कभी कभी एक इंसान के साथ की गयी नाइंसाफी पूरे देश के साथ गद्दारी होती है। जी हाँ, आपने सही सुना, आज हम आपको एक भयावह कहानी सुनाने जा रहे हैं, ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज का एक भयावह कारनामा…जिस पर जल्द ही एक फ़िल्म भी आने वाली है…….Rocketry के नाम से।
कल इस फ़िल्म का ट्रेलर रिलीज़ हुआ। 2 साल पहले इसका टीज़र आया था जिसमे मंगलयान को लांच होते दिखाया गया है, और बैकग्राउंड में माधवन कहते हैं कि “अगर मैं कहूँ कि ये कारनामा हम 20 साल पहले हासिल कर सकते थे….तो?”
ये कहानी है ISRO के भूतपूर्व वैज्ञानिक नम्बी नारायणन की। 1941 में पैदा हुए नारायणन बचपन से ही मेधावी छात्र थे। विज्ञान और गणित में उनकी रूचि शुरू से ही रही थी। उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद ISRO में payload integrator की नौकरी जॉइन कर ली थी। ये वो जमाना था जब ISRO के चीफ विक्रम साराभाई हर कर्मचारी के चयन प्रक्रिया में दखल रखते थे, वे चुन चुन कर प्रतिभाओं को ISRO में लाते थे।
नम्बी और पढ़ाई करना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (त्रिवेंद्रम) में दाखिला भी ले लिया था। जब विक्रम साराभाई को इस बारे में पता लगा, तब उन्होंने नारायणन को एक आफर दिया, उन्होंने कहा कि अगर नारायणन मेहनत कर के अमेरिका की IVY लीग की किसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लेंगे, तो वे उन्हें पढ़ाई के लिए लंबी छुट्टी दे देंगे। नारायणन ने मेहनत की और उन्हें NASA की फ़ेलोशिप मिली, और उन्होंने अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया। वहां उन्होंने केमिकल राकेट प्रोपल्शन का अध्ययन किया। उन्होंने लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम पर अपनी expertise मजबूत की।
उन्हें वहीं अमेरिका में ही अच्छे जॉब आफर मिले, लेकिन वे लौट आये और वापस ISRO जॉइन किया। उस समय ISRO में भारत रत्न डॉक्टर कलाम के नेतृत्व में सॉलिड फ्यूल प्रोपलशन सिस्टम से ही राकेट आदि बनाये जा रहे थे। 70 के दशक में नारायणन ने ही भारत मे पहली बार लिक्विड फ्यूल राकेट बनाये। उन्होंने ही पहली बार लिक्विड प्रोपेलेंट मोटर्स को ईजाद किया भारत मे।
1980 के दशक तक भारत अपने कुछ उपग्रह कक्षा में कक्षा में स्थापित कर चुका था, और दूरसंचार,रिमोट सेंसिंग आदि सेवाओ में इनका उपयोग किया जा रहा था। लेकिन अभी भी जो सबसे बड़ी समस्या थी वो थी भारी पेलोड वाले उपग्रहों को लांच करने की क्षमता का ना होना। हमारे पास ऐसे लांच व्हीकल्स नही थे जो 4000 किलो या उससे ज्यादा भार के सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष मे ले जा सकें। इनके लिए हमे रूस या यूरोपियन एजेंसीज पर निर्भर रहना पड़ता था। जाहिर है, इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती थी।
उस समय रूस भारत के करीब था, इसलिए भारत ने रूस से उसकी क्रायोजेनिक तकनीक ट्रांसफर करने का करार किया 1992 में। 2 क्रायोजेनिक engines को 235 करोड़ में खरीदने का करार हुआ। लेकिन अमेरिका की इस पर कुदृष्टि थी, उन्होंने रूस को धमकाया कि वो ये engines और टेक्नीक भारत को ना दे। उस समय तक ये तकनीक केवल अमेरिका और रूस के पास थी, और अमेरिका नही चाहता था कि भारत इसका लाभ उठाये। आज के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने बाकायदा इस डील के विरोध में बिल पेश किया था, और उन्ही की वजह से ये डील ख़त्म भी हुई । रूस उस समय USSR के विघटन होने की वजह से आर्थिक रूप से कमजोर था, और उसकी सैन्य ताकत भी काफी कम थी, अमेरिका इस वजह से रूस पर दबाव बनाने में सफल हुआ और रूस ने ये टेक्नीक भारत को देने से मना कर दिया।
फिर भारत ने स्वयं इसे बनाने की ओर प्रयास चालू कर दिए थे, और नारायणन के नेतृत्व में “विकास” इंजन भी बना लिया गया था। लेकिन फिर ऐसा कुछ घटित हुआ, जिसने इस पूरी कहानी को ही बदल डाला। अक्टूबर 1994 में तिरुअनंतपुरम से एक मालदीव की नागरिक मरियम रशीदा को गिरफ्तार किया गया। ऐसा बताया गया कि उसके पास ISRO के राकेट engines के डिज़ाइन मिले थे, जिन्हें वो पाकिस्तान को बेचने जा रही थी।
नवंबर 1994 को VSSC (विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर) से 2 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। एक थे नम्बी नारायणन ( डायरेक्टर-क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट) और दूसरे थे डी.ससिकुमारण। इनके अलावा के. चंद्रशेखर जो रूसी स्पेस एजेंसी के इंडियन रिप्रेजेन्टेटिव थे, एस.के.शर्मा जो एक लेबर कांट्रेक्टर थे, और फौजिया हसन जो रशीदा की दोस्त थी….इन सबको भी गिरफ्तार कर लिया गया।
इन सभी पर क्रायोजेनिक engines की टेक्नोलॉजी को कुछ मिलियन डॉलर्स में बेचने का आरोप लगाया गया था। ऐसा बताया गया कि रशीदा और फौजिया ने नारायणन और ससिकुमारण को honey trap किया था ।
उस दौरान केंद्र में कांग्रेस सरकार थी, और केरल में भी कांग्रेस का ही शासन था। ऐसा बताया जाता है कि IB (इंटेलिजेंस ब्यूरो) ने सरकार के इशारों पर दोनों साइंटिस्ट्स को टॉर्चर किया, उन्हें मारा पीटा और एक बार तो इतना मारा कि नारायणन को हॉस्पिटल में एडमिट करवाना पड़ा।
नारायणन ने अपनी बायोग्राफी “Ready to Fire” में लिखा है कि किस तरह IB के अफसर उन्हें टॉर्चर करते थे और उन्हें उनके बॉस मुथुनायगम (हेड – लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर) के खिलाफ झूठे बयान देने का दबाव डालते। लेकिन नारायणन ने ऐसा कुछ नही कहा।
इस दौरान उन्हें केरल सरकार (Congress), केंद्र सरकार(Congress) और ISRO से कोई सपोर्ट नही मिला। उन्हें 50 दिन जेल में बिताने पड़े। और इस वजह से एक भयानक नुकसान उन्हें और भारत को हो चुका था।
फिर सीबीआई ने 1996 में उन पर लगे आरोपो को खारिज किया, बाद में 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उन पर लगे आरोपो को रद्द किया। आरोप रद्द होने के बाद दोनों साइंटिस्ट्स को तिरुअनंतपुरम से बाहर ट्रांसफर कर दिया गया, और उन्हें राकेट्री से हटा कर डेस्क जॉब्स दी गयी। कुल मिलाकर हमारी सरकारो ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।
इस वजह से हमारा लांच व्हीकल प्रोग्राम 20 साल पीछे चला गया। जिस विकास इंजन को 1993-94 में ही बना लिया गया था, उसका प्रयोग PSLV में 2008 के चंद्रयान प्रोजेक्ट में किया गया, बाद में इसी इंजन को GSLV राकेट में भी लगाया गया, जो आज हमारे सॅटॅलाइट लॉन्चिंग बिज़नेस का आधार है।
नारायणन 2001 में रिटायर हो गए। नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने इस मामले में केरल सरकार की संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाये और उन्हें 1 करोड़ रुपये का कंपनसेशन देने का आदेश दिया, जिसे केरल सरकार ने नही माना। 2012 में केरल हाई कोर्ट ने केरल सरकार को आदेश दिया कि नारायणन को क्षतिपूर्ति (उनका कैरियर बर्बाद करने के बदले) 10 लाख रुपये दिए जाएं, जिसे केरल सरकार ने नही माना।
केस चलता रहा, और बाद में CJI दीपक मिश्रा ने केरल सरकार को आदेश दिया कि नारायणन को 50 लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिए जाएं। चूंकि इस बार मुद्दा मीडिया में था, केरल सरकार को झुकना पड़ा और पैसा देना पड़ा।
अब आपका सवाल होगा, कि क्या उन IB या पुलिस ऑफिसर्स पर कोई कार्यवाही हुई, जिन्होंने इस भयानक साजिश को अंजाम दिया?
इसका उत्तर है “ना”
जी सही सुना, जिन IB ऑफीसर और पुलिस अफसरों ने नारायणन को टॉर्चर किया और झूठे केस में फंसाया, उन सबको केरल सरकार ने इसलिए दोष मुक्त कर दिया, क्योंकि केस को शुरू हुए 15 साल से ज्यादा हो गए थे। इसमे ज्यूडिशरी भी बराबर की भागीदार है, 2015 में केरल हाइकोर्ट ने फर्जी मामला बनाने के मुद्दे पर पुलिस अफसरों को सज़ा सुनाने के बजाय ये फैसला केरल सरकार पर छोड़ दिया……और केरल सरकार तो माशाअल्लाह थी ही। सीबी मैथयू, जिनके निरीक्षण में ये सारा फर्जी केस बनाया गया, वो बाद में केरल के चीफ इनफार्मेशन कमिश्नर (CIC) भी बने 😊
कौन था इस साजिश के पीछे?
ऐसा माना जाता है कि अमेरिका ने भारत को क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी ना बनाने देने की साजिश की। और अपनी CIA एजेंसी की मदद से इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाले 2 वैज्ञानिकों को झूठे केस में फंसा दिया। ऐसा कहा जाता है कि केरल सरकार और केंद्र सरकार के कई महत्वपूर्ण लोगो को करोड़ो रुपया पहुचाया गया इस कारनामे को अंजाम तक पहुचाने के लिए।
ऐसा भी माना जाता है कि कांग्रेस के ही ओमान चांडी और ए. के.एंटोनी ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के.करुणाकरण की सरकार को झटका देने के लिए इस पूरी साजिश में भागीदारी की। इस घटना के बाद जब जांच में पता लगा कि पूरा केस फर्जी है, तो केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरण को इस्तीफा देना पड़ा था। ऐसा बताया जाता है कि इन दोनों ने मलयाला मनोरमा मीडिया ग्रुप को मैनेज किया, और उसके द्वारा इन खबरों की विस्तृत और भ्रामक रिपोर्टिंग की जाती थी……..जिसकी वजह से
- करुणाकरण को गद्दी छोड़नी पड़ी
- ओमान चांडी मुख्यमंत्री बने
- मलयाला मनोरमा का सर्कुलेशन जबरदस्त हुआ
- 2 वैज्ञानिकों का जीवन बर्बाद हुआ
- भारत का स्पेस प्रोग्राम 20 साल पीछे चला गया
Breaking India Forces कोई मिथ नही है। विदेशी ताकतों ने समय समय पर साजिशें की हैं। हमारे स्पेस प्रोग्राम और nuclear प्रोग्राम के जनक विक्रम साराभाई और डॉक्टर भाभा की मौत संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई। 2010 से 2013 के बीच भारत के 9 टॉप nuclear साइंटिस्ट्स की मौत हुई, और सभी संदेहास्पद स्थिती में हुई। जिनकी जांच भी तरीके से नही कराई गयी, तब किसकी सरकार थी ये बताने की जरूरत है क्या??
इनका एक ही प्रिंसिपल है, देश को आगे बढ़ने मत दो….अगर बढ़ना चाहे तो प्रतिबंध लगा दो…..फिर भी ना मानें तो साजिशे करो…झूठे आरोपो में फंसाओ…..और फिर भी ना माने तो मार दो। और सबसे दुःखद ये है कि हमारी ही सरकारें, पुलिस, इंटेलिजेंस एजेंसीज और ज्यूडिशरी भी इन फोर्सेज के साथ मिलीभगत कर लेती हैं।