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क्रूर औरंगजेब और मुग़लों को सबसे पहले क्लीन चिट देने वाले इंसान थे ‘महात्मा गांधी’: जानिए आखिर क्यों उन्हें मुग़लों के ‘सच’ से परहेज था ?

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इन दिनों मुग़लो को लेकर काफी चर्चा हो रही है, खासकर जब से तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर फिर से कब्ज़ा किया है, तब से ये चर्चा और जोर शोर से हो रही है । लोगो ने मुगलो और तालिबान के बीच में तुलना करना शुरू कर दिया है, क्युकी आज जो कार्य तालिबान कर रहा है मासूम अफ़ग़ान लोगो के साथ वही काम सैंकड़ो सालो पहले मुगलो ने किया था भारतीयों के साथ।

हालांकि जैसे जैसे लोगो के सामने तालिबान और मुगलो की असलियत खुल रही है, वैसे ही एक दूसरा धड़ा है जो मुगलो को पाक साफ़ बताने में जुटा है। चाहे नामचीन शायर हो, या बॉलीवुड के अभिनेता और डायरेक्टर, कुछ लोगो ने तो जैसे कसम ही खा ली है की मुगलो की तरफदारी करनी है, चाहे कुछ भी हो जाए। शायर मुनव्वर राणा हों या बॉलीवुड डायरेक्टर कबीर खान , ये मुगलो को महान बताने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें देश बनाने वाला बता रहे हैं।

दुःख की बात है कि आज भी हमारे देश में सेक्युलरिम और हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के नाम पर आक्रांताओ को महान बताया जाता है, और जो उनकी असलियत बताता है, उन्हें कम्युनल और इस्लामॉफ़ोबिक कहा जाता है । इसका एक बड़ा कारण भी है, कि आजादी के पहले से ही हमारे देश के नेताओ ने विदेशी आक्रांताओ खासकर मुगलो को महान बताना शुरू कर दिया था, उन्होंने नैरेटिव ही इस तरह से बनाया था कि एक मासूम भारतीय उनकी बातो के जाल में फंस गया, और धीरे धीरे अपने असली इतिहास से ही विमुख हो गया । क्या आप जानते हैं वो कौन सा नेता था जिसने मुगलो को सबसे पहले क्लीन चिट दी थी?

वो थे हमारे देश के ‘कथित’ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी। आपको ये सुनकर झटका लग सकता है, लेकिन वो महात्मा गाँधी ही थे जिहोने मुगलो की शान में कसीदे पढ़े, उन्हें भारत का निर्माण करने वाला, उन्हें देश में शान्ति रखने वाला बताया था।

1 नवंबर, 1931 को लन्दन में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के पेम्ब्रोक कॉलेज में महात्मा गाँधी को आख्यान के लिए बुलाया गया था। गांधी को यहां सुनने आनेवाले प्रमुख लोगों में ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स एलिस बार्कर, ब्रिटिश राजनीति-विज्ञानी और गोल्ड्सवर्दी लाविज़ डिकिन्सन, स्कॉटिश धर्मशास्त्री डॉ. जॉन मरे और ब्रिटिश लेखक एवलिन रेंच इत्यादि शामिल थे.

इस बैठक में गांधी भिन्न भिन्न विषयो पर बोल रहे थे, फिर इतिहास की बात भी चली, और गाँधी ने कहा “मैं यह जानता हूं कि हर ईमानदार अंग्रेज़ भारत को स्वतंत्र देखना चाहता है, लेकिन उनका ऐसा मानना क्या दुःख की बात नहीं है कि ब्रिटिश सेना के वहां से हटते ही दूसरे देश उस पर टूट पड़ेंगे और देश के अंदर आपस में भी भारी मार-काट मच जाएगी? …आपके बिना हमारा क्या होगा, इसकी इतनी अधिक चिंता आपलोगों को क्यों हो रही है? आप अंग्रेज़ों के आने से पहले के इतिहास को देखें, उसमें आपको हिंदू-मुस्लिम दंगों के आज से ज्यादा उदाहरण नहीं मिलेंगे. औरंगज़ेब के शासन-काल में हमें दंगों का कोई हवाला नहीं मिलता.”

यहाँ उन्होंने औरंगजेब को क्लीन चिट दी, जो कि सबसे क्रूर मुगल बादशाह माना जाता है, गाँधी के अनुसार औरंगजेब के शासन काल में कोई हिन्दू-मुस्लिम का दंगा नहीं हुआ।

उसी दिन दोपहर को कैम्ब्रिज में ‘इंडियन मजलिस’ ने भी एक सभा का आयोजन किया था, वहां गाँधी ने इसी बात को रखते हुए और साफगोई से कहा कि “जब भारत में ब्रिटिश शासन नहीं था, जब वहां कोई अंग्रेज़ दिखाई नहीं देता था, तब क्या हिंदू, मुसलमान और सिख आपस में बराबर लड़ ही रहे थे?”

इसी बात को आगे बढ़ाते हुए गाँधी ने कहा कि “हिंदू और मुसलमान इतिहासकारों द्वारा दिए गए विस्तृत और सप्रमाण विवरणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि तब हम अपेक्षाकृत अधिक शांतिपूर्वक रह रहे थे. और ग्रामवासी हिंदुओं और मुसलमानों में तो आज भी कोई झगड़ा नहीं है. उन दिनों तो उनके बीच झगड़े का नामो-निशान तक नहीं था.”

गाँधी यहीं नहीं रुके, उन्होंने मौलाना मुहम्मद अली, जो खुद एक हद तक इतिहासकार थे, उनका रिफरेन्स देते हुए कहा कि “मौलाना मुहम्मद अली मुझसे अक्सर कहा करते थे कि अगर अल्लाह ने मुझे इतनी ज़िंदगी बख्शी तो मेरा इरादा भारत में मुसलमानी हुक़ूमत का इतिहास लिखने का है. उसमें दस्तावेज़ी सबूतों के साथ यह दिखा दूंगा कि अंग्रेज़ों ने गलती की है. औरंगज़ेब उतना बुरा नहीं था जितना बुरा अंग्रेज़ इतिहासकारों ने दिखाया है, मुग़ल हुक़ूमत इतनी खराब नहीं थी जितनी खराब अंग्रेज़ इतिहासकारों ने बताई है.”

कितने भोले थे हमारे महात्मा गाँधी, क्या वो भूल गए विदेश आक्रांताओ द्वारा किये गए अत्याचारों को, छत्रपति शिवजी, महाराणा प्रताप और सिख धर्मगुरु किसके खिलाफ लड़े थे? क्या कोई दूसरी दुनिया की शक्ति के खिलाफ लड़े थे ?

गांधी ने अपनी पहली किताब ‘हिंद स्वराज’ में भी इस मुद्दे पर विस्तार से लिखा था कि “भारत का इतिहास लिखने में तत्कालीन विदेशी इतिहासकारों ने दुर्भावना और राजनीति से काम लिया था. मुग़ल बादशाहों से लेकर टीपू सुल्तान तक के इतिहास को तोड़-मरोड़कर हिंदू-विरोधी दिखाने की कोशिश की गयी”।

गाँधी ने अपने जीवन में कई मौको पर मुगलो का बचाव किया, उन्हें पाक साफ़ बताने की कोशिश की, और इस बात को बिलकुल नकार दिया कि मुगलो ने हिन्दुओ पर कोई अत्याचार भी किये। इस बारे में गाँधी ने कई अन्य जगह पर भी लिखा है ।

20 अक्तूबर, 1921 को महात्मा गाँधी ने गुजरात कि पत्रिका ‘नवजीवन’ लिखा था कि “जो धनवान हो वह श्रम न करे, ऐसा विचार तो हमारे मन में आना ही नहीं चाहिए. इस विचार से हम आलसी और दीन हो गए हैं. औरंगज़ेब को काम करने की कोई ज़रूरत नहीं थी, फिर भी वह टोपी सीता था. हम तो दरिद्र हो चुके हैं, इसलिए श्रम करना हमारा दोहरा फर्ज है.”

गाँधी जी के अजीबो गरीब लेखों का सिलसिला नहीं रुका, उन्होंने 21 जुलाई, 1920 को ‘यंग इंडिया’ में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था ‘चरखे का संगीत’, जिसमे उन्होंने लिखा था कि “पंडित मालवीयजी ने कहा है कि जब तक भारत की रानी-महारानियां सूत नहीं कातने लगतीं, और राजे-महाराजे करघों पर बैठकर राष्ट्र के लिए कपड़े नहीं बुनने लगते, तब तक उन्हें संतोष नहीं होगा. उन सबके सामने औरंगज़ेब का उदाहरण है, जो अपनी टोपियां खुद ही बनाते थे.”

10 नवंबर, 1921 को ‘यंग इंडिया’ में गाँधी ने लिखा था कि “दूसरों को मारने का धंधा करके पेट पालने की अपेक्षा चरखा चलाकर पेट भरना हर हालत में ज्यादा मर्दानगी का काम है. औरंगज़ेब टोपियां सीता था. क्या वह कम बहादुर था?” जबकि इस कथन का कोई सबूत नहीं, लेकिन गाँधी ने औरंगजेब को टोपी सीने वाला साधारण इंसान ही बना डाला।

जिस देश के सबसे बड़े नेता ही मुग़ल आक्रांताओ का इस तरह खुलेआम बचाव करें, उनके पापो पर पर्दा डालें, वहां कि जनता का तो भ्रमित होना बहुत ही स्वाभाविक है। ऊपर से कांग्रेस और नेहरू ने चुनिंदा इतिहासकारो और शिक्षा मंत्रियो को इतिहास से छेड़छाड़ करने का कार्य दिया, जो उन्होंने किया भी, और यही वजह है कि हमे आज भी इन विदेशी आक्रांताओ के बारे में अधपकी जानकारी ही मिलती है।

कुछ लोग अगर सही जानकारी देते भी हैं, तो सेक्युलर लोग गाँधी और अन्य रिफरेन्स का हवाला देते हुए मुगलो को पाक साफ़ घोषित कर देते हैं, और सवाल पूछने वाले और तथ्य रखने वाले को कम्युनल घोषित कर दिया जाता है ।

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