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ब्रह्मऋषिनगरस्य गौरवपूर्णेतिहासं हिन्दू सम्राट सुहेलदेव बैस: च् ! यस्य खड्गस्य झंझावतेन अरबस्येरानस्य च् गृहे-गृहे दीप: अनुशितानि स्म ! बहराइच का गौरवशाली इतिहास और हिन्दू सम्राट सुहेलदेव बैस ! जिनकी तलवार के तूफान से अरब और ईरान के घर-घर में चिराग बुझ गए थे !

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प्रतिहार राजवंशस्येतिहासमयोध्यायाः सूर्यवंशेन इव संलग्नमस्ति ! प्रतिहार नृपः मिहिरभोजस्य (८३३-८८५) ग्वालियर-प्रशस्त्या: अनुसारं मनु:, इक्ष्वाकु: तथा ककुत्स्थ: येन वंशस्य मूल सम्राट: आसन् !

प्रतिहार राजवंश का इतिहास अयोध्या के सूर्यवंश से ही जुड़ा है ! प्रतिहार नरेश मिहिर भोज (833-885) की ग्वालियर-प्रशस्ति के अनुसार मनु, इक्ष्वाकु तथा ककुत्स्थ जिस वंश के मूल सम्राट् थे !

तस्यैव वंशज: रावनान्तक: रामस्यानुज: च्, यत् रामस्य सशक्त प्रतिहार: आसीत्, येन मेघनाद यथा शत्रुम् पराजित: स्म, तः लक्ष्मणेनैव अयम् प्रतिहार वंश इति प्रचलित: !

उनके ही वंशज और रावणान्तक राम के अनुज, जो राम के सशक्त प्रतिहार थे, जिन्होंने मेघनाद जैसे शत्रु को युद्ध में परास्त किया था, उन लक्ष्मण से ही यह प्रतिहार वंश प्रचलित हुआ !

भव्य श्रावस्ती ! महाराजा सुहेलदेव की राजधानी

८१० तः १०३६ तमस्य मध्य, नागभट्ट: द्वितीय (८१०-८३३), रामभद्र: (८३३-836), मिहिर भोज: (८३६-८८५), महेन्द्रपाल: प्रथम (८८५- ९१०), भोज: द्वितीय (९१०-९१२), विनायक पाल: (९१३-९४४), महेन्द्रपाल: द्वितीय (९४४- ९४७) !

810 से 1036 के मध्य, नागभट्ट द्वितीय (810-833), रामभद्र (833-836), मिहिर भोज (836-885), महेन्द्रपाल प्रथम (885- 910), भोज द्वितीय (910-912), विनायक पाल (912-944), महेन्द्रपाल द्वितीय (944- 947) !

रमणीक स्थल ! महाराजा सुहेलदेव की झील, चित्तौरा झील

देवपाल: (९४७-९५३), विनायकपाल: द्वितीय (९५३-९५७), विजयपाल: (९५७-९८८), राज्य पाल: (९८८-१०१९), त्रिलोचनपाल: (१०१९- १०३५) एवं यशपाल: (१०३५-१०३६) नामक त्रयोदश प्रतिहारवंशीय शासकानां कड़ाजौने शासिता: !

देवपाल (947-953), विनायकपाल द्वितीय (953-957), विजयपाल (957-988), राज्य पाल (988-1019), त्रिलोचनपाल (1019- 1035) एवं यशपाल (1035-1036) नामक 13 प्रतिहारवंशीय शासकों का कन्नौज पर शासन रहा !

इति कालावध्यामपि अयोध्या कड़ाजौनस्यैव अधीनता: ! अवधवासी लाला सीताराम लिखति ! अष्टम्याम् शताब्द्यामयोध्या कड़ाजौनस्य शासने गतम् ! परिहाराणां राज्य कड़ाजौनतः १६० मील उत्तर श्रावस्तीतः काठियावाड़ एव कुरुक्षेत्रतः वाराणसी एव प्रसृतः स्म !

इस कालावधि में भी अयोध्या कन्नौज के ही अधीन रही ! अवधवासी लाला सीताराम लिखते हैं ! आठवीं शताब्दी में अयोध्या कन्नौज के शासन में चली गयी ! परिहारों का राज कन्नौज से 160 मील उत्तर श्रावस्ती से काठियावाड़ तक और कुरुक्षेत्र से बनारस तक फैला हुआ था !

प्रतिहाराणां काले कोशलप्रान्तस्य श्रावस्ती भुक्त्या: भुक्तिपाल बैस क्षत्रिय: आसीत् ! बैस राजवंशस्य नृपः त्रिलोकचंद्र: ९१८ तमैंद्रप्रस्थस्य नृपः विभवपालम् पराजित्वा कोशलप्रान्ते स्व अधिपत्य कृतः स्म !

प्रतिहारों के समय में कोशलप्रान्त अथवा श्रावस्तीभुक्ति के भुक्तिपाल बैस क्षत्रिय थे ! बैस राजवंश के राजा त्रिलोकचन्द्र ने 918 में दिल्ली के राजा विभवपाल को परास्त कर कोशल प्रान्त पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था !

श्रावस्तीभुक्त्या: राज्य त्रिलोकचंद्रस्य पुत्र भुक्ति पाल मयूरध्वजम् ळब्ध: ! तस्यानंतरम् क्रमशः त्रिलोकचंद्रस्य वंशजा:, हंसध्वजस्य, मकरध्वजस्य, सुधन्वाध्वजस्य सुहृदध्वजस्य अधिकारैव श्रावस्तीभुक्त्या: शासनम् रमिता: !

श्रावस्तीभुक्ति का राज्य त्रिलोकचन्द्र के पुत्र भुक्तिपाल मयूरध्वज को मिला ! उसके बाद क्रमश: त्रिलोकचन्द्र के वंशजों, हंसध्वज, मकरध्वज, सुधन्वाध्वज और सुहृदध्वज के अधिकार में ही श्रावस्तीभुक्ति का शासन रहा !

भुक्तिपाल सुहृदध्वजस्य लोकप्रसिद्धि महाराज सुहेलदेवस्य नामेणास्ति ! महाराज सुहृदध्वज: उपाख्य सुहेलदेव: अतीव वीर: एवं शौर्यवान शासक: आसीत् !

भुक्तिपाल सुहृदध्वज की लोकप्रसिद्धि महाराज सुहेलदेव के नाम से है ! महाराज सुहृदध्वज उपाख्य सुहेलदेव अत्यन्त वीर एवं साहसी शासक थे !

प्रतिहार वंशस्य द्वादशानि शासक: त्रिलोचन पालस्य (१०१९-१०३५) राजत्वकाले महमूद गजनविण: भगिनिजः सैयद सालार मसऊद गाजी: अयोध्यायां आक्रमणं कृतवान ! १०३३ तमे सालार मसऊद: अयोध्यायाः रामजन्मभूमि मन्दिरम् ध्वस्तस्येच्छायायोध्यायां आक्रमणं कृतं !

प्रतिहार वंश के बारहवें शासक त्रिलोचनपाल (1019-1035) के राजत्वकाल में महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसऊद गाजी ने अयोध्या पर आक्रमण किया ! 1033 में सालार मसऊद ने अयोध्या के रामजन्मभूमि मन्दिर को ध्वस्त करने की इच्छा से अयोध्या पर चढ़ाई की !

वर्तमान गाजी दरगाह ! पुरातन ऋषि बालार्क आश्रम !

तु तं कालम् सम्राट त्रिलोचनपालस्य श्रावस्ती भुक्त्या: महाबली भुक्तिपाल नृपः सुहेलदेव: सप्तदश स्थानीय नृणां संघ निर्मित्वा सालार मसऊदेण भयावह: युद्धम् कृतवान !

किन्तु उस समय सम्राट् त्रिलोचनपाल की श्रावस्तीभुक्ति के महाबली भुक्तिपाल महाराज सुहेलदेव ने सत्रह स्थानीय राजाओं का संघ बनाकर सालार मसऊद से भयंकर युद्ध किया !

ऐसी ही मजारें पूरे बहराइच में रोड पर व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर स्थित हैं !

नृपः सुहेलदेव: १४ जून १०३३ तमम् ब्रह्मऋषि नगरात् सप्त क्रोशम् द्रुतम् पयागपुरं निकषा घर्घरा नद्या: तटे सालार मसऊदेण सह तस्य सैन्यम् हतः !

महाराज सुहेलदेव ने 14 जून 1033 ई. को बहराइच से 7 कोस दूर पयागपुर के सन्निकट घाघरा नदी के तट पर सालार मसऊद समेत उसकी सेना को नष्ट कर डाला !

सूर्यवंशस्य बैस क्षत्रियवंशे उत्पन्नम् नृपः सुहेल देवस्य वीरताममरत्व प्रदत्ताय अवधप्रान्तस्य प्रसिद्ध कवि कीर्तिशेष: पंडित गुरुसहाय दीक्षित द्विजदीन: श्रीसुहेल-बावनी इत्यस्य प्रणयनं कृतः !

सूर्यवंश की बैस क्षत्रिय शाखा में पैदा हुए महाराज सुहेलदेव की वीरता को अमरत्व प्रदान करने के लिए अवधप्रान्त के प्रतिष्ठित कवि कीर्तिशेष पण्डित गुरुसहाय दीक्षित द्विजदीन ने श्रीसुहेल-बावनी का प्रणयन किया है !

हिन्दू महायोद्धा नृपः सुहेलदेव: यस्य खड्गस्य झंझावतेन अरबस्येरानस्य च् गृहे-गृहे दीप: अनुशितानि स्म ! ब्रह्मऋषि नगरे तुर्की घातक: गाजी सालार मसऊदस्य दरगाहे उत्तरछदः प्रदत्तस्यानंतरम् एकदा पुनः नृपः सुहेलदेवस्य नाम वार्तायामागतः !

हिंदू महायोद्धा महाराजा सुहेलदेव जिनकी तलवार के तूफान से अरब और ईरान के घर-घर में चिराग बुझ गए थे ! बहराइच में तुर्की हमलावर गाजी सालार मसऊद की दरगाह पर चादर चढ़ाने के बाद एक बार फिर महाराज सुहेलदेव का नाम सुर्खियों में आ गया है !

तत येन कारणं कुत्रचित नृपः सुहेलदेवरेवासीत् येन सप्तदशदा सोमनाथ मंदिरस्य विध्वंसकर्ता महमूद गजनविणा तस्य भगिनिजः गाजी सालार मसऊदेण चेतिहासिक प्रतिशोध: नीतः स्म !

वो इसलिए क्योंकि महाराजा सुहेदलेव ही थे जिन्होंने १७ बार सोमनाथ मंदिर का विध्वंस करने वाले महमूद गजनवी और उसके भांजे गाजी सालार मसूद से ऐतिहासिक बदला लिया था !

गाजी सालार मसऊदस्य जीवनवृत्तम् सप्तदशानि शताब्द्यामलिखत् ! यस्य नामासीत् मिरात-ए-मसूदी ! येनालिखत् स्म तं कालस्य सूफी अब्दुर्रहमान चिश्ती: ! येन युद्धे गाजी सालार मसऊद: हतः तं युद्धमेतिहासे बैटल ऑफ बहराइच इति कथ्यते ! ब्रह्मऋषि नगरस्य इति युद्धस्य संपूर्ण वर्णन मिरात-ए-मसूदी इत्ये उपलब्धमस्ति !

गाजी सालार मसूद की जीवनी १७ वीं शताब्दी में लिखी गई जिसका नाम था मिरात-ए- मसूदी ! इसे लिखा था उस वक्त के सूफी अब्दुर्रहमान चिश्ती ने ! जिस युद्ध में गाजी सालार मसूद मारा गया उस युद्ध को इतिहास में बैटल ऑफ बहराइच कहा जाता है! बहराइच के इस युद्ध का पूरा वर्णन मिरात-ए-मसूदी में मौजूद है !

सालार मसऊदस्य जीवनवृत्त मिरात-ए-मसूदी इत्ये अब्दुर्रहमान चिश्ती: लिखति ततावसानस्य समाघातमस्ति, अवसानम् निकषास्ति, हिंदव: संनयः कृतवान, यस्य सैन्यमत्यधिकम् सन्ति, सुदूर नयपालतः पर्वतानामधः घर्घरा नद्यैव सैन्यं विरोधिन: शिबिर: अस्ति ! दया करोतु अभय दानम् ददातु ! इमानि कथयित्वा सः तीव्र स्वरेण रुदित: !

सालार मसूद की जीवनी मिरात-ए- मसूदी में अब्दुर्रहमान चिश्ती लिखता है कि मौत का सामना है, फिराक सूरी नजदीक है, हिंदुओं ने जमाव किया है, इनका लश्कर बेइन्तिहा हैं, सुदूर नेपाल से पहाड़ों के नीचे घाघरा नदी तक फौज मुखालिफ का पड़ाव है ! रहम कर जान बख्शी दे ! ये कहकर वो बिलख बिलख कर रो पड़ा !

चिश्ती: अलिखत् तत नृपः सुहेलदेवस्य परिबंध अति सुदृढ़ासीत् तत भुयिष्ट तुर्की सैन्यप्रमुखः रमित: गाजी सालार मसऊदरपि तीव्रस्वरेण रुदनमारंभिष्यते !

चिश्ती ने लिखा है कि महाराजा सुहेलदेव की घेराबंदी इतनी जबरदस्त थी कि जबरदस्त तुर्की मिलिट्री लीडर रहा गाजी सालार मसूद भी फफक फफक कर रोने लगा !

चिश्ती: अग्रम् लिखति तत इति कालम् कः सहृदय मानव: भवितुम् शक्नोति स्म यः इदृशैव स्थित्यां सालार मसऊदस्य सहाय्य त्यजितः ? रजब मासस्य चतुर्दशानि दिनांकस्य (१४ जून, १०३३) दिवसम् सालार मसऊदेण सह तस्य संपूर्ण सैन्यस्य सुहेलदेवस्य सैन्यम् सर्वनाशं कृतवान, कश्चित जलदातापि न रमिता: !

चिश्ती आगे लिखता है कि इस समय कौन रहम दिल इंसान हो सकता था जो ऐसी हालत में सालार मसूद का साथ छोड़ता ? रजब महीने की १४वीं तारीख (१४जून,१०३३) के दिन सालार मसूद सहित उसकी संपूर्ण सेना का सुहेलदेव की सेना ने सर्वनाश कर दिया, कोई पानी देने वाला भी ना रहा !

स्वास्यैव पुस्तके अग्रम् शेखाब्दुर्रहमान चिश्ती: लिखति तत धर्मस्य नामे यत् झंझावतायोध्यातः ब्रह्मऋषि नगरैव प्राप्तम् स्म तत सर्वा: क्षतिग्रस्तं अभवन्, इति युद्धे अरबस्येरानस्य च् प्रतिगृहस्य दीप: अनुशितानि !

अपनी इसी किताब में आगे शेख अब्दुर्रहमान चिश्ती लिखता है कि मजहब के नाम पर जो अंधड़ अयोध्या से बहराइच तक जा पहुंचा था वो सब नष्ट हो गया, इस युद्ध में अरब और ईरान के घर घर का चिराग बुझ गया !

नृपः सुहेलदेवस्य सैन्यम् इति युद्धे लक्षाणां संख्यायां तुर्की मुस्लिमान् हनिता: स्म ! इमानि रक्तपात अति वृहदासीत् तत यस्यानंतरम् १६० वर्षमेव भारते कश्चितेस्लामी शासका: घातस्य धैर्यमपि न एकत्रितं कर्तुम् शक्नुता: !

राजा सुहेलदेव की सेना ने इस युद्ध में लाखों की संख्या में तुर्की मुसलमानों को मार दिया था ! ये रक्तपात इतना बड़ा था कि इसके बाद १६० साल तक भारत पर कोई इस्लामी शासक हमला करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सका !

तु नृपः सुहेलदेवस्येतिहासम् वामपंथिनरेतिहास कर्ता: स्व कुत्सित मानसिकतां संतुष्टाय हिन्दू गौरवस्य विचारधाराम् शवभाजने निखनिताः !

लेकिन राजा सुहेलदेव के इतिहास को वामपंथी इतिहासकारों ने अपनी कुत्सित मानसिकता को संतुष्ट करने के लिए हिंदू गौरव की विचारधारा को ताबूत में दफन कर दिया !

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