लेकिन सवाल अभी भी कायम थे कि इन एकाउंट का फायदा कैसे उठाया जाएगा, एक गरीब आदमी, रेहड़ी लगाने वाला, घर मे काम करने वाले लोग, मजदूर आदि को एकाउंट खोलने से क्या फायदा।

सरकार ने तीन बड़े कदम उठाये, जिन्हे कहते हैं JAM (जनधन, आधार और मोबाइल) । जनधन एकाउंट खोले गए, आधार को कानूनी रूप से मजबूती दी गयी, फाइनेंसियल इस्तेमाल के लिए आधार के कानून में बदलाव किए गए, उसकी security के उपाय किये गए, लेकिन सवाल अभी भी कायम थे कि इन एकाउंट का फायदा कैसे उठाया जाएगा, एक गरीब आदमी, रेहड़ी लगाने वाला, घर मे काम करने वाले लोग, मजदूर आदि को account खोलने से क्या फायदा।

सवाल अपनी जगह सही थे, और इनके जवाब भी धीरे धीरे आये, जनधन एकाउंट और आधार तैयार था, अगला चरण था मोबाइल.

मोबाइल सस्ते हुए, उसके बाद 3G और 4G को सस्ता किया गया, मोबाइल डेटा इतना सस्ता कर दिया कि अब हर आर्थिक स्थिति वाला इंसान मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकता था। अब JAM तो तैयार था, लेकिन आर्थिक लेन देनकरने के लिए भी बुनियादी ढांचा बनाना बाकी था। सरकार ने इसके लिए २ और ब्रह्मास्त्र तैयार किये, ये थे Rupay Card और UPI , दोनों अपने आप मे जबरदस्त टेक्नोलॉजी हैं, और इनकी वजह से हमारे देश में आर्थिक समावेश जबरदस्त तरीके से बढ़ गया।

RUPAY और UPI ने कैसे जिंदगी बदली

जब आप अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड से कोई खरीद करते हैं, तो किसी शॉपिंग मॉल में स्वाइप करते है, तो पैसा आपके एकाउंट से निकल विक्रेता के एकाउंट में जाता है । इन सब मे 𝗠𝗮𝘀𝘁𝗲𝗿 𝗰𝗮𝗿𝗱/वीसा/𝗥𝘂𝗣𝗮𝘆/𝗔𝗺𝗲𝗿𝗶𝗰𝗮𝗻 𝗲𝘅𝗽𝗿𝗲𝘀𝘀 जैसी कंपनियो की भूमिका होती है।
पेमेंट को सेटल करने के लिए VISA, Mastercard और अब Rupay कार्ड अपने अपने कार्ड नेटवर्क को ट्रांसक्शन के बीच मे लाते है और 𝐂𝐚𝐫𝐝 𝐈𝐬𝐬𝐮𝐞𝐫 बैंक और 𝐌𝐞𝐫𝐜𝐡𝐚𝐧𝐭 𝐀𝐜𝐪𝐮𝐢𝐫𝐞𝐫 बैंक के बीच इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट संदेशो का आदान प्रदान कर पेमेंट सेटलमेंट में बिचौलिए की भूमिका निभाते है।

इस तरह बीच में मीडिएटर का काम करने के लिए VISA या Mastercard बैंको से ट्रांसक्शन फी लेते है जो उनके इनकम का प्रमुख आधार होता है। इसके अलावा, बैंको को इन अंतराष्ट्रीय कंपनियो के नेटवर्क पे बने रहने के लिए भी हर तिमाही चार्ज देना पड़ता है, जो इनके इनकम का एक अन्य श्रोत है। इन कंपनियों का हर साल सैंकड़ो करोड़ रूपए का बिज़नेस भारत से होता है, और डिजिटल इकॉनमी की वजह से ये पैसा हजारो करोड़ भी पहुंचेगा।

पर UPI की सफलता के बाद VISA और Mastercard जैसे कंपनियो को चिंता हो गयी है। अब लोग पेमेंट करने के लिए कार्ड की जगह सीधे UPI ID का इस्तेमाल करते है और पेमेंट सेटलमेंट करने के लिए किस कार्ड कंपनी के नेटवर्क की जगह 𝐍𝐏𝐂𝐈 (𝐍𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧𝐚𝐥 𝐏𝐚𝐲𝐦𝐞𝐧𝐭 𝐂𝐨𝐫𝐩𝐨𝐫𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐨𝐟 𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚) के नेटवर्क का इस्तेमाल हो रहा है। जहां VISA और Mastercard अपने कार्ड नेटवर्क के इस्तेमाल पे बैंको से शुल्क लेते थे वहीं 𝐍𝐏𝐂𝐈 बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के दो बैंको के बीच पेमेंट सेटलमेंट के लिए बिचौलिए के रूप में सेवाएं दे रहा है।

UPI के अलावा VISA और Mastercard के लिए एक और बड़ी चिंता है और वो है 𝐍𝐏𝐂𝐈 द्वारा लांच Rupay कार्ड। यह पेमेंट सेटलमेंट के लिए 𝐍𝐏𝐂𝐈 के इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करता है। 2017 में जहां भारतीय डेबिट कार्ड बाजार में इसी हिस्सेदारी केवल 15% थी, और वो भी जनधन एकाउंट के भरोसे, वही 2020 में Rupay कार्ड की हिस्सेदारी 60% हो गयी है। हालांकि क्रेडिट कार्ड बाजार में Rupay केवल 20% ही दखल रखता है।

शुरू में जाहिर है challenges थे, लेकिन धीरे धीरे लोगो ने इसे सीखना और इस्तेमाल करना शुरू किया, और अब JAM , Rupay , और UPI ने अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया है । 43 करोड़ लोग, जो हमारे formal Financial System में कहीं थे ही नही, वे एकदम से mainstream में आ गए, JAM और Backend Infra की वजह से अब हर तबके के लिए डिजिटल transaction करना आसान था।

अब सब्जी वाला, जूते पोलिश करने वाला, कैब चलाने वाला, दर्जी, फल फूल वाला, और यहां तक कि भीख मांगने वालों ने भी UPI पेमेंट करना शुरू कर दिया, क्योंकि सबके पास बैंक एकाउंट थे, मोबाइल थे, और backend में एक जबर्दस्त Financial Backend System था, जो पूरी तरह से देसी था। Transaction फीस लगभग शून्य सी ही हो गयी, इसलिए लोगो ने इसे हाथों हाथ लिया।

लोगो ने अपने accounts में पैसे डालना शुरू किया, cash की जगह UPI से खातों में पैसे जाने लगे , और जाने लगे तो जमा भी होने लगे। आज की तारीख में करीब 43 करोड़ जनधन accounts हैं, जिनमे 1,46,230 करोड़ रुपये जमा हैं, जो करीब 20 Billion USD के बराबर है। ये संख्या इतनी ज्यादा है, कि अगर जनधन एकाउंट्स वालो का एक अलग देश हो, तो वो दुनिया का तीसरा बड़ा देश होगा, जनसंख्या के हिसाब से.

भारत को बेशक आप विकासशील कहें, पिछड़ा कहें, या फिर 3rd world country कहें, लेकिन इस लेवल का digitalization और financial inclusion दुनिया मे कहीं नही हुआ, जिस तेजी से हम Informal Economy से Formal की तरफ जा रहे हैं, वो अभूतपूर्व है, और इसका सम्पूर्ण श्रेय मोदी सरकार को जाता है।

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