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पैगंबर मोहम्मदस्य यदा जन्ममपि नाभवत् स्म, तदात् अमरनाथ कंदरे भवति पूजनम्-अर्चनम् !पैगंबर मोहम्मद का जब जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ गुफा में हो रही है पूजा- अर्चना !

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मम हिंदू भ्रातरः येन कारणं इति असत्यं न कुर्वन्तु तत अमरनाथ कंदरस्य अन्वेषणं एकः मुस्लिम: कृतरासीत् ! ज्ञायतु अमरनाथस्य संपूर्ण इतिहास कुत्रचित स्व बालकान् ज्ञापितुम् शक्नोतु !

मेरे हिंदू भाइयों इसलिए इस झूठ को नकारिए कि अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम ने की थी ! जानिए अमरनाथ का पूरा इतिहास ताकि अपने बच्चों को बता सकें !

ॐ नमः शिवाय

बाबा बर्फानिण: दर्शनस्यामरनाथ यात्रारंभितं ! अमरनाथ यात्रारंभतैव पुनः धर्मनिरपेक्षस्य मठाधीशा: अनृतमेतिहासस्य व्याख्यारंभितं तत इति कंदरं १८५० तमे एकः मुस्लिम बूटा मलिक: अनुसंधानित: स्म !

बाबा बर्फानी के दर्शन के अमरनाथ यात्रा शुरू हो गयी है ! अमरनाथ यात्रा शुरू होते ही फिर से सेक्युलरिज्म के झंडबदारों ने गलत इतिहास की व्याख्या शुरू कर दी है कि इस गुफा को 1850 में एक मुस्लिम बूटा मलिक ने खोजा था !

जय बाबा अमरनाथ बर्फानी

पूर्व वर्षं तदा पत्रकारितायाः गोयंका पारितोषिकं घोषित कर्तानि इंडियन एक्सप्रेस एकम् लेखम् लेखित्वा इति असत्यं तीव्रताया प्रचारितं स्म !

पिछले साल तो पत्रकारिता का गोयंका अवार्ड घोषित करने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने एक लेख लिखकर इस झूठ को जोर-शोर से प्रचारित किया था !

यद्यपि इतिहासे पंजीकृतमस्ति तत यदा इस्लाम इति धरायां उपस्थितमपि नासीत्, अर्थतः इस्लाम पैगंबर मोहम्मदे कुरान इति अवतरणं तदा त्यज्यतु, तस्य जन्ममपि नाभवत् स्म, तदात् अमरनाथस्य कंदरे सनातन संस्कृत्या: अनुयायी बाबा बर्फानिण: पूजनम्-अर्चनम् कुर्वन्ति !

जबकि इतिहास में दर्ज है कि जब इस्लाम इस धरती पर मौजूद भी नहीं था, यानी इस्लाम पैगंबर मोहम्मद पर कुरान उतरना तो छोड़िए, उनका जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ की गुफा में सनातन संस्कृति के अनुयायी बाबा बर्फानी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं !

कश्मीरस्येतिहासे कल्हणस्य राजतरंगिणिना नीलमत पुराणेन च् सर्वात् अधिकं प्रकाशं भवति ! श्रीनगर तः १४१ किलोमीटर द्रुतं ३८८८ मीटर इत्यस्योपर्याम् स्थितं अमरनाथ कंदरं तदा भारतीय पुरातत्व विभागैव ५ सहस्र वर्षाणि पुरातन इति मान्यति !

कश्मीर के इतिहास पर कल्हण की राजतरंगिणी और नीलमत पुराण से सबसे अधिक प्रकाश पड़ता है ! श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की उंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को तो भारतीय पुरातत्व विभाग ही 5 हजार वर्ष प्राचीन मानता है !

अर्थतः महाभारतकालात् इति कंदरस्योपस्थितिं स्वयं भारतीय संस्थानि मान्यन्ति ! तु इदम् भारतस्य धर्मनिरपेक्षतामस्ति, यत् तथ्यै: इतिहासेन च् न, मार्क्सवादिनां-नेहरूवादिनां बोधेन चरति ! तैव बोधास्यदापि निर्माणस्य प्रयासमारंभितं !

यानी महाभारत काल से इस गुफा की मौजूदगी खुद भारतीय एजेंसियों मानती हैं ! लेकिन यह भारत का सेक्यूलरिज्म है, जो तथ्यों और इतिहास से नहीं, मार्क्सवादियों-नेहरूवादियों के परसेप्शन से चलता है ! वही परसेप्शन इस बार भी बनाने का प्रयास आरंभ हो चुका है !

राजतरंगिणी इत्ये अमरनाथम् !

राजतरंगिणी में अमरनाथ !

अमरनाथस्य कंदरं प्राकृतिकमस्ति नैव मानव निर्मितं ! येन कारणं पंचसहस्रवर्षस्य पुरातत्व विभागस्येदम् गणनापि न्यूनैव भवति, कुत्रचित हिमालयस्य पर्वतं लक्षानि वर्षाणि पुरातन मान्यते ! अर्थतः इदम् प्राकृतिक कंदरं लक्षात् वर्षातस्ति !

अमरनाथ की गुफा प्राकृतिक है न कि मानव निर्मित ! इसलिए पांच हजार वर्ष की पुरातत्व विभाग की यह गणना भी कम ही पड़ती है, क्योंकि हिमालय के पहाड़ लाखों वर्ष पुराने माने जाते हैं ! यानी यह प्राकृतिक गुफा लाखों वर्ष से है !

कल्हणस्य राजतरंगिणी इत्ये अस्योल्लेखमस्ति तत कश्मीरस्य नृपः सामदीमत शैवासीत् सः च् पहलगामस्य वनेषु स्थितं हिमस्य शिवलिंगस्य पूजनम्-अर्चनम् कर्तुम् गच्छति स्म !

कल्हण की राजतरंगिणी में इसका उल्लेख है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे !

ज्ञातमसि तत हिमस्य शिवलिंगामरनाथं त्यक्त्वा अन्यतमः कुत्रैव नास्ति ! अर्थतः वामपंथी, येन १८५० तमे अमरनाथ कंदरमन्वेषणस्य कुतर्कं रचयन्ति, यस्मात् कश्चित शताब्दिपूर्व कश्मीरस्य नृपः स्वयं बाबा बर्फानिण: पूजनम् करोति स्म !

ज्ञात हो कि बर्फ का शिवलिंग अमरनाथ को छोड़कर और कहीं नहीं है ! यानी वामपंथी, जिस 1850 में अमरनाथ गुफा को खोजे जाने का कुतर्क गढ़ते हैं, इससे कई शताब्दी पूर्व कश्मीर के राजा खुद बाबा बर्फानी की पूजा कर रहे थे !

नीलमत पुराणे बृंगेश संहितायाममरनाथम् !

नीलमत पुराण और बृंगेश संहिता में अमरनाथ !

नीलमत पुराणे, बृंगेश संहितायामपि अमरनाथ तीर्थस्य पुनः पुनः उल्लेखम् लब्धति ! बृंगेश संहितायामलिखत् ततामरनाथस्य कंदरं प्रति गच्छति कालम् अनंतनयायां (अनंतनाग), माचे भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड्यां, सुशरामनगरे (शेषनाग) पंचतरंगिर्याम् (पंचतरणी) अमरावत्याम् च् यात्री धार्मिकानुष्ठानं करोति स्म !

नीलमत पुराण, बृंगेश संहिता में भी अमरनाथ तीर्थ का बारंबार उल्लेख मिलता है ! बृंगेश संहिता में लिखा है कि अमरनाथ की गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) और अमरावती में यात्री धार्मिक अनुष्ठान करते थे !

तत्रैव छठ्यां लिखितम् नीलमतपुराणे अमरनाथ यात्रायाः स्पष्टमोल्लेखमस्ति ! नीलमतपुराणे कश्मीरस्येतिहासस्य, भूगोलस्य, लोककथानां, धार्मिकानुष्ठानानां विस्तृत रूपे अभिज्ञानम् उपलब्धमस्ति ! नीलमतपुराणे अमरेश्वरां प्रत्ये अददात् वर्णनेन ज्ञातम् भवति तत छठी शताब्द्यां जनाः अमरनाथ यात्रा क्रियते स्म !

वहीं छठी में लिखे गये नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा का स्पष्ट उल्लेख है। नीलमत पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की विस्तृत रूप में जानकारी उपलब्ध है ! नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गये वर्णन से पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे !

नीलमतपुराणे तदामरनाथ यात्रायाः उल्लेखम् अस्ति यदा इस्लामी पैगंबर मोहम्मदस्य जन्म अपि नाभवत् ! तदा पुनः कश्चित प्रकारेण बूटा मलिक: नामकं एक: मुस्लिम: गड्डरिक: अमरनाथ कंदरस्यान्वेषणं कर्तुम् शक्नोति ?

नीलमत पुराण में तब अमरनाथ यात्रा का जिक्र है जब इस्लामी पैगंबर मोहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था ! तो फिर किस तरह से बूटा मलिक नामक एक मुसलमान गड़रिया अमरनाथ गुफा की खोज कर सकता है ?

आंग्लका:, मार्क्सवादिनः नेहरूवादिन: च् इतिहासकारस्य संपूर्ण बलं इति वार्ताम् पुष्टिकृते अस्ति तत कश्मीरे मुस्लिमा: हिंदूभिः पुरातन वासिन: सन्ति ! येन कारणं अमरनाथस्य यात्राम् केचन शत वर्षाणि पूर्वारंभितं बदित्वा तत्र मुस्लिमालगाववाद इत्यस्य एकेन प्रकारेण स्थापस्य प्रयासम् कृतवान !

ब्रिटिशर्स, मार्क्सवादी और नेहरूवादी इतिहासकार का पूरा जोर इस बात को साबित करने में है कि कश्मीर में मुसलमान हिंदुओं से पुराने वाशिंदे हैं ! इसलिए अमरनाथ की यात्रा को कुछ सौ साल पहले शुरु हुआ बताकर वहां मुस्लिम अलगाववाद की एक तरह से स्थापना का प्रयास किया गया है !

इतिहासे अमरनाथ कंदरस्योल्लेखम् !

इतिहास में अमरनाथ गुफा का उल्लेख !

अमित कुमार सिंहेन लिखित: अमरनाथ यात्रा नामकं पुस्तकस्यानुसारम्, पुराणे अमरगंगायाः अपि उल्लेखमस्ति, यत् सिंधु नद्या: एका सहायक नदी आसीत् ! अमरनाथकंदर: गमनाय इति नद्या: पार्श्वेण गच्छितं भवति स्म !

अमित कुमार सिंह द्वारा लिखित अमरनाथ यात्रा नामक पुस्तक के अनुसार, पुराण में अमरगंगा का भी उल्लेख है, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी ! अमरनाथ गुफा जाने के लिए इस नदी के पास से गुजरना पड़ता था !

इदृशैव मान्यतामासीत् तत बाबा बर्फानिण: दर्शनेन पूर्व इति नद्या: मृत्तिका वदने धार्येण समस्त पाप इति क्षयन्ति ! शिवभक्त: इति मृत्तिकाम् स्व वदने धार्यति स्म !

ऐसी मान्यता था कि बाबा बर्फानी के दर्शन से पहले इस नदी की मिट्टी शरीर पर लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं ! शिव भक्त इस मिट्टी को अपने शरीर पर लगाते थे !

पुराणे वर्णितमस्ति ततामरनाथ कंदरस्योच्चता २५० फीट पृथुता ५० फीट चासीत् ! अस्यैव कंदरे हिमेण निर्मितम् एकं विस्तृतं शिवलिंग: आसीत्, येन बाह्येनैव द्रष्टुम् शक्नोति स्म ! बर्नियर ट्रेवल्स इत्ये अपि बर्नियर: इति शिवलिंगस्य वर्णित: !

पुराण में वर्णित है कि अमरनाथ गुफा की उंचाई 250 फीट और चौड़ाई 50 फीट थी ! इसी गुफा में बर्फ से बना एक विशाल शिवलिंग था, जिसे बाहर से ही देखा जा सकता था ! बर्नियर ट्रेवल्स में भी बर्नियर ने इस शिवलिंग का वर्णन किया है !

विंसेट-ए-स्मिथ: बर्नियरस्य पुस्तकस्य द्वितीय संस्करणस्य संपादनं कृतमानः अलिखत् तत अमरनाथस्य कंदरं आश्चर्यजनकमस्ति, तत्र अट्टेन जलम् बिंदु-बिंदु क्षरणते यमनित्वा हिमस्य खंडस्य रूप नीतम् ! हिंदू यान् शिव प्रतिमायाः रूपे पूजयन्ति !

विंसेट-ए-स्मिथ ने बर्नियर की पुस्तक के दूसरे संस्करण का संपादन करते हुए लिखा है कि अमरनाथ की गुफा आश्चर्यजनक है, जहां छत से पानी बूंद-बूंद टपकता रहता है और जमकर बर्फ के खंड का रूप ले लेता है ! हिंदू इसी को शिव प्रतिमा के रूप में पूजते हैं !

राजतरंगिणी तृतीय खंडस्य पृष्ठ संख्या-४०९ इत्ये डॉ स्टेन: अलिखत् तत द्वय फीट दीर्घम् शिवलिंग: अस्ति ! कल्हणस्य राजतरंगिणी द्वितीये कश्मीरस्य शासक: सामदीमत: ३४ ईसा पूर्वेण सप्तदशानि तमे तस्य च् बाबा बर्फानिण: भक्त इति भवस्योल्लेखमस्ति !

राजतरंगिणी तृतीय खंड की पृष्ठ संख्या-409 पर डॉ स्टेन ने लिखा है कि अमरनाथ गुफा में 7 से 8 फीट की चौड़ा और दो फीट लंबा शिवलिंग है ! कल्हण की राजतरंगिणी द्वितीय, में कश्मीर के शासक सामदीमत 34 ई.पू से 17 वीं ईस्वी और उनके बाबा बर्फानी के भक्त होने का उल्लेख है !

इदमेव न, येन बूटामलिकं १८५० तमे अमरनाथ कंदरस्यान्वेषणकर्ता सिद्धम् क्रियते, तस्मात् लगभगम् ४०० वर्षाणि पूर्व कश्मीरे नृपः जैनुलबुद्दीनस्य शासनं १४२०-७० आसीत् ! तं अपि अमरनाथस्य यात्राम् कृतरासीत् !

यही नहीं, जिस बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजकर्ता साबित किया जाता है, उससे करीब 400 साल पूर्व कश्मीर में बादशाह जैनुलबुद्दीन का शासन 1420-70 था ! उसने भी अमरनाथ की यात्रा की थी !

इतिहासकार: जोनराज: अस्योल्लेखित: ! षोडशानि शताब्द्यां मुगक नृपः अकबरस्य कालस्येतिहासकारः अबुल फजल: स्व पुस्तकं आईने-अकबर्यां अमरनाथस्य उल्लेखम् एकस्य पवित्र हिंदू तीर्थस्थलस्य रूपे कृतवान !

इतिहासकार जोनराज ने इसका उल्लेख किया है ! 16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के समय के इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक आईने-अकबरी में अमरनाथ का जिक्र एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल के रूप में किया है !

आईने-अकबर्यां अलिखत् कंदरे हिमस्य एकम् बुदबुदा इति निर्मयति ! इदम् आंशिकं-आंशिकं कृत्वा १५ दिवसमेव प्रतिदिनम् बर्ध्यति इदम् द्वय गज तः चधिकमोच्चता भविते ! चन्द्रस्य न्यूनेन सह-सह ततापि न्यूनम् भवितुम् आरंभिते यदा चन्द्र लुप्यते च् तदा शिवलिंग: अपि विलुप्यते !

आईने-अकबरी में लिखा है गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है ! यह थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता है और यह दो गज से अधिक उंचा हो जाता है ! चंद्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू हो जाता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है !

वास्तवे कश्मीर घाट्यां विदेशी इस्लामी आक्रांता इत्यस्य घातस्यानंतरम् हिंदून् कश्मीर त्यक्त्वा पलायितं भवितं ! अस्य कारणं चतुर्दशानि शताब्द्या: मध्यात् लगभगम् ३०० वर्षमेव इदम् यात्रा बाधितं ! इदम् यात्रा पुनः १८७२ तमे आरंभितं !

वास्तव में कश्मीर घाटी पर विदेशी इस्लामी आक्रांता के हमले के बाद हिंदुओं को कश्मीर छोड़कर भागना पड़ा ! इसके कारण 14 वीं शताब्दी के मध्य से करीब 300 साल तक यह यात्रा बाधित रही ! यह यात्रा फिर से 1872 में आरंभ हुई !

अस्यैवावसरस्य लाभम् उत्थित्वा केचनेतिहास कारा: बूटा मलिकम् १८५० तमे अमरनाथ कंदरस्य अन्वेषणकः सिद्धम् कृतवान येन च् लगभगम् मान्यतायाः रूपे स्थापितं ! जनश्रुति अपि लिखितवान यस्मिन् बूटा मलिकम् गृहित्वा एकम् कथानकम् रचितं तत तेन एकम् यती: मेलित: !

इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ इतिहासकारों ने बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजक साबित कर दिया और इसे लगभग मान्यता के रूप में स्थापित कर दिया ! जनश्रुति भी लिख दी गई जिसमें बूटा मलिक को लेकर एक कहानी बुन दी गई कि उसे एक साधु मिला !

यती: बूटाम् अंगारेण पूर्ण एक: प्रसेवक: दत्त: ! गृहम् प्राप्त्वा बूटा: यदा प्रसेवक: अनावृत: तदा तस्मिन् तं तेजिष्ठ: अविकम् लब्ध: ! सः अविकं पुनरदत्ते पुनः प्रसन्न च् भूत्वा साधुवाद इति दत्ते यदा तं यतिण: पार्श्व प्राप्त: तदा तत्र यती: न आसीत्, अपितु संमुखम् अमरनाथस्य कंदरं आसीत् !

साधु ने बूटा को कोयले से भरा एक थैला दिया ! घर पहुंच कर बूटा ने जब थैला खोला तो उसमें उसने चमकता हुआ हीरा पाया ! वह हीरा लौटाने या फिर खुश होकर धन्यवाद देने जब उस साधु के पास पहुंचा तो वहां साधु नहीं था, बल्कि सामने अमरनाथ का गुफा था !

अद्यापि अमरनाथे यत् चढ़ावा इति आगच्छति तस्य एकांशं बूटा मलिकस्य कुटुंबं ददाते ! चढ़ावा दत्तेन अस्माकं विरोधम् नास्ति, तु अनृतस्य बले येन दशक-दर-दशक इति स्थापितस्य इदम् यत् प्रयासं कृतवान, तस्मिन् बहु स्तरैव एतानां जनानां साफल्यं लब्धानि !

आज भी अमरनाथ में जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है उसका एक भाग बूटा मलिक के परिवार को दिया जाता है ! चढ़ावा देने से हमारा विरोध नहीं है, लेकिन झूठ के बल पर इसे दशक-दर-दशक स्थापित करने का यह जो प्रयास किया गया है, उसमें बहुत हद तक इन लोगों को सफलता मिल चुकी है !

अद्यापि कश्चित हिंदुना पृच्छतु, सः नीलमत पुराणस्य नाम न ज्ञापिष्यन्ति, तु एकः मुस्लिम: गड्डरिक: अमरनाथ कंदरस्य अन्वेषणितः, त्वरित इति कल्पितमेतिहासे वार्ता करिष्यते ! इदमेव कल्पितं विमर्शस्य प्रभावं भवति, यस्मिन् आंग्लक:- मार्क्सवादी:-नेहरूवादी: इतिहास कारा: सफलयन्ति !

आज भी किसी हिंदू से पूछिए, वह नीलमत पुराण का नाम नहीं बताएगा, लेकिन एक मुस्लिम गड़ेरिये ने अमरनाथ गुफा की खोज की, तुरंत इस फर्जी इतिहास पर बात करने लगेगा ! यही फेक विमर्श का प्रभाव होता है, जिसमें ब्रिटिशर्स-मार्क्सवादी-नेहरूवादी इतिहासकार सफल रहे हैं !

समस्त लेख इंटरनेट व पुस्तकों के शोधों पर आधारित !

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