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जगन्नाथ रथयात्रा २०२३, जगन्नाथ मंदिरस्य विश्व प्रसिद्ध १० आश्चर्यम् ! जगन्नाथ रथ यात्रा 2023, जगन्नाथ मंदिर के विश्‍व प्रसिद्ध 10 चमत्कार !

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हिन्दुनां पवित्र सप्त पुरिन: अर्थतः नगरिसु ४ धामेषुतः च् एकं पुरी धामे स्थितं विश्वप्रसिद्ध: जगन्नाथ मंदिरम् एकं आश्चर्यपूर्ण मंदिरम् मान्यते ! अत्रे प्राचीनकाले श्रीहरि विष्णु नील माधवस्य रूपे विराजमान: आसीत् !

हिन्दुओं की पवित्र 7 पुरी यानी नगरियों में और चार धामों में से एक पुरी धाम में स्थित विश्‍व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर को एक चमत्कारिक मंदिर माना जाता है ! यहां पर प्राचीनकाल में श्रीहरि विष्णु नीलमाधव के रूप में विराजमान थे !

अनंतरे इदम् स्थानम् तस्याष्टानि अवतार: भगवतः कृष्णस्य धामाभवत् ! अत्रे श्रीकृष्णम् जगतस्य नाथ: जगन्नाथ: कथ्यति ! अत्र भगवतः जगन्नाथ: स्वाग्रज: बलभद्रेण भगिनी सुभद्राया सह विराजते ! आगच्छन्तु ज्ञायन्ते अत्रस्य मंदिरस्य १० प्रसिद्धा: आश्चर्यम् !

बाद में यह स्थान उन्हीं के 8वें अवतार भगवान कृष्ण का धाम बन गया ! यहां पर श्रीकृष्ण को जगत् के नाथ जगन्नाथ कहते हैं ! यहां भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं ! आओ जानते हैं यहां के मंदिर के 10 प्रसिद्ध चमत्कार !

१-वायो: विपरीतं विधूनयति ध्वजम्, श्री जगन्नाथ मंदिरस्योपरि स्थापितं रक्त ध्वजम् सदैव वायो: विपरीतदिशायां विधूनयति ! इदृशं केन कारणम् भवतीदम् तु वैज्ञानिक: एव ज्ञापतुं शक्नोति तु इदम् निश्चितमेवाश्चर्यपूर्ण वार्तास्ति ! इदमपि आश्चर्यमस्ति तत प्रतिदिनम् सायंकाल मन्दिरस्योपरि स्थापितं ध्वजम् मानवेण विपरीत रोहित्वा परिवर्तयते !

1-हवा के विपरीत लहराता है ध्वज, श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है ! ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्‍चित ही आश्चर्यजनक बात है ! यह भी आश्‍चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है !

ध्वजमपि इयत् भव्यमस्ति तत यदैदं विधूनयति तु येन सर्वे दर्शितमेव रमन्ते ! ध्वजे शिवस्य चंद्र रचितुं अभवत् ! इदमपि कथ्यते तत हनुमान महोदयेण मंदिरस्यार्श्वपार्श्व विवर्तन (वायो: विपरीत चक्रम्) उत्पादयत् ! यस्य कारणम् ध्वजम्मम विपरीतदिशायां विधूनयति !

ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं ! ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है ! यह भी कहा जाता है कि हनुमान जी द्वारा मंदिर के आसपास विवर्तन (वायु का उल्टा चक्र) पैदा किया गया है ! जिसके चलते ध्वज विपरीत दिशा में लहराता है !

२-शिखरस्य प्रतिबिंब न निर्मति, इदम् विश्वस्य सर्वात् भव्योच्चै: च् मंदिरमस्ति ! इदम् मंदिरम् ४ लक्ष वर्गफुट क्षेत्रे विस्तृतमस्ति यस्य च् उच्चै: अनुमानतः २१४ फुट इत्यास्ति ! मंदिरस्य पार्श्व स्थितं रमित्वा यस्य शिखरम् दर्शनम् असंभव: !

2-गुंबद की छाया नहीं बनती है, यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है ! यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है ! मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है !

मुख्य शिखरस्य प्रतिबिंब दिवसस्य कश्चितापि काळमदृश्यं रमति ! अस्माकं पूर्वज: कटियार वृहतभियंता रमितुं भविष्यतीदम् एकेन मंदिरस्य उध्दरणतः अवगम्यितुं शक्नोति ! पुर्या: मंदिरस्य इदम् भव्य रूपम् सप्तानि सद्यां निर्मितं कृतवान् !

मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है ! हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है ! पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया !

३-आश्चर्ययुक्तं सुदर्शन चक्रम्, पुर्यां कश्चितापि स्थानतः भवान् मन्दिरस्य शीर्षे स्थापितं सुदर्शन चक्रम् द्रक्ष्यति तु भवतम् सदैव स्वसंमुखमेव स्थापितुं द्रक्ष्यते ! येन नीलचक्रमपि कथ्यते ! इदं अष्टधातुतः निर्मितमस्ति अतिपूतं पवित्रम् च् मान्यते !

3-चमत्कारिक सुदर्शन चक्र, पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा ! इसे नीलचक्र भी कहते हैं ! यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है !

४-वायो: दिशा, सामान्य दिवसानां काळम् वायु समुद्रतः भूमिम् प्रति आगच्छति सायंकाळम् च् विपरीतं, तु पुर्यां यस्य विरुद्धं भवति ! अधिकतरः समुद्री तटेषु सामान्यतयः वायु समुद्रतः भूमिम् प्रति आगच्छति, तु अत्र वायु भूमितः समुद्रम् प्रति आगच्छति !

4-हवा की दिशा, सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है ! अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है !

५-शिखरस्योपरि नोड्डयन्ति खगा:, मंदिरस्योपरि शिखरस्यार्श्वपार्श्वाधुनैव कश्चित खगा: उड्डयत् न दर्शवान् ! यस्योपरितः विमानोड्डीतुं न शक्नोति ! भारतस्याधिकतर: मन्दिराणां शिखरेषु खगा: तिष्ठन्ते आर्श्वपार्श्व वौड्डयत् द्रष्टुमागच्छन्ति !

5-गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते हैं पक्षी, मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया ! इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता हैं ! भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं !

६-विश्वस्य सर्वात् वृहत् पाकशाला, ५०० पचका: ३०० सह्ययोगिभि: सह पचन्ति भगवतः जगन्नाथमहोदयस्य प्रसाद: ! अनुमानतः २० लक्षाणि भक्ता: कर्तुं शक्नोन्ति अत्र भोजनम् !

6-दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर, 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद ! लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन !

कथ्यते तत मंदिरे प्रसादम् किञ्चित सहस्र जनेभ्यः एव किं नापाचयतसि तु यस्मात् लक्षाणि जनानां क्षुधापूर्ति भवितुं शक्नोति ! मन्दिरस्य अभ्यांतरम् पाचितुं भोजनस्य मात्रा पूर्ण वर्षाय रमति ! प्रसादस्यैकमपि मात्रा कदाचित् व्यर्थ: न जातम् !

कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है ! मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है ! प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है !

७-सर्वात् उपरि धृतं प्रसादम् प्रथम पचति, मंदिरस्य पाकशालायां प्रसादं पाचितुं ७ पात्राणि एकम्-द्वितीयम् उपरि धारयन्ति ! अस्मिन् प्रक्रियायां शीर्ष पात्रे सामग्री प्रथम पचति पुनः क्रमशः अधोम् प्रति एकस्यानंतरमेकम् पचते अर्थतः सर्वात् उपरि धृतं पात्रस्य भोजनम् प्रथम पचते ! अस्ति नाश्चर्यम् !

7-सबसे ऊपर रखा प्रसाद पहले पकता है, मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है ! इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है ! है न चमत्कार !

८-समुद्रस्य ध्वनिम्, मंदिरस्य सिंहद्वारे प्रथम पगम् प्रवेशणे एव (मंदिरस्याभ्यांतरतः) भवान् समुद्रेण निर्मितं कश्चितापि ध्वनिम् शृणोतुं न शक्नोति ! भवान् (मंदिरस्य बहितः) एकमेव पगम् पारयतु, तदा भवान् येन शृणोतुं शक्नोति !

8-समुद्र की ध्वनि, मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते हैं ! आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं !

येन सायं स्पष्टरूपेणानुभूतुं शक्नोति ! अस्यैव प्रकारम् मंदिरस्य बहिः स्वर्गद्वारमस्ति, यत्रे मोक्ष प्राप्तयै शवम् ज्वलयते तु यदा भवान् मंदिरतः बहिः निर्गमिष्यति तदापि भवतम् शवानां ज्वलस्य गंधानुभूष्यति !

इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है ! इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी !

९-रूपम् परिवर्तयति मूर्ति, अत्र श्रीकृष्णम् जगन्नाथ: कथ्यते ! जगन्नाथेण सह तस्य भ्रात बलभद्र: (बलराम:) भगिनी च् सुभद्रा विराजन्ते ! त्रयाणां इमानि मूर्तय: काष्ठस्य निर्मितानि सन्ति !

9-रूप बदलती है मूर्ति, यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं ! जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं ! तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं !

अत्र प्रति द्वादश वर्षे एकदा भवति प्रतिमाणां नव कलेवरम् ! मूर्तय: नवावश्य रचन्ते तु आकृति रूपम् च् तैव रमति ! कथ्यते तत तेषां मूर्तिणां पूजनम् न भवन्ति, केवलं दर्शनार्थ धृतानि सन्ति !

यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर ! मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है ! कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती है, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं !

१०-हनुमान महोदयः करोति जगन्नाथस्य समुद्रतः रक्षा, मान्यते तत त्रयदा समुद्रम् जगन्नाथ महोदयस्य मंदिरमखंडयन् स्म ! कथ्यते तत महाप्रभु जगन्नाथ: वीर मारुतिम् (हनुमान महोदयः) अत्र समुद्रम् नियंत्रितुं नियुक्त: कृतवान् स्म !

10-हनुमान जी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा, माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथ जी के मंदिर को तोड़ दिया था ! कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहां समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था !

तु यदा-यदा हनुमान: अपि जगन्नाथस्य- बलभद्रस्य सुभद्रायाः च् दर्शनानां लोभ: संवरण कर्तुं न शक्नोति स्म ! सः प्रभो: दर्शनार्थम् नगरे विशते स्म, इदृशे समुद्रमपि तस्य पश्च नगरे विशते स्म !

परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे ! वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था !

केसरीनंदन हनुमान महोदयस्य येन कृत्येन क्षुब्ध भूत्वा जगन्नाथ महाप्रभु हनुमान महोदयमत्र स्वर्णश्रृंखलायाः आबद्धवान् ! अत्र जगन्नाथ पुर्यां एव सागर तटे बेड़ी हनुमानस्य प्राचीन: एवं प्रसिद्ध: मंदिरमस्ति ! भक्ता: बेड़ी इत्यां आबद्ध: हनुमान महोदयस्य दर्शनार्थमागच्छन्ति !

केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमान जी को यहां स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया ! यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेड़ी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है ! भक्त लोग बेड़ी में जकड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं !

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