लखनऊ (LUCKNOW): हिन्दुस्तान गांवों में बसता है. आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती पर आश्रित होकर अपनी जीविका चलाता है। सूबों और सेन्टर की सरकारें भी गांवों को ही केन्द्र में रखकर अपनी योजनाएं बनाती हैं, लेकिन इसके बावजूद आजादी के एक अर्से बाद भी गांवों के हालात नहीं बदले हैं। यह बात बहुतों को कचोटती है।
गांव से जमीनी जुड़ाव रखते प्रशासनिक सेवा के एक ऐसे ही वरिष्ठ अधिकारी ने गंवई हालात को बदलने के लिए युद्ध सा छेड़ दिया है। यूपी सरकार के विभिन्न विभागों में काम के अपने अनुभवों को निचोड़कर इस आईएएस ने प्रदेश में एक अभियान सा चला दिया है। शुरूआती एकला कोशिश में अब कई चेहरे दिन-रात खुद को झोंक चुके हैं। इस सपने को जमीन पर उतारने के ळिए गोमतीनगर में हाईकोर्ट के गेट-नम्बर 7 के पास एक दफ्तर भी शुरू कर दिया गया है।
दरअसल, मॉडल गांव के इस ख्वाब की नींव यूपी के बांदा में पड़ी। हीरा लाल साल 2018 से 2020 के बीच इसी जिले में कलेक्टर थे। इसी दौरान किसानों के बीच काम करते उनकी मुश्किल बूझते डीएम हीरालाल ने कई ऐसे काम कर डाले जो उस इलाके के लिए मील के पत्थर बन गये। मसलन, गांव से जुड़े कारोबारी प्रकृति के किसानों को पहले तो विकास भवन और मंडी में बुलाकर जमीनी हालात से प्रशिक्षित किया गया गया और फिर ग्राम प्रधान की अगुवाई में एक टोली को अन्ना के गांव रालेगन सिद्धि और महाराष्ट्र के हिवड़े बाजार गाँव भेजा गया। इस समझ और सफर का नतीजा भी निकला।बांदा में जानकारों को जुटाकर बाकायदा किसान प्रशिक्षण भी बार-बार हुआ। नतीजा यह कि किसानों की आय, उपज, ज्ञान, मनोभाव सभी में तब्दीली आई।
अब इसी जमीनी प्रयोग के हासिल को देश भर में फैलाने की तैयारी है। जाहिर है अच्छी सोच को जाने-अनजाने कई हाथ भी सहारा दे देते हैं। इस कोशिश के साथ अब नाबार्ड के पूर्व महाप्रबंधक मुनीश गंगवार हिस्सा हैं। खेती-किसानी से वास्ता रखते पद्मश्री राम शरण वर्मा, पद्मश्री भारत भूषण त्यागी, पद्मश्री कंवलजीत सिंह राणा, पद्मश्री बाबूलाल दहिया चिंतित रहते हैं कि इस विचार को कैसे देश भर का हिस्सा बना दिया जाये।
आईआईएम लखनऊ के प्रोफेसर देवाशीष दास गुप्ता, मेरठ कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गया प्रसाद, रिवरसाइड यूनिवर्सिटी कैलिफ़ोर्निया के प्रोफेसर आरके सिंह, एकेटीयू के पूर्व कुलपति प्रोफेसर कृपा शंकर इस मुहिम में सक्रिय भागीदारी करते हैं। सौरभ लाल, विवेक गंगवार सरीखे पुराने साथी तो साथ हैं ही।
इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कुछ रास्ते बनाये गये हैं मसलन सबसे पहले जागरूक लोगों के साथ मिलकर गांव घोषणापत्र बनवाना। इसमें गांव की जरूरतों, तरक्की के रास्तों, फसल और दूसरी जरूरतों पर चिंतन कर गांव को साथ मिलकर तरक्की के रास्ते पर आगे ले जाना है।
जाहिर है यह तरक्की भी सर्वागीण होनी चाहिए। शायद इसी लिए आदर्श गांव के निर्माण में गांव की और खुद की साफ-सफाई, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती को लाभदायक बनाना, वैकल्पिक बिजली के स्रोत, जल संरक्षण और उपलब्धता, सभी को रोजगार, जैविक खेती, संवाद तंत्र, आदि-आदि कोशिशें शामिल हैं।