फोटो साभार सोशलमीडिया
यदा कंधारस्य तत्कालीन शासक: अमीर अली खान पठानम् विवशभूत्वा जैसलमेर राज्ये आश्रयं नीतुम् भवित: ! तदा अत्रस्य महारावल: लूणकरणरासीत् ! ते महारावल: जैतसिंहस्य ज्येष्ठपुत्र भवस्य कारणम् तस्यानंतरम् अत्रस्य शासक: निर्मित: !
जब कंधार के तत्कालीन शासक अमीर अली खान पठान को मजबूर हो कर जैसलमेर राज्य में शरण लेनी पड़ी ! तब यहां के महारावल लूणकरण थे ! वे महारावल जैतसिंह के जेष्ठ पुत्र होने के कारण उनके बाद यहां के शासक बने !
तादृशं तस्य कंधारस्य शासक: अमीर अली खान पठानेण पूर्वतः इव मित्रतासीत् विपत्त्या: काळम् च् मित्रमेव मित्रस्य कार्यमागच्छति इति विचार्यन् सः सहर्ष अमीर अली खान पठानम् जैसलमेरस्य राजकीय अतिथि स्वीकृत: !
वैसे उनकी कंधार के शासक अमीर अली खान पठान से पहले से ही मित्रता थी और विपत्ति के समय मित्र ही मित्र के काम आता है ये सोचते हुए उन्होंने सहर्ष अमीर अली खान पठान को जैसलमेर का राजकीय अतिथि स्वीकार कर लिया !
दीर्घकाळतः दुर्गे वसन् अमीर अली खान पठानम् प्राचीरस्य व्यवस्थायाः गुप्तमार्गस्य च् संपूर्णाभिज्ञानं लब्धितः स्म ! तस्यमनसि प्राचीरं जयित्वा जैसलमेर राज्ये अधिकारस्य लोभ: आगमिष्यते सः च् षड्यंत्र रचमानः उचित कालस्य प्रतीक्षा करिष्यते !
लम्बें समय से दुर्ग में रहते हुए अमीर अली खान पठान को किले की व्यवस्था और गुप्त मार्ग की सारी जानकारी मिल चुकी थी ! उसके मन में किले को जीतकर जैसलमेर राज्य पर अधिकार करने का लालच आने लगा और वह षड्यंत्र रचते हुए सही समय की प्रतीक्षा करने लगा !
अत्र महारावल: लूणकरण भाटी: स्वमित्रम् अमीर अली खान पठाने निरान्धित्वा पूर्णविश्वासम् करोति स्म ! तः स्वप्ने अपि इदम् विचार्यतुम् न शक्नोति स्म तत तस्य मित्रम् कदा इदृशं केचन करिष्यति ! अत्र राजसुनु: मालदेव: स्वकेचन मित्रै: सामंतै: च् सह आखेटे निःसृता: !
इधर महारावल लूणकरण भाटी अपने मित्र अमीर अली खान पठान पर आंख मूंद कर पूरा विश्वास करते थे ! वो स्वप्न में भी ये सोच नहीं सकते थे कि उनका मित्र कभी ऐसा कुछ करेगा ! इधर राजकुमार मालदेव अपने कुछ मित्रों और सामंतों के साथ शिकार पर निकल पड़े !
अमीर अली खान पठान: केवलं इत्यावसरस्य लक्ष्ये इवासीत् ! तं महारावल: लूणकरण भाटीम् सन्देशम् प्रेषित: तत तः आज्ञाम् ददातु तर्हि तस्य सस्मित भार्या: राज्ञीगोष्ठे गत्वा तस्य राज्ञीभि: राज्यकुटुंबस्य महिलाभि: मेलितुमिच्छन्ति !
अमीर अली खान पठान बस इस मौके की ताक में ही था ! उसने महारावल लूणकरण भाटी को संदेश भिजवाया कि वो आज्ञा दे तो उनकी पर्दानशीन बेगमें रानिवास में जाकर उनकी रानियों और राजपरिवार की महिलाओं से मिलना चाहती है !
पुनः किं भवितमासीत् ? तैव यस्यानुमानम् पूर्वतरेव अमीर अली खान पठानमासीत् ! महारावल: सहर्षं भार्यान् राज्ञीगोष्ठे गमनस्याज्ञाम् दत्त: ! अत्र बहवः सस्मितका: शिविका: प्राचीरस्य भवने प्रवेशिष्यन्ते !
फिर क्या होना था ? वही जिसका अनुमान पूर्व से ही अमीर अली खान पठान को था ! महारावल ने सहर्ष बेगमों को रानिवास में जाने की आज्ञा दे दी ! इधर बहुत सारी पर्दे वाली पालकी दुर्ग के महल में प्रवेश करने लगी !
तु अकस्मात् भवनस्य द्वारपालान् शिविकाणां अभ्यांतरतः क्रूरतापूर्ण स्वरा: शृणुतुम् दत्ता: तर्हि तेन किंचितम् संदेहमभवन् ! ते एकस्य शिविकायाः आवरणम् निर्वर्तित्वा पश्याः तर्हि तत्र भार्यानां स्थानं द्वय-त्रय सैनिका: गोपिता: स्म !
किन्तु अचानक महल के प्रहरियों को पालकियों के अंदर से भारी भरकम आवाजें सुनाई दीं तो उन्हें थोड़ा सा शक हुआ ! उन्होंने एक पालकी का पर्दा हटा कर देखा तो वहां बेगमों की जगह दो-तीन सैनिक छिपे हुए थे !
यदाकस्मात् षड्यंत्रस्योद्घाटनमेव तत्रैव परस्परम् समाघातमारंभिता: ! प्राचीरे यस्यापि पार्श्व यतस्त्राणि आसन् ताः गृहीत्वा भवनम् प्रति महारावलस्य तस्य कुटुंबस्य च् रक्षार्थम् पलायिता: !
जब अचानक षड्यंत्र का भांडा फूटते ही वही पर आपस में मार-काट शुरू हो गई ! दुर्ग में जिसके भी पास जो हथियार था वो लेकर महल की ओर महारावल और उनके परिवार की रक्षा के लिए दौड़ पड़ा !
परित: उच्चाटनमुत्पादित: कश्चितमपि अमीर अली खान पठानस्य इति विश्वासघातस्य पूर्वाशंकामैव नासीत् ! कलरवम् श्रुत्वा प्राचीरस्य सर्वात् शिखरे तिष्ठा: द्वारपाला: संकटस्य सूचकानि वाद्ययंत्राणि वादितुमारंभिता: !
चारों ओर अफरा-तफरी मच गई किसी को भी अमीर अली खान पठान के इस विश्वासघात की पहले भनक तक नहीं थी ! कोलाहल सुनकर दुर्ग के सबसे ऊंचे बुर्ज पर बैठे प्रहरियों ने संकट के ढोल-नगाड़े बजाने शुरू कर दिए !
यस्य घर्घरनादस्य स्वरम् दश-दश क्रोशमैव शृणुनम् दाष्यते ! महारावल: राज्ञीगोष्ठ्याः सर्वा: महिला: आहुत्वाकस्मातागतं संकटम् प्रत्यामबदत् ! सम्प्रति अमीर अली खान पठानतः परस्परम् युद्धकृतस्य अतिरिक्तम् कश्चित विकल्पम् नासीत् !
जिसकी घुर्राने की आवाज दस-दस कोश तक सुनाई देने लगी ! महारावल ने रानिवास की सब महिलाओं को बुलाकर अचानक आए हुए संकट के बारे में बताया ! अब अमीर अली खान पठान से आमने-सामने युद्ध करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था !
राजसुनु: मालदेव: सामंत: च् ज्ञातम् न कदैव पुनरागमिष्यति ! प्राचीरतः बाह्य निस्सरणस्य समस्तं मार्गाणि पूर्वमेवावरुद्धम् कर्तुम् गतम् स्म ! राज्य कुटुंबस्य स्त्री: स्वास्मिता: रक्षणाय जौहरस्यातिरिक्तं केचनान्यद विकल्पम् न दर्शयति स्म !
राजकुमार मालदेव और सामंत पता नहीं कब तक लौटेंगे ! दुर्ग से बाहर निकलने के सारे मार्ग पहले ही बंद किए जा चुके थे ! राजपरिवार की स्त्रियों को अपनी इज्जत बचाने के लिए जौहर के सिवाय कुछ और उपाय नहीं दिखाई दे रहा था !
अकस्मातत: कृतं घातम् बहवः भयावहासीत् भवने च् जौहराय काष्ठानि अपि बहु न्यूनमासीत् ! अतएव सर्वा: महिला: महारावलस्य संमुखम् स्व स्व शिरम् अग्रम् कृता सदाय-सदाय हुतात्मा: अभवन् !
अचानक से किया गया आक्रमण बहुत ही भंयकर था और महल में जौहर के लिए लकड़ियां भी बहुत कम थी ! इसलिए सब महिलाओं ने महारावल के सामने अपने अपने सिर आगे कर दियें और सदा- सदा के लिए बलिदान हो गई !
महारावल: पिण्याक: वस्त्राणि धारित्वा युद्धम् कृतमानः रणभूम्याम् हुतात्माभवत् ! महारावल: लूणकरण भाटीम् स्व कुटुंबेण सह चत्वारान् भ्रातृन्, त्रयान् पुत्रान् बहु विश्वासपात्रान् वीरान् नशित्वा मित्रतायाः मूल्यम् दत्त: !
महारावल केसरिया बाना पहन कर युद्ध करते हुए रणभूमि में बलिदान हो गए ! महारावल लूणकरण भाटी को अपने परिवार सहित चार भाई, तीन पुत्रों को कई विश्वास पात्र वीरों को खोकर मित्रता की कीमत चुकानी पड़ी !
अत्र रण दुंदुभिनां स्वराणि श्रुत्वा राजसुनु: मालदेव: प्राचीरम् प्रति पालयित: ! ते स्व सामंतान् सैनिकान् च् गृहीत्वा भवनस्य गुप्तद्वारतः प्राचीरे प्रवेशित: अमीर अली खान पठाने तीक्ष्ण घातम् कृतवान च् !
इधर रण दुंन्दुभियों की आवाज सुनकर राजकुमार मालदेव दुर्ग की तरफ दौड़ पड़े ! वे अपने सामंतों और सैनिकों को लेकर महल के गुप्त द्वार से किले में प्रवेश कर गए और अमीर अली खान पठान पर प्रचंड आक्रमण कर दिया !
अमीर अली खान पठानम् इति घातस्याकलनम् वस्तुतः नासीत् ! अंते तेन बंधनं कृतः चर्मस्य निर्मीतं श्रृंखलायामवरुद्धित्वा प्राचीरस्य दक्षिणी शिखरे नळिकस्य मुखे बधित्वा उड्डीतः ! इतिहासस्य बहु शतानि इदृशमेव घटनानि सन्ति ! यस्मात् वयं वर्तमाने बहुकेचन शिक्षतुम् शक्नुम: !
अमीर अली खान पठान को इस आक्रमण की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी ! अंत में उसे पकड़ लिया गया और चमड़े के बने कुड़िए में बंद करके दुर्ग के दक्षिणी बुर्ज पर तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया गया ! इतिहास की कई सैकड़ों ऐसी घटनाएं है ! जिससे हम वर्तमान में बहुत कुछ सीख सकते है !
अद्य अफगान संकटम् पश्यन् बहुजनाः इमे कथ्यन्ति अस्माभिः यै: अत्राश्रयं दानीयम् ! तु तस्मात् किं भविष्यति श्व इमे इव यदि अत्र कथ्यन् अस्माभिः दृश्यन्तु तत हिंदुस्तान त्वया पितु: न तर्हि भवतः कश्चिताश्चर्यम् न भवनीया: !
आज अफगान संकट को देखते हुए कई लोग ये कह रहे हैं हमें इन्हें यहां शरण देनी चाहिए ! पर उससे क्या होगा कल ये ही अगर यहां यह कहते हुए हमें दिखाई दे कि हिन्दुस्तान तुम्हारे बाप का नहीं तो आपको कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए !