भगवतः शिवेण संलग्न: केचन रोचकतथ्यं !भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य !

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भगवतः शिवस्य कश्चित मातु-पितु नास्ति ! तेन अनादि मानितं ! अर्थतः यत् सदैवातासीत् ! यस्य जन्मस्य कश्चित तिथिम् नास्ति !

भगवान शिव का कोई माता-पिता नही है ! उन्हें अनादि माना गया है ! मतलब जो हमेशा से था ! जिसके जन्म की कोई तिथि नही है !

ॐ नमः शिवाय

कथक, भरतनाट्यम् कृतस्य कालम् भगवतः शिवस्य यत् मूर्ति ध्रीति तेन नटराज: इति कथ्यते ! कश्चितापि देव्या:-देवस्य त्रोटितं मुर्त्या: पूजनं न भवितं ! तु शिवलिंग: कत्यापि त्रोटितं पुनश्चापि पूजयते !

कथक, भरतनाट्यम करते वक्त भगवान शिव की जो मूर्ति रखी जाती है उसे नटराज कहते है ! किसी भी देवी-देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही होती ! लेकिन शिवलिंग कितना भी टूट जाए फिर भी पूजा जाता है !

शिव भगवतस्य एका भगिनी अप्यासीतमावरी ! येन मातु पार्वत्या: दुराग्रहे स्वयं महादेव: स्व मायाया निर्मित: स्म ! भगवतः शिव मातु पार्वती च् एकमेव पुत्रमासीत् ! यस्य नामासीत् कार्तिकेय: ! गणेश: भगवतः तदा मातु पार्वती स्वोबटनेन निर्मिता स्म !

शंकर भगवान की एक बहन भी थी अमावरी ! जिसे माता पार्वती की जिद्द पर खुद महादेव ने अपनी माया से बनाया था ! भगवान शिव और माता पार्वती का 1 ही पुत्र था ! जिसका नाम था कार्तिकेय ! गणेश भगवान तो मां पार्वती ने अपने उबटन (शरीर पर लगे लेप) से बनाए थे !

भगवतः शिव: गणेश महाशयस्य सिर: येन कारणं कर्तित: स्म कुत्रचित गणेश: शिवम् पार्वत्या मेलने न दत्त: स्म ! तस्य मातु पार्वती इदृशं कृताय बदिता स्म !

भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इसलिए काटा था क्योकिं गणेश ने शिव को पार्वती से मिलने नही दिया था ! उनकी मां पार्वती ने ऐसा करने के लिए बोला था !

भोले बाबा: तांडवस्यानंतरम् सनकादि:/पाणिनि: इताभ्यां चतुर्दश वारम् ढक्का बदित: स्म ! यस्मात् माहेश्वर सूत्र अर्थतः संस्कृत व्याकरणस्याधारं प्रकटितं स्म !

भोले बाबा ने तांडव करने के बाद सनकादि/पाणिनि के लिए चौदह बार डमरू बजाया था ! जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था !

शंकर भगवते कदापि केतक्या: पुष्पम् न समर्पित: ! कुत्रचित अयम् ब्रह्म महाशयस्य अनृतस्य साक्षी निर्मितं स्म !

शंकर भगवान पर कभी भी केतकी (किंसुक) का फुल नही चढ़ाया जाता ! क्योंकि यह ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था !

शिवलिंगे विल्वपत्रं तदा लगभगम् सर्वाणि समर्पते ! तु यस्मै अपि एकम् विशेषं सतर्कता कर्तुम् भवति तत विना जलम् विल्वपत्रं न समर्पयति !

शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है ! लेकिन इसके लिए भी एक खास सावधानी बरतनी पड़ती है कि बिना जल के बेलपत्र नही चढ़ाया जाता है !

शंकर भगवते शिवलिंगे च् कदापि दीर्घनादेन जलम् न समर्पितं ! कुत्रचित शिव महाशयः शंखचूड़म् स्व त्रिशूलेन दग्धितः स्म ! भवतः ज्ञापयन्तु, शंखचूड़स्यास्थिभिः इव दीर्घनाद: निर्मितं स्म !

शंकर भगवान और शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता ! क्योकिं शिव जी ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था ! आपको बता दें, शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था !

भगवतः शिवस्य कण्ठे यत् सर्पमावृतैति तस्य नामास्ति वासुकि: ! अयम् शेषनागस्यानंतरम् व्यालानां द्वितीय नृपः आसीत् ! भगवत: शिव: प्रसन्नम् भूत्वा येन ग्रीवायामावृत्तस्य वरं दत्त: स्म !

भगवान शिव के गले में जो सांप लिपटा रहता है उसका नाम है वासुकि ! यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था ! भगवान शिव ने खुश होकर इसे गले में डालने का वरदान दिया था !

निशाकरं भगवतः शिवस्य जटासु वासस्य वरं लब्ध: ! नंदी, यत् शंकर भगवतस्य वाहनं तस्य सर्वेषु गणेषु सर्वात् उपरि चपि अस्ति ! सः वास्तवे शिलाद ऋषिम् वरे लब्ध: पुत्रमासीत् ! यतनंतरे कठोर तपस्य कारणं नंदी: निर्मित: स्म !

चंद्रमा को भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान मिला हुआ है ! नंदी, जो शंकर भगवान का वाहन और उसके सभी गणों में सबसे ऊपर भी है ! वह असल में शिलाद ऋषि को वरदान में प्राप्त पुत्र था ! जो बाद में कठोर तप के कारण नंदी बना था !

गंगा भगवतः शिवस्य शिरात्किं प्रवहति ? देवी गंगाम् यदा धरायां अवतरस्य विचारिता तदा एकम् संकटम् आगतः तत तस्या: वेगेन तदा दीर्घ विनाशम् भविष्यते !

गंगा भगवान शिव के सिर से क्यों बहती है ? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने की सोची तो एक समस्या आई कि इनके वेग से तो भारी विनाश हो जाएगा !

तदा शंकर भगवतम् मानितं तत प्रथम गंगाम् स्व जटासु निबध्यतु, पुनः भिन्न-भिन्न दिशाभिः मंथरम्-मंथरम् तया धरायां अवतारयतु !

तब शंकर भगवान को मनाया गया कि पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें !

शंकर भगवतस्य वदनं नील: येन कारणं भवितः कुत्रचित सः गरलम् पात: स्म ! वस्तुतः समुद्र मंथनस्य कालम् चतुर्दश वस्तुनि निःसृतानि स्म !

शंकर भगवान का शरीर नीला इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होने जहर पी लिया था ! दरअसल, समुद्र मंथन के समय 14 चीजें निकली थी !

त्रयोदश वस्तुनि असुरा: देवा: च् अर्धार्ध विभाजिता: तु हलाहल इति नामकस्य गरलम् नीयस्य कश्चित तत्परं नासीत् !

13 चीजें तो असुरों और देवताओं ने आधी- आधी बाँट ली लेकिन हलाहल नाम का विष लेने को कोई तैयार नही था !

इदम् गरलम् बहैव घातकमासीत् यस्य एकम् बिंदु अपि धरायां बहु उत्पातं कर्तुम् शक्नोति स्म ! तदा भगवतः शिव: इति गरलम् पीत: स्म ! अत्रैवेण तस्य नाम भवितं नीलकंठ: !

ये विष बहुत ही घातक था इसकी एक बूँद भी धरती पर बड़ी तबाही मचा सकती थी !तब भगवान शिव ने इस विष को पीया था ! यही से उनका नाम पड़ा नीलकंठ !

भगवतः शिवम् संहारस्य देव मान्यते ! येन कारणं कथ्यते, तृतीय नेत्रम् रुद्धैव रमितं प्रभो: !

भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है ! इसलिए कहते है, तीसरी आँख बंद ही रहे प्रभु की !

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