यथाया दृढ़कथनम् क्रियते, तत लज्जा गौरी एका निर्लज्जा देवी, यस्या: चित्राणां प्रयुज्य सदैव इस्लामवादिभिः क्रिस्तीयै:, वाम-उदारवादिभिः हिंदून् भोग, पागला:, असभ्य जनानां रूपे उपहासितुं क्रियते !
जैसा कि दवा किया जा रहा है, कि लज्जा गौरी एक बेशर्म देवी है, इनकी छवियों का उपयोग अक्सर इस्लामवादियों और ईसाइयों, वाम-उदारवादियों द्वारा हिंदुओं को सेक्स, पागलों, असभ्य लोगों के रूप में उपहास करने के लिए किया जाता है !
केचन पाश्चात्य इतिहासकारा: तु तया निर्लज्ज देव्यापि कथयन्ति ! द्वादशानि शताब्द्या: अनंतरम्, लज्जा गौरी इमानि चित्राणि तस्या: पूजनस्य च् संस्कृति हिंदू समाजतः गोपितं अभवत् ! बहवः जनाः कथयन्ति तत लज्जा गौरी एका तांत्रिक देवी साधारणतया तस्या: पूजनम् न क्रियते !
कुछ पश्चिमी इतिहासकार तो उन्हें बेशर्म देवी भी कहते हैं ! 12वीं शताब्दी के बाद, लज्जा गौरी की ये छवियां और उनकी पूजा करने की संस्कृति हिंदू समाज से लगभग गायब हो गई ! कई लोग कहते हैं कि लज्जा गौरी एक तांत्रिक देवी हैं और आमतौर पर उनकी पूजा नहीं की जाती है !
आगच्छन्तु ज्ञायन्ते किमिदम् सत्यं ! स्व गुप्तांग प्रदर्शका देव्या: पूजनम् कृतस्येदम् संस्कृति कति प्राचीन: ? लज्जा गौरीम् पुनर्वसु नक्षत्र्या: अदिति देव्या: रूपे अपि ज्ञायते ! पुनर्वसु इत्यस्य अर्थ: पुनः-पुनः प्रस्फुरणम्, सृष्टि अभ्यांतरम् सृजनम् !
आइए जानें कि क्या यह सच है ! अपने गुप्तांग दिखाने वाली देवी की पूजा करने की यह संस्कृति कितनी प्राचीन है ? लज्जा गौरी को पुनर्वसु नक्षत्र की अदिति देवी के रूप में भी जाना जाता है, पुनर्वसु का अर्थ है बार-बार चमकना, सृष्टि के भीतर सृजन करना !
अदित्या: शाब्दिक अर्थ: अविभाजितं, अद्वैतं ! ऋग्वेद १०.७२.४ इत्यां उद्धृतं तत अदित्या: जन्म दक्ष प्रजापतितः अभवत् स्म !
श्लोक-भूर्जज्ञ उत्तानपदो भुव आशा अजायन्त ।
अदितेर्दक्षो अजायत दक्षाद्वदितिः परि ॥
अदिति का शाब्दिक अर्थ अविभाजित, अद्वैत है ! ऋग्वेद 10.72.4 में कहा गया है कि अदिति का जन्म दक्ष प्रजापति से हुआ था !
शलोकार्थ-पृथ्वी का जन्म ऊपर की ओर बढ़ने वाले (वृक्ष) से हुआ, चतुर्भुजों का जन्म पृथ्वी से हुआ, अदिति से दक्षवास का जन्म हुआ, और उसके बाद दक्ष से अदिति का जन्म हुआ !
केचन ग्रन्थेषु तया ब्रह्मस्य भार्या रूपे अवदत् ! यस्यानंतरम् अदिति महर्षि कश्यपतः विवाह: कृतवती सर्वेषां देवानां च् माताभवन् ! अदित्या: भगिनी दिति, या दानवान् जन्म दत्तवती, दानवा: विभाजने विश्वास: कुर्वन्ति, कदाचित् तेषां मातु: नाम दिति द्वैतस्य ज्ञानम् ददाति !
कुछ ग्रंथों में उन्हें ब्रम्हा का स्त्री रूप में बताया गया है ! इसके बाद अदिति ने महर्षि कश्यप से विवाह किया और सभी देवताओं की माता बन गईं ! अदिति की बहन दिति है, जिसने दानवों को जन्म दिया, दानव विभाजन में विश्वास करते हैं, क्योंकि उनकी मां का नाम दिति द्वैत का सुझाव देता है !
तु यं देवी अदितिम् सर्वेषां देवानां मातु: रूपे भारते पूज्यते, पुरातन चित्रारेखे सा स्व द्वे हस्ते जलज धरति, तस्या: च् शिरस्य स्थाने एकं वृहत् जलजमस्ति ! अधुना जलजस्य महत्वं कास्ति ? साधरणतया वयं अम्बुजम् ज्ञानस्य प्रतीकस्य रूपे ज्ञायाम: !
तो इस देवी अदिति को सभी देवताओं की माता के रूप में पूरे भारत में पूजा जाता है, प्राचीन नक्काशी में वह अपने दोनों हाथों में कमल रखती है, और उसके सिर के स्थान पर एक बड़ा कमल है ! अब कमल का महत्व क्या है ? आमतौर पर हम कमल को ज्ञान के प्रतीक के रूप में जानते हैं !
तु तंत्रे योन्या: उपदेशम् अम्बुजस्य प्रतीकेण दीयते, उकड़ू स्थित्यां तिष्ठुम् शेतुं वा, पाद दीर्घ कृत्वा योनि प्रदर्शितुं, एकं मुद्रा यस्मिन् महिला: शिशुम् जन्म ददान्ति ! वयं लज्जा गौर्या: पूजनं कदातः कुर्याम: ?
लेकिन तंत्र में योनि का सुझाव कमल के प्रतीक द्वारा दिया जाता है, उकडू स्थिति में बैठना या लेटना, पैर चौड़े करके योनि दिखाना, एक मुद्रा जिसमें महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं ! हम लज्जा गौरी की पूजा कब से कर रहे हैं ?
विस्मितकर्ता वार्तायमस्ति तत हड़प्पा कालतः एव वयं तस्या: पूजनम् कर्तुमागच्छामः ! त्रिशूल इत्या सह हड़प्पा, टेराकोटा लज्जा गौर्या: चित्राणि, विना कमलम् शिरे हस्ते वा कमलम्, अतएव कमलेण शिरेण सह वर्तमानस्य चित्राणि संभवतः तांत्रिकाः सन्ति !
चौंका देने वाली बात यह है कि हड़प्पा काल से ही हम उनकी पूजा करते आ रहे हैं ! त्रिशूल के साथ हड़प्पा, टेराकोटा लज्जा गौरी की छवियां, बिना कमल का सिर या हाथ में कमल, इसलिए कमल के सिर के साथ हाल की छवियां संभवतः तांत्रिक हैं !
किं वयं एकल जना: सन्ति याः इदृशैव स्थित्यां तिष्ठन्ती देव्या: पूजनम् कुर्याम: येन आधुनिक वंशज संभोगायामंत्रणम् मान्यति ? न, वयं एकल न सन्ति, पूर्ण यूरोपम् भूमध्यसागरीय देशम् च् तस्या: पूजनम् क्रियन्ते स्म ! यथा शिला नागिग, इदम् चित्रम् स्वीडने ळब्धवत् !
क्या हम अकेले लोग हैं जो ऐसी स्थिति में बैठी देवी की पूजा करते हैं जिसे आधुनिक पीढ़ी सेक्स के लिए निमंत्रण मानती है ? नहीं, हम अकेले नहीं हैं, पूरा यूरोप और भूमध्यसागरीय देश उनकी पूजा कर रहे थे ! जैसे शिला नागिग, यह तस्वीर स्वीडन में मिली है !
इमानि चित्राणि सर्वेषु यूरोपीय देशेषु, भवनेषु, गिरजागृहेषु ळब्धुम् शक्नोन्ति ! यूरोपीय जनाः तया उर्वरतायाः देव्या: रूपे पूजयन्ति स्म ! अद्यत्वे सीरिया, मिस्र यथैव मुस्लिम देशेषु लब्धकानि एतेषु चित्रेषु देवी-देवानां नाम अपि पृथक:-पृथक: सन्ति !
ये चित्र पूरे यूरोपीय देशों में, महलों, इमारतों, गिरजाघरों में पाए जा सकते हैं ! यूरोपीय लोग उन्हें उर्वरता की देवी के रूप में पूजते थे ! आजकल सीरिया, मिस्र जैसे मुस्लिम देशों में पाई जाने वाली इन तस्वीरों में देवी-देवताओं के नाम भी अलग-अलग हैं !
भारतस्य कस्मिन् प्रान्ते पुरातन भारतीयै: वृक्षाणां लज्जा गौर्या: पूजनम् क्रियन्ते ! अनुमानतः संपूर्ण भारते, किं न एमपी असि, राजस्थानमसि, कर्नाटकमसि, तेलंगानामसि, गुजरातमसि, अन्य वा कश्चित देशम् राज्यम् वा !
भारत के किस भाग में प्राचीन भारतीयों द्वारा पेड़ों की लज्जा गौरी की पूजा की जाती है ! लगभग पूरे भारत में, चाहे वह एमपी हो, राजस्थान हो, कर्नाटक हो, तेलंगाना हो, गुजरात हो, या अन्य कोई देश या राज्य !
फोटो-लेख साभार x लेखक shiva