आरएसएस से ‘घृणा’ क्यों?

Date:

हाल का घटनाक्रम क्या रेखांकित करता है? 2008 के मालेगांव बम धमाका मामले में एक साक्षी ने खुलासा किया है कि आतंकवाद निरोधी ईकाई ने उसे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चार नेताओं के नाम लेने पर विवश किया था। यह सब उस कुत्सित षड़यंत्र का हिस्सा है, जिसमें डेढ़ दशक पहले मनगढ़ंत ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्दावली से भीषण 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले को आरएसएस का उपक्रम बताने का विफल प्रयास हुआ था। तब इसके मुख्य सूत्रधार कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी के साथ दिग्विजय सिंह, पी.चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे आदि थे।

आखिर आरएसएस और भाजपा से अकूत द्वेष का कारण क्या है? भारत की सनातन संस्कृति की रक्षा, एकता, संप्रभुता, समावेशी विचारों, बहुलतावाद और राष्ट्रवाद के कारण संघ और भाजपा- स्वतंत्र भारत में एक विशेष समूह द्वारा दशकों से ‘घृणा’ के साथ राजनीतिक-वैचारिक-सामाजिक ‘अस्पृश्यता’ का दंश झेल रहा है। कुछ दिन पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत की समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ एक वैवाहिक कार्यक्रम में बैठने, तो ट्रेन में वाईएसआर-कांग्रेस के राज्यसभा सांसद वी.विजयसाई रेड्डी के साथ तस्वीर वायरल हुई। अक्सर, विरोधी नेताओं की एकाएक भेंट पर कई तरह के राजनीतिक अनुमान लगाए जाते है, जोकि स्वाभाविक भी है। किंतु इन तस्वीरों पर अधिकांश विरोधियों ने जिस प्रकार प्रतिक्रिया दी, उससे ऐसा लगा कि जैसे संघ के शीर्ष पदाधिकारी से मिलना अक्षम्य ‘अपराध’ के समरूप है।

पिछले 75 वर्षों से भारतीय नैरेटिव विदेशी मार्क्स-मैकॉले चिंतन से जकड़ा हुआ है। इनके मानसपुत्रों को भ्रम है कि विचारों पर केवल उनका विशेषाधिकार है और उनके मुख से निकली प्रत्येक बात अंतिम सत्य है, जबकि संघ और भाजपा के विचार- विमर्श योग्य भी नहीं। यह स्थिति तब है, जब भारतीय सनातन संस्कृति में मतभिन्नता अनादिकाल से स्वीकार्य है। भगवान गौतमबुद्ध बनने से पहले राजकुमार सिद्धार्थ ने तत्कालीन स्थापित मान्यताओं को चुनौती दी, जिसके पश्चात नए बौद्ध पंथ का अवतरण हुआ। आज भी करोड़ों हिंदुओं का बौद्ध अनुयायियों के साथ बंधुत्व न केवल अक्षुण्ण है, अपितु बुद्ध को राम-कृष्ण की भांति भगवान विष्णु का एक अवतार मानकर लाखों-करोड़ हिंदू अपने घरों-दुकानों में बुद्ध की तस्वीर सहज रूप से लगाते है। इसी जीवंत परंपरा में आदि शंकराचार्य और भारती मिश्र के बीच प्रसिद्ध शास्त्रार्थ, गुरू नानकदेवजी, कबीर, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि का विशेष स्थान रहा है। इस पृष्ठभूमि में भगवान बुद्ध के लगभग 500 वर्ष बाद जन्मे ईसा मसीह के साथ क्या हुआ था, फिर ईसा के अनुचरों ने क्या कुछ किया और सदियों से मुस्लिम समुदाय में व्याप्त ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा और शिया-सुन्नी विवाद- वह सर्वविदित है।

जिस प्रकार ‘केवल मैं सच्चा, बाकी सब झूठे’ चिंतन ने वैश्विक मानवता को गंभीर क्षति पहुंचाई है, जिससे अब भी चुनौती मिल रही है, ठीक उसी तरह राजनीतिक-वैचारिक जीवनयात्रा में विरोधियों से घृणा और हिंसा- लोकतंत्र, बहुलतावाद और पंथनिरपेक्षता रूपी जीवनमूल्यों को अस्वस्थ कर रहा है। इस विकृति को वामपंथ ने सर्वाधिक प्रोत्साहित किया है। विरोधियों को केवल शत्रु मानने, उनके विचारों के प्रति असहिष्णुता, अधिनायकवाद, मानवाधिकार हनन और हिंसा- वामपंथ के केंद्र में है। यही कारण है कि वामपंथियों द्वारा दशकों तक शासन करने के कारण प.बंगाल और केरल में राजनीतिक-वैचारिक विरोधियों की निर्मम हत्या सामान्य अपराध बन चुका है। चूंकि वामपंथियों ने पाकिस्तान के जन्म में दाई की भूमिका थी और 1962 के युद्ध में समान विचारधारा के कारण शत्रु चीन का साथ दिया था, इसलिए उनकी सहानुभूति आज भी मजहबी आतंकवादियों, अलगाववादियों और देशविरोधी शक्तियों से प्रत्यक्ष है।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू और समकालीन विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी, अलग-अलग विचारधाराओं के ध्वजवाहक थे। दोनों में गहरा मतभेद था, परंतु मनभेद नहीं। यह पं.नेहरू द्वारा अटल के प्रधानमंत्री बनने की ‘भविष्यवाणी’ और वाजपेयी द्वारा पं.नेहरू के निधन पर दी गई भावुक श्रद्धांजलि से स्पष्ट है। इसके अतिरिक्त, 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ की निस्वार्थ राष्ट्रसेवा देखने और पूर्वाग्रह के बादल छंटने के बाद 1963 के गणतंत्र दिवस में परेड के लिए पं.नेहरू द्वारा आरएसएस को आमंत्रित करना, 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के निमंत्रण पर संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर का सामरिक बैठक में पहुंचना, 1973 में गोलवलकर के निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा शोक प्रकट करते हुए उन्हें राष्ट्र-जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला विद्वान और प्रभावशाली व्यक्ति बताना- स्वस्थ लोकतंत्र और बहुलतावाद के प्रतीक थे।

यह परिदृश्य तब बदलना प्रारंभ हुआ, जब 1969 में कांग्रेस टूटने के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी सरकार बचाने के लिए वामपंथियों का सहारा ले लिया और उनका सनातन भारत विरोधी दर्शन, राष्ट्रीय मुख्यधारा का अंग बन गया। तब कांग्रेस ने वामपंथी चिंतन को ‘आउटसोर्स्ड’ कर लिया और कालांतर में पार्टी उससे ऐसी जकड़ी कि जिन इंदिरा गांधी ने वीर विनायक दामोदर सावरकर के सम्मान में स्वयं डाक-टिकट जारी करते हुए स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की प्रशंसा की थी, उन्हीं इंदिरा की पार्टी और समकक्ष नेताओं ने संघ और सावरकर के खिलाफ विषवमन शुरू कर दिया।

यह वामपंथीकरण का प्रभाव है कि कांग्रेस ने अंडमान की अंडाकार जेल से वीर सावरकर के विचारों को हटा दिया, सर्वोच्च न्यायालय में शपथपत्र देकर श्रीराम को काल्पनिक बता दिया, मनगढ़ंत ‘हिंदू/भगवा आतंकवाद’ सिद्धांत को जन्म दिया, हिंदू-विरोधी सांप्रदायिक विधेयक ले आई, जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे…’ नारे लगाने वाले आरोपियों का समर्थन किया, अलगाववादियों-आतंकियों से हमदर्दी रखी, भारतीय सेना के शौर्य (सर्जिकल स्ट्राइक सहित) पर प्रश्नचिन्ह लगाया, चुनाव में पराजय के लिए ईवीएम-चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाया, कोविड-रोधी स्वदेशी टीकों पर संदेह जताया, तो अब हिंदुत्व का तिरस्कार करके समस्त हिंदू समाज को फिर से कलंकित कर रही है।

मतभिन्नता, लोकतंत्र और बहुलतावाद को स्वस्थ रखती है। परंतु विचारों में भिन्नता शत्रुभाव नहीं बदलनी चाहिए। यदि सभ्य-समाज में सामाजिक अस्पृश्यता अस्वीकार्य है, तो लोकतंत्र में राजनीतिक अस्पृश्यता को कैसे स्वीकार किया जा सकता है?

Balbir Punj
Balbir Punj is a journalist & former Rajyasabha Member

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

राजस्थानस्य डीगे अलभत् महाभारत कालस्य अवशेष: ! राजस्थान के डीग में मिले महाभारत काल के अवशेष !

भारतीय-पुरातत्त्व-सर्वेक्षणेन (ए. एस्. आई.) राजस्थानस्य डीग्-जनपदस्य बहज्-ग्रामे उत्खननकाले महाभारत-कालस्य, महाजनपद-कालस्य, मौर्य-कालस्य, कुषाण-कालस्य च अवशेषाः प्राप्ताः। ग्रामे गतचतुर्मासात् उत्खननम्...

हैदरतः हरिनारायण भूते इस्लामिक कट्टरपंथिन: हन्तुं भर्त्सकः दत्तुमरभत् ! हैदर से हरि नारायण बनने पर इस्लामिक कट्टरपंथी देने लगे जान से मारने की धमकी...

मध्यप्रदेशस्य इन्दोर्-नगरे सनातनधर्मात् प्रभावितः हैदर्-शेख् नामकः इस्लाम्-मतं परित्यज्य सम्पूर्णं विधि-व्यवस्थां विधिपूर्वकं हिन्दुधर्मं प्रति परिवर्त्य हैदर्-शेख् इत्यतः हरि-नारायणः अभवत्!...

त्वम् (हिन्दवः) ३०%, वयं (मुस्लिम्-जनाः) ७०%, २ घण्टासु भागीरथी इत्यस्मिन् क्षिपस्याम:-टीएमसी विधायक हुमायूँ कबीर: ! तुम (हिंदू) 30%, हम (मुस्लिम) 70%, 2 घंटे में...

पश्चिमबङ्गालराज्ये लोकसभा-निर्वाचनस्य २०२४ तमस्य वर्षस्य तृतीय-चरणस्य मतदानस्य कृते सज्जतां, तृणमूल् काङ्ग्रेस् पक्षस्य (टि. एम्. सि.) विधायकः हुमायून् कबीर्...

सी. एन्. एन्. भारते शरिया-शासनम् इच्छति, विरोधिनः इस्लाम्-विरोधिनः इति वदति ! भारत में शरिया शासन चाहता है CNN, मुखालफत करने वालों को बताता है...

भारते लोकसभानिर्वाचनानां मध्ये पाश्चात्यमाध्यमाः भारतीयान् निर्वाचकान् प्रधानमन्त्रि-मोदी-सर्वकारस्य विरुद्धं कथं परिवर्तयेत् इति ज्ञातुं पूर्णतया प्रयतन्ते! पाश्चात्त्यमाध्यमाः निरन्तरं लेखान् प्रकाशयन्ति...
Exit mobile version