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देशाय म्यांमारे पाशबंधारुह्यत: स्म क्रांतिवीर सोहन लाल पाठक:,तु न प्राप्त: तेन इतिहासे स्थानम् ! देश के लिए म्यांमार में फाँसी चढ़े थे क्रांतिवीर सोहनलाल पाठक,लेकिन नहीं मिली उन्हें इतिहास में जगह !

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क्रांतिकारी सोहन लाल पाठक

कति सरलमस्ति इमे कथनं तत स्वतंत्रता वयं विना खड्ग विना ढाल इति प्राप्तम् ? यदि यस्मिन् न्यूनैवापि शक्तिम् सद् वास्ति तर्हि किं हुतात्मा भवेत् अमर वीर सोहन लालम् येन स्व पूर्ण युवावस्थाम् देशस्य नाम लिखदत्त: यदा केचन कूट ठेकेदार इति आंग्लानां भार्या: पश्च चरितुम् दृश्यते स्म !

कितना आसान है ये कह देना कि आजादी हमें बिना खड्ग बिना ढाल मिल गयी ? अगर इसमे जरा सा भी दम या सच है तो क्यों बलिदान होना पड़ता अमर वीर सोहन लाल को जिन्होंने अपनी उग्र जवानी को देश के नाम लिख दिया जब कुछ नकली ठेकेदार अंग्रेजों की मेम साहब के पीछे चलते दिखाई देते थे !

भारतस्य स्वतंत्रताय देशैव न विदेशेषु अपि प्रयत्नम् कृतमानः अनेकानि वीराः बलिदानम् दत्तानि ! सोहन लाल पाठक: एतस्मिनेण एकः आसीत् ! तस्य जन्म पंजाबस्यामृतसर जनपदस्य पट्टी ग्रामे सप्त जनवरी १८८३ तमम् श्री चंदारामस्य गृहे अभवत् स्म !

भारत की स्वतन्त्रता के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी प्रयत्न करते हुए अनेक वीरों ने बलिदान दिये हैं ! सोहन लाल पाठक इन्हीं में से एक थे ! उनका जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के पट्टी गाँव में सात जनवरी 1883 को श्री चंदाराम के घर में हुआ था !

पठने तीव्र भवस्य कारणम् तेन कक्षा पंचम तः दशम् यावत् छात्रवृत्ति लभ्धतः स्म ! दशम् उत्तीर्ण कृत सः कुल्या विभागे दासता कृतः ! पुनः च् पठनस्य इच्छाम् नाभवत्,तदा दासता परित्यक्त: ! साधारण परीक्षा उत्तीर्णम् कृत ते लाहौरस्य डी.ए.वी.हाईस्कूल इत्ये पाठयतः !

पढ़ने में तेज होने के कारण उन्हें कक्षा पाँच से मिडिल तक छात्रवृत्ति मिली थी ! मिडिल उत्तीर्ण कर उन्होंने नहर विभाग में नौकरी कर ली ! फिर और पढ़ने की इच्छा हुई,तो नौकरी छोड़ दी ! नार्मल परीक्षा उत्तीर्ण कर वे लाहौर के डी.ए.वी. हाईस्कूल में पढ़ाने लगे !

एकदा विद्यालये जमालुद्दीन खलीफा नामक निरीक्षक: आगतः ! सः बालकै: कश्चित गीतम् श्रोणितुम् कथितः ! देशस्य धर्मस्य च् प्रीतक: पाठक महाशयः एकेन छात्रेण वीर हकीकतस्य बलिदानकः इति गीतम् श्रोणितुम् दत्त: ! यस्मात् सः बहु रुष्ट: अभवत् !

एक बार विद्यालय में जमालुद्दीन खलीफा नामक निरीक्षक आया ! उसने बच्चों से कोई गीत सुनवाने को कहा ! देश और धर्म के प्रेमी पाठक जी ने एक छात्र से वीर हकीकत के बलिदान वाला गीत सुनवा दिया ! इससे वह बहुत नाराज हुआ !

एतैव दिवसानि पाठक महोदयस्य सम्पर्क स्वतंत्रता सेनानी लाला हरदयालेन अभवत् ! ते तेन प्रायः मेलत: ! एतस्मिन् विद्यालयस्य प्रधानाचार्य: तेन कथितः तत यदि ते हरदयाल महोदयेन सम्पर्कम् करिष्यति,तदा तेन निस्सरतुं दाष्यते ! अयम् वातावरण दृष्ट्वा सः स्वयमेव दासात् त्यागपत्रम् दत्तैति !

इन्हीं दिनों पाठक जी का सम्पर्क स्वतन्त्रता सेनानी लाला हरदयाल से हुआ ! वे उनसे प्रायः मिलने लगे ! इस पर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने उनसे कहा कि यदि वे हरदयाल जी से सम्पर्क रखेंगे,तो उन्हें निकाल दिया जाएगा ! यह वातावरण देखकर उन्होंने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया !

यदा लाल लाजपतराय महाशयम् इदम् अभिज्ञान:,तदा सः सोहनलाल पाठकम् ब्रह्मचारी आश्रमे नियुक्तिम् दत्त: ! पाठक महाशयस्य एकः सखा: सरदार ज्ञानसिंह बैंकाके आसीत् ! सः यात्राव्यय प्रेषित्वा पाठक महोदयम् तत्रैव आहूत: ! द्वयो मेलित्वा तत्र भारतस्य स्वतंत्रतायाः जागरूकता प्रसारयत: !

जब लाला लाजपतराय जी को यह पता लगा, तो उन्होंने सोहनलाल पाठक को ब्रह्मचारी आश्रम में नियुक्ति दे दी ! पाठक जी के एक मित्र सरदार ज्ञानसिंह बैंकाक में थे ! उन्होंने किराया भेजकर पाठक जी को भी वहीं बुला लिया ! दोनों मिलकर वहाँ भारत की स्वतन्त्रता की अलख जगाने लगे !

तु तत्रस्य सरकारः अंग्रेजान् क्रुद्ध कर्तुम् न इच्छति स्म,अतः पाठक महाशयः अमेरिका गत्वा गदर दले कार्यम् कृतेति ! यस्मात् पूर्व ते हांगकांग गतः तत्र च् एके विद्यालये कार्यम् कृत: ! विद्यालये पाठमानः अपि ते छात्राणां मध्य प्रायः देशस्य स्वतंत्रतायाः वार्ता: क्रियते स्म !

पर वहाँ की सरकार अंग्रेजों को नाराज नहीं करना चाहती थी,अतः पाठक जी अमरीका जाकर गदर पार्टी में काम करने लगे ! इससे पूर्व वे हांगकांग गये तथा वहाँ एक विद्यालय में काम किया ! विद्यालय में पढ़ाते हुए भी वे छात्रों के बीच प्रायः देश की स्वतन्त्रता की बातें करते रहते थे !

हांगकांग तः ते मनीला गतः तत्र च् बंदूकयंत्र इति चालनम् अभ्यासतः ! अमेरिकायाम् ते लाला हरदयालेन भ्रातः परमानंदेन च् सह कार्यम् करोति स्म ! एकदा दलस्य निर्णयस्य अनुसारं तेन बर्मा भूत्वा भारत पुनरगच्छनम् कथितम् !

हांगकांग से वे मनीला चले गये और वहाँ बन्दूक चलाना सीखा ! अमरीका में वे लाला हरदयाल और भाई परमानन्द के साथ काम करते थे ! एक बार दल के निर्णय के अनुसार उन्हें बर्मा होकर भारत लौटने को कहा गया !

बैंकांक आगत्वा सः सरदार बुढ्डा सिंहेन बाबू अमरसिंहेन सह सैनिक छावनिषु सम्पर्कम् कृतः ! ते भारतीय सैनिकै: कथ्यति स्म तत प्राणमैव दत्तम्,तदा स्वदेशाय दत्तम् ! येन मया भृत्याः निर्माणम्,यत् अस्माकं देशस्य वासिषु अत्याचार इति कुर्वन्ति,तेभ्यः प्राण किं ददथ ? यस्मात् छावनिनां वातावरण इति परिवर्त्यानि !

बैंकाक आकर उन्होंने सरदार बुढ्डा सिंह और बाबू अमरसिंह के साथ सैनिक छावनियों में सम्पर्क किया ! वे भारतीय सैनिकों से कहते थे कि जान ही देनी है,तो अपने देश के लिए दो ! जिन्होंने हमें गुलाम बनाया है,जो हमारे देश के नागरिकों पर अत्याचार कर रहे हैं,उनके लिए प्राण क्यों देते हो ? इससे छावनियों का वातावरण बदलने लगा !

पाठक महाशयः स्यामे पककों इति नामक स्थाने एकम् गोष्ठिम् आहूत: ! तत्रात् एकम् कार्यकर्ताम् सः चिनस्य चिपिटन नामक स्थाने प्रेषितम्,तत्र जर्मन अधिकारी २०० भारतीय सैनिकान् बर्मायाम् आक्रमणाय प्रशिक्षित: करोति स्म !

पाठक जी ने स्याम में पक्कों नामक स्थान पर एक सम्मेलन बुलाया ! वहां से एक कार्यकर्ता को उन्होंने चीन के चिपिनटन नामक स्थान पर भेजा,जहाँ जर्मन अधिकारी 200 भारतीय सैनिकों को बर्मा पर आक्रमण के लिए प्रशिक्षित कर रहे थे !

पाठक महाशयः वस्तुतः कश्चितैव गुप्त दीर्घ वा योजनायाम् कार्यम् करोति स्म,तु एकः मंथर: तेन अवरुद्धतम् ! तं कालम् तस्य पार्श्व त्रय रिवाल्वर इति २५० गोलिका चासीत् ! तेन मांडले कारागार प्रेषयतम् ! स्वाभिमानिन् पाठक महाशयः कारागारे बृहदात्बृहद अधिकारिण: आगमने अपि न उदतिष्ठयति स्म !

पाठक जी वस्तुतः किसी गुप्त एवं लम्बी योजना पर काम कर रहे थे,पर एक मुखबिर ने उन्हें पकड़वा दिया ! उस समय उनके पास तीन रिवाल्वर तथा 250 कारतूस थे ! उन्हें मांडले जेल भेज दिया गया ! स्वाभिमानी पाठक जी जेल में बड़े से बड़े अधिकारी के आने पर भी खड़े नहीं होते थे !

अत्याचारिन् ब्रिटिश शासन विरोधिन् साहित्य इति प्रकाशनम् विद्रोह इति उद्दतस्य च् आरोपे तस्मिन् अभियोगम् अचरत् ! पाठक महाशयम् सर्वात् भयकरः अवगमित्वा १० फरवरी १९१६ तमम् मातृभूम्या द्रुतम् बर्मायाः मांडले कारागारे पाशबंध: प्रदत्तयम् !

अत्याचारी ब्रिटिश शासन विरोधी साहित्य छापने तथा विद्रोह भड़काने के आरोप में उन पर मुकदमा चला ! पाठक जी को सबसे खतरनाक समझकर 10 फरवरी 1916 को मातृभूमि से दूर बर्मा की मांडले जेल में फाँसी दे दी गयी !

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