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स्वामी विवेकानंद के जन्म जयंती पर उन्हें नमन

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9/11 की तारीख को याद रखता होगा अमेरिका लादेन के आतंकवादी हमले के लिए! पर एक भारतीय 9/11 को याद रखता है एक युवा सन्यासी के वक्तव्य के लिए! एक साधु, जिसने हजारों धर्मों,पन्थों का प्रतिनिधित्व करने आए हजारों विद्वानों, लेखको और वैज्ञानिकों को अपने एक भाषण से हिला डाला! जिसे सबसे अंत में मौका मिला! जिसका अपमान करने के लिए उसे “शून्य” पर बोलने को कहा गया…पर जब उसने बोलना शुरू किया, तब उसने संसार की हर वस्तु को शून्य से जोड़ दिया!वह दिनों, रात,घण्टे, बिना रुके, बिना थके बोलता रहा….सारी सभा, सारा यूरोप और समूचा अमेरिका तल्लीन होकर सुनता रहा!और अगले दिन अमेरिका के अखबारों में छपा कि भारत का एक युवा सन्यासी समूचे यूरोपीय ज्ञान पर भारी पड़ गया!

एक तीस साल के भारतीय ने आज से 129 साल पहले शिकागो में हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान का जो डंका बजाया, उसकी गूंज आज भी न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरे पश्चिम में सुनाई पड़ती है!

वैसे तो बताने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा उस तेजस्वी मानुष को जानता है, मानता है…परन्तु फिर भी कहे देता हूँ कि उस परम सिद्ध मनुज का नाम था स्वामी विवेकानंद!

दिनकर जी के शब्दों में…

हिंदुओं को लीलने के लिए अंग्रेजी भाषा, ईसाई मत तथा यूरोपीय बौद्धिकवाद का जो तूफान उठा था, वह स्वामि विवेकानंद के हिमालय जैसे विशाल वक्ष से टकराकर वापस लौट गया।”

विवेकानंद जी की जब बात होती है तो अक्सर शिकागो के उनके विश्व प्रसिद्ध भाषण की चर्चा अवश्य होती है! अवश्य होनी भी चाहिए!

किन्तु स्वामि जी की चर्चा केवल इतने के लिए ही नहीं होनी चाहिए!

स्वामि जी की चर्चा होनी चाहिए उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में सोते हुए हिंदुत्व को जगाने के लिए!

स्वामि जी की चर्चा होनी चाहिए…भारत मे व्यापारी बनकर आए हुए ईसाई, अंग्रेज,पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी आदि शक्तियों की पोल पट्टी खोलने के लिए!

उनकी चर्चा होनी चाहिए उनके ज्ञान और विज्ञान के लिए! उनकी अमृत वाणियों के लिए और भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता में दिए उपदेशों पर उनकी लिखी भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग आदि पुस्तकों के लिए!

उनके असंख्य लेखों, व्याख्यानों आदि के लिए, जिन्होंने न सिर्फ देश को नई राह दिखाई, बल्कि स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे सेनानियों के लिए प्रेरणास्रोत रहीं!

आज क्या पश्चिम इस बात को स्वीकार करेगा कि हमारे पास एक ऐसा सन्यासी था जो हजारों पृष्ठों की पुस्तक, जिसे पढ़ने में महीनों लग जाते थे, उसे मात्र एक घण्टे में पढ़ जाता था! और न सिर्फ पढ़ जाता था…बल्कि एक एक पृष्ठ पर क्या लिखा है, उसे भी व्याख्या सहित सुना देता था!

क्या आज विज्ञान इस बात को मानेगा कि निकोला टेस्ला जैसा वैज्ञानिक भी जिन समीकरणों और सिद्धांतों को सिद्ध नहीं कर पा रहा था….केवल एक बार स्वामि जी से मिला और उसके हजारों सूत्र सिद्ध हो गए!

इस बात को न तो विज्ञान मानेगा और न ही, आज के वैज्ञानिक! किन्तु स्वयं टेस्ला ने अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया है और विवेकानंद स्वामी को धन्यवाद भी दिया है!

जरा सोचिए! कितना तेज, कितना ज्ञान, कितनी ऊर्जा रही होगी उस व्यक्ति में!

कितनी चमक रही होगी उस तेजोमय व्यक्तित्व में!

जिसके हृदय में श्रीराम और श्रीकृष्ण हुआ करते थे….और जिसके मुख लर साक्षात सरस्वती विराजती थीं!

गर्व कीजिए कि ऐसा व्यक्तित्व भारतवर्ष में हुआ था…आपकी मिट्टी पर हुआ था!

स्वामी जी केवल….युवा दिवस कहलाने , फेसबुक, व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाने और श्रद्धांजलि अर्पित करने की वस्तु नहीं है, बल्कि शब्दशः अनुकरण किया जाने वाला नाम हैं!

अंत में क्या कहूँ बस!

स्वामी जी कभी आप थे…..इसीलिए आज हम हैं! आपको मेरा प्रणाम! वन्दन! अभिनन्दन!🙏🏻

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