सिंघु बॉर्डर पर पिछले दिनों एक भयानक घटना हुई, जहां निहंग सिखों ने एक गरीब युवक की बेरहमी से हत्या कर दी गई। उस युवक का हाथ काट दिया गया और उसके शव को किसान आंदोलन मंच के सामने लटका दिया गया। वहां मौजूद सिखों ने आरोप लगाया है कि युवक, जिसका नाम लखबीर सिंह है, जो तरन तारण का रहने वाला था, उसने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी।
चार निहंग सिखों ने आत्मसमर्पण कर दिया है, जिससे पहले उनका बाकायदा सम्मान किया गया, ऐसा दिखाया गया जैसे कि उन्होंने कोई महान कार्य किया हो। उनका स्वागत किया जा रहा था, नोटों की माला पहनाई जा रही थी, और ‘जो बोले सो निहाल’ के नारे लगाए जा रहे थे।
लोगो को निहंग सिखों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, तो सबसे पहले हम इस शब्द के बारे में आपको बताना चाहेंगे। ऐसा माना जाता है कि निहंग शब्द संस्कृत के नि:शंक शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है ‘जिसे किसी बात की शंका या भय न हो’, इस शब्द को पूर्ण योद्धा के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, और इस शब्द का उपयोग श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में भी कई जगह हुआ है।
निहंग सिख कौन होते हैं?
नीले कपड़े पहने और हथियार रखने वाले सिखों को निहंग सिख कहा जाता है। ये आमतौर पर पारंपरिक या आधुनिक, या दोनों तरह के हथियारों से लैस होते हैं। इनमें जंगी कड़ा, पगड़ी के चारों ओर एक चक्र, और कलाई के चारों ओर पहने जाने वाले लोहे के कंगन शामिल हैं। ये अपने पास तलवारें, कृपाण, खंजर और भाले भी रखते हैं, इसके अलावा ये ढाल, गले में चक्रम और लोहे की जंजीरें भी पहनते हैं। निहंग सिख अपने आक्रामक रुख के कारण ये भी जाने जाते हैं।
निहंगों को अलग पोषक और इनके तौर तरीको का कारण भी है, गुरु गोविंद सिंह जी के 4 पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे थे फतेह सिंह। गिरु गोविन्द सिंह जी की तीनो बड़े बेटे एक साथ युद्ध कला का अभ्यास किया करते थे, चूंकि फ़तेह सिंह उस समय उम्र में छोटे थे, उन्हें युद्ध कला का अभ्यास नहीं कराया जाता था। एक दिन फतेह सिंह वहां पहुंचे और जिद करने लगे युद्ध कला को सीखने की, जिस पर बड़े भाइयो ने उन्हें समझाया कि वो अभी छोटे हैं इसलिए अभी उनके लिए ये सही समय नहीं है।

ये सुनते हो घर चले गए और एक बड़ी सी पगड़ी और नीले रंग के कपडे पहन कर आए और कहा कि अब मैं छोटा नहीं लग रहा हूं, और अब मैं भी युद्ध कला सीख सकता हूँ। ऐसा कहा जाता है कि तभी से निहंग पंथ की नीली वेशभूषा और बड़ी पगड़ी की शुरुआत हुई। और चूंकि ये फ़ौज फ़तेह सिंह कि वजह से बानी, और उन्हें गुरु गोविंद सिंह जी का सबसे लाडला पुत्र माना जाता था, इसी वजह से निहंगों को ‘गुरु दी लाडली फौज’ भी कहा जाता है।
महान फ़ौज बनी अपराधियों का गैंग
सिंघू बॉर्डर कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले अप्रैल 2020 में निहंग सिखों ने पटियाला में एक पुलिस वाले पर हमला कर उसका हाथ काट दिया था। निहंग सिख गाड़ी में बैठकर मंडी में एंट्री ले रहे थे। वहां मौजूद पुलिस वालों ने उन्हें गेट पर रोका और कर्फ्यू पास दिखाने को कहा था।

दरअसल उस समय लॉकडाउन की वजह से कर्फ्यू पास दिखाना जरूरी था। निहंगों ने बैरिकेड तोड़ते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी जिसे रोकने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया था। उसके बाद निहंगों ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया था।
इसी तरह से पिछले साल भी दिल्ली में एक युवक का हाथ निहंग सिख ने काट दिया था । इसके अलावा 26 जनवरी को लाल किले पर हुए शर्मनाक कब्जे में भी निहंग सिख सबसे आगे थे, ऐसा माना जाता है कि लाल किले कि तरफ जाने वाले ट्रेक्टर के आगे निहंग सिखों का पूरा काफिला था, जो घोड़ो पर सवार थे।

पंजाब में निहंग सिखों ने कई मौको पर तोड़ फोड़ भी की है, कई जगह ये लोग बसों को रोकते, तोड़ते फोड़ते भी दिखे हैं ।
निहंगों का कलुषित इतिहास
ऐसा नहीं है कि निहंग अभी ही कुछ कुकर्म कर रहे हैं, इनका कलुषित इतिहास रहा है, और इनकी ऐसी ही हरकतों की वजह से सिखों के महानतम राजा रणजीत सिंह जी भी निहंगों के खिलाफ थे, और समय समय पर इनके खिलाफ कार्यवाही करते थे। एक बार एक निहंग ने राजा रणजीत सिंह के दरबान का हाथ काट दिया, क्यूकी उसने बिना इजाजत निहंग को राजा से मिलने से रोका था, इस घटना की जानकारी मिलते ही रणजीत सिंह ने उस निहंग के नाक, कान और हाथ काट देने का आदेश दे दिया था।
ये हम नहीं कह रहे, इन घटनाओ का उल्लेख किया है महाराजा रंजीत सिंह के डॉक्टर John Martin Honigberger’s ने अपनी किताब “Thirty-five Years in the ईस्ट” मे।


निहंग खुद को धार्मिक योद्धा कहते हैं, लेकिन धीरे धीरे वो लूट पाट करने लगे, और ये सब इस हद तक बढ़ गया कि राजा रंजीत सिंह को सेना तैनात करनी पड़ी निहंगों से गाँव और कस्बो की सुरक्षा करने के लिए।

राजा रणजीत सिंह निहंगों से इतना परेशान हो चुके थे, कि उन्होंने निहंगों को लफंगो की फ़ौज कहा था, उन्होंने कहा था की इन लोगो को भगवान् ने कोई समझदारी या सोचने कि क्षमता नहीं दी है।

28 अक्टूबर 1831 को तो एक निहंग सिख ने महाराजा रणजीत सिंह पर हमला करने की कोशिश भी की थी, उसे पकड़ा गया था और फिर महाराजा ने उसकी पिटाई करने का आदेश भी दिया था। बाद में उस निहंग को जेल में डाल दिया गया था।

महाराजा रणजीत सिंह निहंगों से इतना परेशान थे, कि बाद में उन्होंने इन पर नियंत्रण करने के लिए कुछ निहंगों को अपने शासन में स्थान दिया, वहीं जो निहंग कानून व्यवस्था के लिए परेशानी उत्पन्न करते थे, उन्हें वो सख्त से सख्त सजा देते थे।
निहंग सिख शायद ये भूल गए हैं कि उन्हें क्यों बनाया गया, और उनका क्या उद्देश्य है। उन्हें हथियार दे दिए गए, लेकिन इन हथियारों को संभालना उन्हें नहीं आता, वो जब चाहे किसी पर भी हथियार उठा देते हैं, जब चाहे किसी का हाथ काट देते हैं , जब मन चाहे किसी को गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी का आरोप लगा कर मार देते हैं, और जहां ये रहते हैं वहां कानून-व्यवस्था को बिगाड़ कर रखते हैं।

आज ये सिखों को सोचना चाहिए कि कैसे इन निहंगों पर नियंत्रण करना है, सिंघू बॉर्डर की घटना के बाद अभी तक किसी भी गुरूद्वारे या SGPC ने इस घटना की भर्त्स्ना नहीं की, और ना ही सिख समझ से इस घटना पर कोई आक्रोश दिख रहा है, हाँ इन कातिल निहंगों का सामान होता जरूर दिख रहा है, वहीं सोशल मीडिया पर भी कई सिख इन निहंगों का समर्थन करते दिख रहे है।
ये काफी गलत ट्रेंड है और हमे इतिहास से सीख लेनी चाहिए , ऐसे गैर कानूनी लोगो को बढ़ावा देंगे तो फिर से भिंडरावाले जैसा कोई पैदा होगा, हजारो हिन्दू और सिख मारे जाएंगे, इसलिए इन निहंगों का सभी को मुखर हो कर विरोध करना चाहिए, और सरकार को चाहिए कि इन पर सख्त कानूनी कार्यवाही करे ।